14.10.17

पुलिस-प्रशासन मोतीलाल को अब भी नक्सली साबित करने की कुचेष्ठा में जुटा हुआ है?







विशद कुमार
स्वतंत्र पत्रकार
रांची : पिछले तीन महीने से मोतीलाल बास्के की हत्या के विरोध में लगातार हो रहे आंदोलनों के बाद भी न तो सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया हो रही है और न ही प्रशासनिक स्तर से मोतीलाल की हत्या को पुलिस की गलती करार दिया जा रहा है और न ही मोतीलाल के नक्सली होने का कोई पुख्ता सबूत ही दिया जा रहा है, जिससे हो रहे आंदोलनों पर विराम लग सके और मृतक के परिवार वाले को न्याय मिल सके। ऐसा न होना एवं प्रशासनिक खामोशी के पीछे की असली वजह यह है कि अभी भी पुलिस प्रशासन मोतीलाल को नक्सल साबित करने की कुचेष्ठा में लगा है, मगर वह अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो पा रहा है, जबकि दूसरी तरफ सारे सबूत चीख-चीख कर मोतीलाल को निर्दोश व पुलिस को दोशी साबित कर रहे हैं। स्थानीय जन संगठनों, पंचायती स्तर के जन प्रतिनिधियों एवं मानवाधिकार संगठनों द्वारा की गई जांच व मीडिया की रपटों ने साफ कर दिया है कि आदिवासी मोतीलाल बास्के एक डोली मजदूर था और साथ ही जैन धर्म स्थल पारसनाथ पहाड़ पर दाल-भात एवं चाय-बिस्कुट की दुकान चलाता था। 

यही वजह है कि मोतीलाल की हत्या इतना बड़ा मुद्दा बन गया है कि कई जन संगठन, सामाजिक संगठन एवं कई राजनीतिक दलों को का एक मोर्चा ‘‘दमन विरोधी मोर्चा’’ का गठन हुआ है, जिसमें ‘मजदूर संगठन समिति’, ‘मरांग बुरू सांवता सुसार बैसी’, ‘झारखंड विकास मोर्चा’, ‘झारखंड मुक्ति मोर्चा’, ‘अखिल भारतीय किसान महासभा (माले)’ एवं ‘आजसू पार्टी’ शामिल हुए हैं। अतः इसी मोर्चा द्वारा पुलिस की इस अमानवीय कारवाई के खिलाफ लगातार जन आंदोलन जारी है और इसी कड़ी में पिछले 9 अक्टूबर को ‘‘दमन विरोधी मोर्चा’’ द्वारा रांची में राजभवन के समक्ष अनिष्चित कालीन धरना कार्यक्रम षुरू किया गया। पूर्व निर्धारित इस धरना कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, आजसू पार्टी के सुप्रीमो सुदेष महतो सहित पूर्व मंत्री बंधु तिर्की वगैरह को शामिल होना तय था। मगर जब तक धरना कार्यक्रम में उक्त नेता पहुंचते, कार्यक्रम षुरू होने के कुछ ही देर बाद पुलिस कार्यक्रम स्थल पर पहुंच गई और कार्यक्रम करने का आदेष पत्र मांगने लगी। मजदूर संगठन समिति के महासचिव बच्चा सिंह ने पुलिस को बताया कि आदेष पत्र नहीं मिला है, लेकिन एसडीओ को सूचना दे दी गई है जिसका रिसिव कॉपी है। मगर धरना स्थल पर उपस्थित सीटी डीएसपी एवं इंस्पेक्टर ने बच्चा सिंह की एक भी नहीं सुनी, सूचना देकर पुलिस बल एवं पुलिस बस को बुला लिया और धरना बंद नहीं करने पर गिरफ्तार करने की धमकी दी। पुलिस के इस नापाक रवैए से आंदोलनकारी आक्रोषित हो रघुवर सरकार व पुलिसिया गुण्डागर्दी के खिलाफ जोर जोर से नारा लगाने लगे। तभी पूर्व मंत्री बंधु तिर्की का आगमन हुआ, तो पुलिस वाले थोड़े ढिले पड़े, मगर आंदोलनकारियों का आक्रोष थमा नहीं। पुलिस की धमकी से आक्रोषित आंदोलनकारी गिरफ्तारी देने पर आमादा थे। बंधु तिर्की ने आंदोलनकारियों के बीच अपनी राजनीतिक समझ रखी और चले गए। अंततः पुलिस ने धरना स्थल पर