अजय कुमार
आजादी के बाद से देश की आधी आबादी की दयनीय हालत को लेकर तमाम सरकारें समय-समय पर चिंता जताती रही हैं। इसको लेकर कुछ प्रयास भी हुए और कानून भी बने, लेकिन महिलाओं को आज तक समाज में दोयम दर्जे का ही समझा जाता है। कई बार तो ऐसा लगता है कि पुरूष प्रधान देश में महिलाओं की हैसियत उपभोग की वस्तु से अधिक नहीं है।उन्हें अपनी छोटी-छोटी जरूरतों से लेकर पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक हक की लड़ाई तक में पुरूषों के सामने हाथ फैलाना पड़ता हैं। पुरूषो की प्रधानता के चलते महिलाएं कई तरह की उत्पीड़न का शिकार होती है।
बाल विवाह, बलात्कार, तलाक, वैश्यावृति आदि इसी तरह की समस्याएं हैं। सबसे अधिक समस्या तो तब आती है जब किसी महिला को छल या बल से हासिल करने का कुचक्र रचा जाता है। आज देश की अदालतों में ऐसी महिलाओं की लम्बी लाइन लगी है जो विवाह के नाम पर छली जा चुकी हैं,जो विवाहित होते हुए भी अपना हक हासिल नहीं कर पाती हैं या फिर जिससे वह शादी करती हैं उसकी असलियत शादी के बाद खुलती है। ऐसे विवाह कों प्रेम विवाह की श्रेणी में भी रखा जा सकता है। जहां कोई लड़की परिवार और समाज से छुप कर अपनी शादी/निकाह कर तो लेती है,लेकिन उसे लड़के के बारे में कुछ पता ही नहीं होता है। कई बार तो शादी के बाद यह पता चला है कि उसका जिससे विवाह हुआ था वह दूसरे सम्प्रदाय का था और उसने झूठ बोलकर विवाह किया था। ऐसे विवाह को धोखाधड़ी वाला विवाह भी कह सकते हैं।
ऐसी तमाम समस्याओं पर शायद अब लगाम लग जाये। महिलाओं के अधिकारों और उनकी सामाजिक सुरक्षा की बहस के बीच विधि आयोग ने केन्द्र की मोदी सरकार को सभी धर्मो के लिये विवाह पंजीकरण अनिवार्य करने का सुझाव दिया है। विधि मंत्रालय इस पर मंथन कर रहा है। बताते चले विवाह पंजीकरण तो अभी भी हो रहा है,लेकिन इसको अभी तक अनिवार्य नहीं किया गया था। आयोग का मानना है कि इससे न सिर्फ वैवाहिक धोखाधड़ी रोकने में मदद मिलेगी, बल्कि कई अन्य मुश्किलों से निजात मिलेगी।
आयोग की सिफारशों पर अगर मोदी सरकार अपनी मोहर लगा देती है (जिसकी पूरी-पूरी उम्मीद है) तो महिलाओं के हित में उठाया गया यह एक क्रांतिकारी कदम होगा। इसे महिलाओं का ‘जीएसटी’ भी जा सकता है। सब जानते हैं कि महज कोई प्रमाण न होने के कारण कितनी ही महिलाओं को पत्नी का दर्जा न मिल पाता है और वे दर-दर भटकने को मजबूर रहती र्हैं। ऐसी महिलाओं को समाज भी अच्छी नजरों से नहीं देखता है। इस तरह के अनगिनत मामले हैं। कुछ कोर्ट तक पहुंच जाते हैं तो अनेकों-अनेक मामले कोर्ट या पुलिस के पास पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं, जिसमें पुरूषों द्वारा बड़ी चालाकी से ऐसे हालात पैदा कर दिये गये जिससे महिलाओं को साजिशन उनके अधिकारों से वंचित रखा जाता। ऐसे हालात में वैवाहिक पंजीकरण काफी हद तक इन मुश्किलों से छुटकारा दिला सकता है। वैवाहिक पंजीकरण के फैसले को समाज सुधार के रूप में उठाया गया बड़ा कदम भी माना जा सकता है।
