इसके साथ ही SYS बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट एसोसिएशन (BAPSA) के तमाम छात्र नेताओं को भी बधाई देती है, कि उन्हें चुनाव में सीट भले हासिल नहीं हुई, लेकिन उनका प्रदर्शन शानदार रहा। अब सवाल ये भी है कि क्या लंबे समय तक वाम छात्र संगठनों के नेतृत्व के बाद भी जेएनयू में बहुजन और पिछड़ों के नेतृत्व और उनसे जुड़े मसलों का उभार नहीं हो पाया। लगातार दूसरे साल BAPSA के शानदार प्रदर्शन ने ये साबित कर दिया है कि, अंबेडकर और फुले का नाम लेकर सियासत करने वाले कम्यूनिस्ट छात्र संगठन कैंपस में सामाजिक न्याय के असली वाहक नहीं है। क्या ये वाम छात्र संगठनों के लिए आत्मचिंतन का वक्त नहीं है?
SYS मानती है कि केन्द्र की सत्ता की शह पर आरएसएस-भाजपा की छात्र इकाई एबीवीपी राष्ट्रवाद और संस्कृति की ठेकेदार बन कर उत्पात मचाती है। उसके जवाब में कम्युनिस्ट छात्र संगठन अभिव्यक्ति की आजादी का संघर्ष चलाते हैं। संघियों और कम्युनिस्टों के बीच छिडी वर्चस्व की लडाई में स्वतंत्र, उदार, अहिंसक, लोकातांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और सामाजिक न्याय के पक्षधर छात्राएं-छात्र और संगठन स्वाभाविक तौर पर एबीवीपी के दकियानूसी एजेंडे के खिलाफ डट कर खडे होते हैं। जिसका इस्तेमाल कम्युनिस्ट छात्र संगठन सीमित एंजेडे के लिए करते हैं। सबसे बड़ा सवाल ये है कि कम्यूनिस्ट छात्र संगठनों की जीत पर क्या इससे शिक्षा के निजीकरण की जो कवायद चल रही है उसपर लगाम लग सकेगी।
नीरज सिंह
राष्ट्रीय अध्यक्ष, SYS
socialistpartyindia@gmail.com
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