लगा टेंट को गिरा दिया एवं आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर रांची के मोहरावादी मैदान में बिठा दिया। दो घंटे के बाद गिरफ्तार आंदोलनकारियों को लगभग छः बजे शाम को निजी मुचलके पर छोड़ा गया, जो इस बात का एक ठोस गवाह है कि शासन तंत्र के इशारे पर पुलिस द्वारा धरना कार्यक्रम को विफल करने की यह एक चाल थी। क्योंकि सूत्र बताते हैं कि जनआंदोलनों जैसे कार्यक्रम प्रशासन को सूचना देकर ही किए जाते हैं। क्योंकि यह तार्किक सच है कि कोई भी अधिकारी सरकार विरोधी कार्यक्रम की अनुमति देने का साहस नहीं कर सकता है। इससे साफ जाहिर है कि मोतीलाल की हत्या से उपजे जनाक्रोष से सरकारी मंत्र डर गया है और इस जनाक्रोष को दबाने का हर संभव कोषिष में लगा है। इसका पुख्ता प्रमाण यह है कि जब राजभवन के समक्ष धरना कार्यक्रम में शामिल होने गिरिडीह मधुबन से किराए के दो बसों पर लगभग 600 लोग आ रहे थे तो रांची से पहले ओरमांझी स्थित टोल टैक्स के पास ही उन्हें पुलिस द्वारा रोक दिया गया। वहीं कार्यक्रम के मुख्य आयोजन कर्ता मजदूर संगठन समिति के महासचिव बच्चा सिंह एवं अन्य कई आंदोलनकारियों को पुलिस द्वारा सिकिदरी के पास रोक दिया गया। मगर आंदोलनकारी एवं बच्चा सिंह अपनी गाड़ी छोड़ कर और पुलिस को चकमा देकर धरना स्थल पर पहुंच गए थे। बच्चा सिंह बताते हैं कि हमें पहले से ही ऐसा अंदेशा था, क्योंकि लगातार तीन महिने से हो रहे इतना तीखा जनआंदोलनों के बाद भी मामले पर शासन व प्रशासन की खामोशी इस बात के गवाह हैं कि वे इस जनाक्रोश को मानसकि रूप से थकाकर असफल करने की नापाक कोशिश में लगे हैं, मगर हम उनके मंसूबे को कामयाब नहीं होने देंगे।
उल्लेखनीय है कि 9 जून 2017 को गिरिडीह जिले के मधुबन स्थित जैन धर्मावलंबियों का विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पारसनाथ पहाड़ की तलहटी में बसा ढोकट्टा गांव निवासी संताल आदिवासी मोतीलाल बास्के जब पहाड़ से उतर रहा था तभी सीआरपीएफ का कोबरा बटालियन ने उसे गोली मार दी। और 10 जून को अखबारों में यह सूचना प्रसारित कर दी कि 20 लाख का ईनामी नक्सली मारा गया। इस घटना की सबसे शर्मनाक बात यह रही कि 10 जून को झारखंड के डीजीपी डी. के. पांडेय ने गिरिडीह एसपी अखिलेश बी. वारियार को इस हत्या में शामिल पुलिस वालों को पार्टी देने के लिए एक लाख रूपये नगद दिया और 15 लाख रूपये बाद में देने की घोशणा भी की।
मगर जैसे मामले की तह में जाया गया तो पता चला कि सीआरपीएफ की गोली का शिकार कोई नक्सली नहीं बल्कि डोली मजदूर आदिवासी मोतीलाल बास्के है। फिर क्या था पूरे क्षेत्र में कोहराम मच गया। मोतीलाल मजदूर संगठन समिति एवं संताल आदिवासियों का एक सामाजिक संगठन मारांग बुरू सांवता सुसार बैसी का सदस्य था। दोनों संगठनों एवं क्षेत्र के पंचायती राज के जनप्रतिनिधियों ने मामले को गंभीरता से लेते हुए 14 जून को मधुबन में एक महापंचायत बुलाई। जिसमें मजदूर संगठन समिति, मारांग बुरू सांवता सुसार बैसी, पंचायती राज के जनप्रतिनिधियों एवं कई राजनीतिक दलों झामुमो, झाविमो, भाकपा माले सहित विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के लोग शामिल हुए। महापंचायत में लगभग पांच हजार से अधिक लोग शामिल हुए थे। उसके बाद जो आंदोलन का दौर शुरू हुआ तो थमने का नाम नहीं ले रहा है।
