मीडिया पर लिखी इस कविता पर गौर करें :- -
आज कलम का कागज से मै दंगा करने वाला हूँ,
मीडिया की सच्चाई को मै नंगा करने वाला हूँ ।
मीडिया जिसको लोकतंत्र का चौंथा खंभा होना था,
खबरों की पावनता में जिसको, गंगा होना था,
आज वही दिखता है हमको वैश्या के किरदारों मे,
बिकने को तैयार खड़ा है गली चौक बाजारों मे ।
दाल में काला होता है तुम काली दाल दिखाते हो,
सुरा सुंदरी उपहारों की खुब मलाई खाते हो ।
iगले मिले सलमान से आमिर, ये खबरों का स्तर है,
और दिखाते इंद्राणी का कितने फिट का बिस्तर है ।
लोकतंत्र की संप्रभुता पर तुमने कैसा मारा चाटा है,
'दिल से' ये दुनिया समझ रही है खेल ये बेहद गंदा है,
मीडिया हाउस और नही कुछ ब्लैकमेलिंग का धंधा है।
गुंगे की आवाज बनो अंधे की लाठी हो जाओ,
सत्य लिखो निष्पक्ष लिखो और फिर से जिंदा हो जाओ।
Satish K.Singh
satish_singh1960@yahoo.co.in
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