देश की बड़ी मर्डर मिस्ट्रियों में एक अरुषि-हेमराज मर्डर केस भी है। उसकी नाकामी की सबसे बड़ी वजह पुलिस तो है ही लेकिन मीडिया की नाकामी को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। भारतीय मीडिया की नाकामी के सबूत के तौर पर मील का पत्थर बन चुकी उस वारदात को समझने के लिए इस तस्वीर को ग़ौर से और खुले ज़हन से देखना होगा।
ये तस्वीर उसी के बारे में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की गई एक प्रेस कॉंफ्रेस की है। पुलिस के पीछे खड़े लगभग सभी लोग पत्रकार हैं। हमने जितना सुना है उसके मुताबिक़ किसी भी प्रेस कॉंफ्रेस, ख़ासतौर से किसी भी वारदात की जानतारी वाली पुलिस पीसी में पत्रकारों और पुलिस का लगभग एंकाउंटर होता है। जहां हर पत्रकार वारदात और पुलिस के दावों के बाल की खाल निकालने की कोशिश करता है। लेकिन इस तस्वीर में बड़े बड़े और नामी चैनलों के रिपोर्टर पुलिस के साथ उसकी बैक बन कर खड़े दिखाई दे रहे हैं। हो सकता है कुछ इस लालच में यहां खड़े हों कि उनकी तस्वीर और वीडियो भी जनता को दिखाई देगी। लेकिन सच्चाई यही है कि शाम को पुलिस से ईनाम पाने वाले और सैलरी की तरह पुलिस से मिलने वाली मंथली का इंतज़ार करने वाले कुछ पत्रकार हमेशा पुलिस की बैक में उनके बचाव में ही खड़े नज़र आते रहे हैं।
हम ये नहीं कह रहे कि इस तस्वीर में नज़र आने वाले सभी पत्रकार पुलिस के पीछे बैक बनकर खड़े हैं। लेकिन इनमें कुछ ऐसे भी हैं जो अगर इस पत्रकार वार्ता के दौरान पुलिस के पीछे सपोर्ट बनने के बजाय सामने से कुछ सवाल करने की हिम्मत करते तो शायद अरुषि केस की तस्वीर कुछ और होती।
पुलिस ने अपने इक़ाबल के मुताबिक और उसकी की फील्ड यूनिट ने काम नहीं किया, पत्रकारों ने उसकी बैक बन कर सवाल करने के बजाए अपने कर्तव्यों से समझौता किया। नतीजा सबके सामने है। ये सभी मेरे साथी हैं मेरे दोस्त हैं लेकिन आज ये तस्वीर देखकर अपने रोक नहीं पाया। बड़ी माफी के साथ सभी दोस्तों और पत्रकारों से माफी।
(लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी पत्रकार हैं। डीडी आंखो देखीं, सहारा समय, इंडिया टीवी, इंडिया न्यूज़ समेत कई नामी चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं।)
No comments:
Post a Comment