इन दिनों भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के बरखेड़ी में निर्माणाधीन परिसर में गौशाला निर्माण की योजना को लेकर सोशल मीडिया सहित मुख्य धारा की मीडिया में भी बवाल मचा हुआ है। मुझे यह समझ मे नहीं आता कि देश में इतने सारे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस करने की बजाय लोग किसी विश्वविद्यालय परिसर में गौशाला निर्माण को लेकर क्यों लाल-पीले हो रहे हैं? किसी भी विश्वविद्यालय में गौशाला की उपस्थिति कई मायनों में शिक्षा का एक अभिन्न अंग साबित हो सकता है। साथ ही यह संबंधित विश्वविद्यालय या संस्थान के लिए प्राकृतिक और परंपरागत संसाधनों के दोहन का विकल्प भी मुहैया करवा सकता है। उदाहरण के लिए मैं कुछ बिंदुओं पर प्रकाश डालना चाहूंगा:
1. गौशाला से प्रचुर मात्रा में दुग्ध उत्पादन होगा, जिससे कि न सिर्फ परिसर के छात्रावास में निवासरत विद्यार्थियों को बल्कि वहां के अध्यापकों और अन्य गैर-अध्यापन कर्मियों को मिलावटरहित दुग्ध की आपूर्ति की जा सकेगी। इससे परिसर के तमाम लोगों की सेहत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और वे अपना काम पूरी तन्मयता और ईमानदारी से कर सकेंगे।
2. यदि परिसर की आवश्यकता से अधिक दुग्ध उत्पादन होता है, तो इसे बाजार में बेचकर विश्वविद्यालय के लिए आर्थिक संसाधन जुटाए जा सकेंगे।
3. गौशाला से प्राप्त गोबर का इस्तेमाल गोबर गैस के उत्पादन के लिए किया जा सकेगा, जिसका न सिर्फ भोजनालय में भोजन पकाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा, बल्कि बिजली के विकल्प के तौर पर भी इसका उपयोग हो सकेगा। इससे पारंपरिक ईंधन पर निर्भरता घटेगी।
4. गाय के दूध, गोमूत्र और गोबर कई रोगों के उपचार के लिए कारगर होते हैं। इसलिए परिसर में गौशाला की मौजूदगी परिसर के लोगों को कई प्रकार की बीमारियों से भी बचाएगी।
5. परिसर में अध्ययनरत विद्यार्थियों में सेवा भाव का विकास होगा, जिससे कि अध्ययन की समाप्ति के बाद वे पत्रकारिता के हुनर का इस्तेमाल देश सेवा के लिए कर सकेंगे।
6. गौशाला के प्रबंधन का गुर सीख लेने से विद्यार्थियों के पास पत्रकारिता के अलावा करियर बनाने के दो और विकल्प होंगे- पहला, गौशाला प्रबंधक और दूसरा, गौरक्षक।
7. पत्रकारिता के एक नए आयाम 'गौ और गोबर पत्रकारिता' के रूप में विकसित करने का एक अवसर उत्पन्न होगा।
8. मीडिया संस्थानों में व्याप्त बदबू को सहने की शक्ति का विकास परिसर के विद्यार्थियों में होगा, जिससे कि वे जिस भी मीडिया संस्थान में काम करने जाएंगे, वहां का माहौल उन्हें अपरिचित नहीं लगेगा।
9. गौ माता की सेवा करने से परिसर के विद्यार्थियों में स्वयं के माता-पिता की सेवा का भाव भी विकसित होगा। जिससे कि वृद्धाश्रमों की संख्या में कमी आएगी।
10. सड़कों पर आवारा घूमने वाली गायों को इस गौशाला में स्थान मिलेगा, जिससे कि वह प्लास्टिक के सेवन से बचेंगी और असमय काल कवलित होने से उन्हें बचाया जा सकेगा।
11. आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण बात, गोबर से बने उपले जलाने से वायुमंडल में ऑक्सिजन की मात्रा में बढ़ोतरी होती है। इस प्रकार गौशाला परिसर और आसपास के क्षेत्रों के वायु का भी शोधन करेगा।
उपर्युक्त बिंदुओं के आलोक में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में निर्माणाधीन गौशाले का समर्थन करते हुए मैं इस योजना को देश के अन्य सभी विश्वविद्यालयों में लागू करने की सिफारिश करता हूँ।
सादर
चैतन्य चंदन
luckychaitanya@gmail.com
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