विधि मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट में आयोग ने कहा है कि जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम 1969 में विवाह के पंजीकरण के अनिवार्य प्रावधान को जोड़कर मामूली संशोधन के साथ यह काम प्रभावी तरीके से किया जा सकता है। इसके लिये आधार कार्ड को अनिवार्य कर दिया जाये तो और भी अच्छा रहेगा। क्योंकि ऐसा होने पर सरकार के पास विवाह करने वालों का पूरा रिकार्ड रहेगा। हालांकि आधार को अनिवार्य बनाने, न बनाने को लेकर बहस भी छिड़ी हुई है, लेकिन फिलहाल तो इससे इंकार करने का कोई भी कारण नजर नहीं आ रहा है। आधार का बायोमेट्रिक डेटा कई तरह के फर्जीवाड़े पर लगाम लगाने में सहायक होगा। आयोग पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि विवाह से जुड़े पर्सनल लॉ में इसके लिए किसी संशोधन की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह विवाह के बाद पंजीकरण कराने की एक व्यवस्था मात्र है। महिला सुरक्षा और महिला अधिकारों को लेकर कुछ अंतरराष्ट्रीय संधियों के संद्रर्भ में भी यह एक आवश्यक सुधार साबित हो सकता है।
आयोग की इस सिफारिश के पीछे वे तमाम मामले ही हैं, जो अक्सर हमारी अदालतों के सामने आते हैं। आयोग ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के 2006 के उस फैसले को नजीर माना है, जिसमें शीर्ष अदालत ने देश के सभी नागरिकों के लिए विवाह पंजीयन को उसी शहर या जिले या राज्य में अनिवार्य करने को कहा था, जहां विवाह होता है। इसी के बाद मनमोहन सरकार ने 2012 में संसद में एक संशोधन प्रस्तुत किया था, जो राज्यसभा से जुलाई 2013 में पारित हो गया, लेकिन 2014 में लोकसभा का कार्यकाल पूरा हो जाने के कारण यह कानून नहीं बन सका।
लब्बोलुआब यह है कि विवाह पंजीकरण एक अनिवार्य सुधार प्रक्रिया है, जिसका सभी को धर्म और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर स्वागत करना चाहिए, जिस तरह से धर्म की आड़ में कुछ मुल्ला-मौलवी इसका विरोध कर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि उन्हें धर्म से अधिक अपनी चिंता सता रही है, जबकि उन्हीं के समाज की तीन तलाक से जूझ रही महिलाओं के लिये यह कानून ‘मील का पत्थर’ साबित हो सकता है। हिन्दुओं को जरूर इस तरह के फैसलों से कोई फर्क नहीं पड़ता है। पर यह अभियान सफल तभी हो सकेगा, जब सभी राज्य और लोग इसे बिना किसी हीला-हवाली के स्वीकारने को तैयार होंगे।
वैवाहिक पंजीकरण की सफलता के लिये समाज और सरकार दोनों को तो कमर कसनी ही पड़ेगी। इसके साथ-साथ सरकारी संस्थाओं की जागरूकता, उनकी मुस्तैदी के बिना भी यह अभियार पूरा नहीं हो सकता है। इसके लिए स्थानीय निकायों, नगर पालिकाओं, ग्राम पंचायतों,जनप्रतिनिधियों, समाज सेवी संगठनों तथा शैक्षिक कार्यक्रम के माध्यम से लोगों को जागरूक करना पड़ेगा। यह भी ध्यान देना होगा कि विवाह पंजीकरण सहज सुलभ हो। अगर ऐसा नहीं हुआ तो आम नागरिक इसे एक बोझ समझ बैठेगा और सरकार की मंशा पर ग्रहण लग जायेगा। इसे रिश्वतखोरी से भी बचाना होगा। जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने में रिश्वत औरं धांधली के मामले अक्सर सुनने को मिलते रहते है। तमाम प्रयासों के बावजूद इसमें लगाम नहीं लगा सका है। हमें इस पर भी ध्यान देना होगा कि उस समाज में, जहां वैवाहिक रिश्ते दरकने के मामले बार-बार सामने आते हैं, वह इसका कैसे ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सकें? विदेश जाना हो या विवाह के टूटने या फिर दुर्घटना व संपत्ति आदि को लेकर विवाद होने की दशा में इसकी अहम भूमिका होती है। यह बात सबको समझ में आनी चाहिए।