महापंचायत में ही हत्या की न्यायिक जांच व हत्यारों को सजा दिलाने की मांग को लेकर आंदोलन करने के लिए ‘‘दमन विरोधी मोर्चा’’ का भी गठन किया गया, इसी दिन मोतीलाल की पत्नी पार्वती देवी ने मधुबन थाना में हत्यारे सीआरपीएफ कोबरा पर मुकदमा दर्ज करने के लिए एक आवेदन भी दिया। महापंचायत से गठित ‘दमन विरोधी मोर्चा’ ने 17 जून को मधुबन बंद, 21 जून को गिरिडीह में डीसी कार्यालय के समक्ष धरना, 2 जुलाई को पूरे गिरिडीह जिला में मशाल जुलूस व 3 जुलाई को पूरा गिरिडीह जिला बंद की घोशणा की। कालांतर में ये सारे कार्यक्रम तय तिथि पर ही शानदार ढंग से संपन्न हुए। हां, इसमें एक बदलाव जरूर हुआ कि 21 जून को डीसी कार्यालय के समक्ष प्रस्तावित धरने को प्रशासन द्वारा आदेश नहीं देने के कारण गिरिडीह में ही अंबेडकर चौक पर धरना करना पड़ा, लेकिन मांगपत्र डीसी को ही सौंपा गया और उन्हीं के माध्यम से राज्यपाल व मुख्यमंत्री को भी मांगपत्र भेजा गया, इस धरना कार्यक्रम में भी हजारों लोग शामिल हुए, जबकि पुलिस ने मधुबन में जबरन हजारों लोगों को गिरिडीह जाने से रोक दिया था। 15 जून को इस पत्रकार ने मृतक मोतीलाल का गांव ढोकट्टा जाकर मामले तफ्सीस की, उसी दिन मृतक की पत्नी पार्वती देवी  अपने तीनों बच्चे के साथ रांची जाकर झारखंड विधानसभा के विपक्ष के नेता हेमंत सोरेन से मुलाकात की, उन्होंने पार्वती व उसके बच्चों के साथ संवाददाता सम्मेलन कर उसकी मांगों को पुनः दोहराया और न्याय मिलने तक साथ देने का वचन भी दिया। लगातार जनदबाव बढ़ता देख झारखंड पुलिस मुख्यालय ने 16 जून को सीआईडी जांच की घोशणा की यानी कि हत्यारों को ही हत्या की जांच करने का हुक्म दिया गया ताकि जनांदोलन ठंडा पड़ जाए, लेकिन ‘दमन विरोधी मोर्चा’ अपने मांगों पर अड़ी रही। 20 जून को ढोलकट्टा में झारखंड के पूर्व मंत्री व झामुमो नेता मथुरा महतो आए और मांगों से सहमति जताई। 21 जून को झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन गांव आए और मोतीलाल की हत्या का मामला लोकसभा व राज्यसभा मे उठाने का वादा किया। 1 जुलाई को मानवाधिकार संगठन सीडीआरओ की जांच टीम गांव आई और पूरे प्रमाण के साथ मोतीलाल की हत्या को झूठी मुठभेड़ साबित किया। इस टीम ने अपनी अंतरिम जांच रिपोर्ट 2 जुलाई को गिरिडीह में प्रेस के सामने प्रस्तुत की। 12 जुलाई को झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी गांव आए, उन्होंने भी मांगों का समर्थन किया व मुख्यमंत्री को खत लिखकर मृतक की हत्या की न्यायिक जांच की मांग की।
सनद रहे कि इतना बड़ा व लगातार जनांदोलनों के बाद भी जब झारखंड सरकार व गिरिडीह प्रशासन के कान पर जूं नहीं रेंगी, तो ‘दमन विरोधी मोर्चा‘ ने 10 अगस्त को विधानसभा मार्च का ऐलान किया और इसकी तैयारी के लिए गांव-गांव में सभा करने की घोशणा की, जिसकी शुरूआत मोतीलाल के गांव ढोलकट्टा से 21 जुलाई को हुई, बाद में 22 जुलाई को बदगावां, 23 जुलाई को दालान चलकरी, 24 जुलाई को महुआटांड़, 25 जुलाई को मसनोटांड़, 26 जुलाई को कारी पहाड़ी व 27 जुलाई को हरलाडीह गांव में सभा किया गया। इसी बीच 20 जुलाई को आजसू के जुगलसलाई विधायक रामचंद्र सहिस के नेतृत्व में एक टीम गांव में आई और इस टीम ने भी न्यायिक जांच की मांग सरकार से की। मालूम हो कि आजसू का झारखंड में भाजपा के साथ गठबंधन है और यही गठबंधन अभी सत्ता में है। 