20.5.17

रैनसमवेयर की जाल में उलझती दुनिया

हाल ही में रैनसमवेयर नाम के वायरस ने भारत सहित दुनिया के लगभग डेढ़ सौ देशों में विभित्र सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों के कंप्यूटर ठप करने की घटना ने हड़कंप मचा दिया था। इस वायरस की वारदात से दुनिया के सामने एक नए प्रकार की आफत खड़ी हो गई है। इससे यह तो साफ है कि साइबर सुरक्षा को लेकर सभी देशों ने एकजुट होकर गंभीरता नहीं दिखाई तो ऐसे हमले दुनिया में तहलका मचा सकते हैं। साइबर हमले से सबसे ज्यादा प्रभावित ब्रिटेन हुआ है।
इस हमले से नेशनल हेल्थ सर्विस से जुड़े कंप्यूटर्स को निशाना बनाया गया। इसके तहत हैकर्स ने लंदन,ब्लैकबर्न और नॉटिंघम जैसे शहरों के अस्पतालों और ट्रस्ट के कंप्यूटर्स को निशाना बनाया। कंप्यूटर के डाटा नहीं खुलने के चलते अस्पतालों और क्लीनिकों को मरीजों को वापस भी भेजना पड़ा। वहीं हैकर्स ने फिरौती मांग की है। हैकरों ने रकम की मांग बिटक्वाइन के रूप में की, बिटक्वाइन को हैकर्स अपने रैंजम के चौर पर यूज करते हैं ताकि उन्हें आसानी से ट्रेस न किया जा सकेगा। वहीं हैकर्स ने फिरौती मांग को अभी तक प्रभावित देशों ने स्वीकार नहीं किया है, जबकि हमलावरों ने रकम दोगुनी कर देने की धमकी दी और ज्यादा टाइम होने पर सभी फाइल्स को डिलीट कर दिया जाएगा। पीड़ित संस्थानों से तीन सौ डॉलर के भुगतान की मांग की गई है। रकम छोटी हो या बड़ी अपराधियों की मांग स्वीकार नहीं की जानी चाहिए और हाल फिलहाल में फैसला भी ऐसा ही किया गया।

वही गूगल में काम करने वाले भारतीय मूल के कर्मचारी नील मेहता ने साक्ष्य पेश कर दावा किया कि रैंसमवेयर साइबर हमला उत्तर कोरियाई हैकरों ने किया है। पर इन हमलों के पीछे किसका हाथ है यह फिलहाल कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इसके पीछे उत्तर कोरिया की संभावित भूमिका को भी खारिज नहीं किया जा सकता है। मालूम हो कि उत्तर कोरिया के लिए काम करने लैजरस हैकर्स का नाम पहले भी कई बार साइबर अपराध से जुड़ी घटनाओं में सामने आ चुका है।

अब इसके पीछे किसी का भी हाथ हो, पर अब संचार तकनीक के गलत उपयोग को रोक लगाने की तैयारी करनी होगी। यह तय है कि दुनिया में अभी इसकी कोई तैयारी नहीं है, लेकिन हाल की घटना से सबक लेना होगा।

कुशाग्र वालुस्कर
भोपाल
kushagravaluskar@rediffmail.com

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