आयोग ने विवाह पंजीकरण को अनिवार्य करते समय सामाजिक परम्पराओं का भी ख्याल रखा है। आयोग ने अपनी 270वीं रिपोर्ट में कहा है कि समाज आज भी बाल विवाह, दोहरे विवाह और लैंगिक हिंसा से जूझ रहा है। विभिन्न विवाह और परिवार कानून तथा परंपराओं को ध्यान में रखते हुए इस संशोधन के लिए विस्तृत रूपरेखा तैयार की गई है। कानून मंत्रलय के आग्रह पर जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता में किए गए अध्ययन के आधार पर विधि आयोग ने यह सिफारिश की है। आयोग की रिपोर्ट में केंद्र को सलाह दी गई है कि इससे ‘विवाह धोखाधड़ी’ रुकेगी। वैवाहिक रिकॉर्ड न होने के कारण कुछ लोग पत्नी को पत्नी मानने से इनकार कर देते हैं। सामाजिक मान्यता और कानूनी सुरक्षा से महिलाओं को वंचित रखा जाता है।
रिपोर्ट में जिन बातों पर जोर दिया गया है उसके अनुसार रजिस्ट्रार जन्म और मृत्यु का पंजीकरण करता है, उसी पर विवाह का पंजीकरण करने की जिम्मेदारी हो। अगर बिना किसी उचित कारण के शादी के पंजीकरण में देर की गई तो पांच रुपए प्रति दिन के हिसाब से जुर्माना लगे। पेनाल्टी एक निश्चित तिथि से ही लगाई जाए और उसकी रकम देश की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अधिक न हो। अगर बिना किसी उचित कारण के शादी के पंजीकरण में देर की गई तो पांच रुपए प्रति दिन के हिसाब से जुर्माना लगे। पेनाल्टी एक निश्चित तिथि से ही लगाई जाए और उसकी रकम अधिकतम 100 रुपए हो।
बढ़ रहा है रूझान
उत्तर प्रदेश सरकार ने ऑनलाइन विवाह पंजीकरण की व्यवस्था नवंबर 2016 से जारी कर दी थी। साल 2017 की शुरूआत के साथ ही ऑनलाइन पंजीकरण में इजाफा हुआ है। मार्च 2016 तक रजिस्ट्रार दफ्तर में हिदू विवाह पंजीकरण की संख्या मात्र 102 दर्ज की गई थी। इसके बाद अप्रैल 2016 से मार्च 2017 तक विवाह पंजीकरण की संख्या 1071 तक पहुंची है। जबकि बीते तीन माह में विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र के लिए 185 आवेदन विभाग को प्राप्त हुए हैं। विवाह पंजीकरण की प्रक्रिया को समझने के लिए प्रतिदिन लाखों लोग इस वेबसाइट को खंगालने में जुटे हैं। 05 जून 2017 को इस वेबसाइट में लगभग 38,71,908 लोगों ने पंजीकरण के लिए सर्च किया। वहीं सूबे में अब तक ऑनलाइन 87374 विवाहित जोड़ों को पंजीकरण प्रमाण पत्र जारी किया जा चुके हैं। इसके साथ ही 102254 जोड़ों ने ऑनलाइन विवाह पंजीकरण प्राप्त करने के लिए आवेदन भी किए हैं।
अखिलेश सरकार चाहती थी, मुसलमानों को मिले छूट
उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार मुसलमानों को विवाह पंजीकरण के दायरे से बाहर रखना चाहती थीे। इसी लिये 2015 में तत्कालीन मंत्री अहमद हसन की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी। इस समिति की सिफारिशों में मुस्लिम समाज को इस प्रक्रिया सेे छूट देने की बात कही गई थी, लेकिन यह प्रस्ताव कोई रुप नहीं ले पाया और उससे पहले ही अखिलेश की सरकार चली गई। मैरिज रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले ही सभी राज्यों को निर्देश दे चुका है। कोर्ट के फैसले के बाद बिहार, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और केरल ने मैरिज रजिस्ट्रेशन को अपने यहां अनिवार्य कर दिया है। जो व्यक्ति इन राज्यों में पंजीकरण नहीं कराता है उनसे जुर्माना वसूला जाता है।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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