25 जुलाई को झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व वर्त्तमान में विधानसभा में विपक्ष के नेता हेमंत सोरेन गांव आए और सरकार की कुंभकर्णी नींद पर आक्रोश जताया। 27 जुलाई को राज्यसभा में झामुमो के राज्यसभा सांसद संजीव कुमार ने राज्यसभा में मोतीलाल की हत्या का सवाल उठाया व न्यायिक जांच की मांग की। 10 अगस्त के विधानसभा मार्च में गिरिडीह जिला से जा रहे तमाम लोगों की गाड़ियों को पुलिस ने रोक दिया, फलस्वरूप मधुबन में ही लोगों को सभा करनी पड़ी, लेकिन फिर भी सैकड़ों लोगों ने पुलिस की घेरेबंदी को धता बताते हुए विधानसभा मार्च किया व मांगों से संबंधित ज्ञापन विधानसभाध्यक्ष को सौंपा। 13 सितम्बर को गिरिडीह जिला के पीरटांड़ स्थित सिद्धु-कान्हू मैदान में 10 हजार लोगों की एक सभा ‘दमन विरोधी मोर्चा’ के द्वारा ‘मजदूर संगठन समिति’ के केन्द्रीय महासचिव बच्चा सिंह की अध्यक्षता में की गई, जिसे पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, झामुमो सांसद विजय हांसदा, झामुमो विधायक स्टीफन मरांडी, जयप्रकाश पटेल, मार्क्सवादी समन्वय समिति के विधायक अरूप चटर्जी, माले नेता पूरन महतो, सांवता सुसार बैसी के नेता सह प्रमुख सिकंदर हेम्ब्रम, विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के नेता दामोदर तुरी, आजसू नेता रविलाल किस्कू ने संबोधित करते हुए मोतीलाल की हत्या की न्यायिक जांच व हत्यारे को सजा देने तक लड़ाई जारी रखने का ऐलान किया।
कई सवाल हैं जो मोतीलाल को निर्दोश साबित करने के लिए काफी हैं। जैसे अगर मोतीलाल नक्सल था तो वह 2003 से ही पारसनाथ पर्वत पर दूकान चला रहा था व डोली मजदूरी का काम भी करता था, जहां पर हमेशा सैकड़ों सीआरपीएफ के जवान मौजूद रहते हैं, तो फिर उसने उसे उस वक्त ही क्यों नहीं पकड़ा ? अगर वह दुर्दांत माओवादी था, तो फिर उसे प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास बनाने के लिए सरकार से पैसे कैसे मिले ? (वह गांव का प्रधानमंत्री आवास योजना का पहला लाभुक था, उसके बैंक खाते में इसका पहला किस्त भी आया हुआ है और आवास का निर्माण भी शुरू हो चुका था, लेकिन उसकी हत्या के बाद अभी तक वह अधूरा ही है।) अगर वह दुर्दांत माओवादी था, तो 26-27 फरवरी 2017 को मधुबन में आयोजित ‘मरांग बुरू बाहा पोरोब’ में उसे विधि व्यवस्था का दायित्व कैसे दिया गया, जबकि इसमें बतौर मुख्य अतिथि झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू शामिल हुई थी ?
कहना ना होगा कि मोतीलाल की हत्या और पुलिस की नीयत पर कई सवाल हैं जिसका जवाब प्रशासन अभी तक नहीं दे पाया है। उसके सवालों को लेकर जनआंदोलनों को कुचलने का हर संभव प्रयास शासन-प्रशासन जरूर कर रहा है जो उसकी नीयत पर कई सवाल खड़े करते हैं।
विशद कुमार
स्वतंत्र पत्रकार
रांची
vishadkumar217@gmail.com

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