संजय सक्सेना, लखनऊ
उत्तर प्रदेश की सियासत क्या एक बार फिर करवट ले रही है। जो भाजपा अपनी प्रतिद्वंदी सपा-बसपा को खत्म मान कर चल रही थीं,वह ही सपा-बसपा योगी सरकार की खामियों और नीतियों का फायदा उठाकर एक बार फिर अपना ‘सिर’ उठाने लगी हैं। भले ही लोकसभा और विधान सभा चुनाव के बाद नगर निकाय और नगर पंचायत चुनावों को बीजेपी आलाकमान अपने पक्ष में बता रहा हो,लेकिन स्थितियां जैसी दिखाई दे रही हैं,वैसी है नहीं,जिस हिन्दुत्व की लहर के सहारे मोदी ने आम और विधान सभा चुनाव जीते थे, उसका रंग योगी सरकार के कुछ गलत फैसलों और ढीले-ढाले रवैये के कारण फीका पड़ता जा रहा है। आज की तारीख में न तो बीजेपी के पक्ष में मतदान करने वाले खुश हैं, न ही बीजेपी कार्यकर्ता संतुष्ट नजर आ रहे हैं।
सत्ता संभालने के बाद योगी ने जो ताबड़तोड़ फैसले लिये थे,वह अंजाम तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ चुके हैं। अवैध बूचड़खाने बंद करने का ढिंढोरा चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित तमाम नेताओं ने खूब पीटा था। योगी ने शपथ लेते ही अवैध बूचड़खाने बंद करने का फरमान भी जारी कर दिया था,कुछ दिनों तक सख्ती भी हुई,परंतु आज की तारीख में फिर से अवैध बूचड़खाने बदस्तूर शुरू हो गये हैं,कहीं कोई देखने-सुनने वाला नहीं है। इसी तरह से खुले में गोश्त की बिक्री नहीं करने के फैसलों की भी खूब धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
ऐसा ही हाल एंटी रोमिया स्क्वाड का भी है। अब यह न स्कूलों के बाहर दिखता है, न भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में। जबकि महिला सुरक्षा आज भी एक बड़ा सवाल बना हुआ है। शहरों से लेकर गांवों तक में छेड़छाड़ की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। आज भी महिलाएं एंटी रोमियो स्क्वाड की जरूरत महसूस करती हैं,यह और बात है कि योगी सरकार राजनैतिक दबाव में इसको लेकर बैकफुट पर दिखाई दे़ रही है। मुसीबत में फंसी महिलाओं को तत्काल मदद देने के लिये बनी सेवाएं यूपी 100 और महिला पावर लाइन 1090 की अक्षमता के चलते पिछले दिनों डीजीपी सुलखान सिंह तक को छात्राओं से सारी बोलना पड़ गया था।
निजी स्कूलों की फीस कम किये जाने, निशुल्क लैपटॉप वितरण, 24 घंटे बिजली देने, पावर फॉर ऑल, बुंदेलखण्ड को 20 घंटे बिजली देने, एंटी रोमियो स्क्वायड, महिला सुरक्षा, गोपालक योजना, मुख्यमंत्री ग्रामोद्योग रोजगार योजना, एंटी भूमाफिया टास्क फोर्स, कृषि को विकास का आधार बनाने, गोमती की सफाई तथा भ्रष्टाचार रोधी टास्क फोर्स सहित योगी सरकार की तमाम योजनाओं तथा वादों की लिस्ट तो लम्बी-चैड़ी है,लेकिन प्रगति मात्र शून्य के करीब ही है।
कानून व्यवस्था ही नहीं सामाजिक रूप से भी योगी सरकार के कई फैसले कसौटी पर खरे नहीं उतरते दिख रहे हैं,जिससे तमाम वर्गों की नाराजगी योगी के प्रति बढ़ती जा रही है। सत्ता संभालते ही सीएम योगी के एक आदेश पर उत्तर प्रदेश सरकार ने 15 सार्वजनिक अवकाशों को रद्द कर दिया था। इसमें से कई अवकाश ऐसे थे जो समाज के तमाम वर्गो के महापरूषों की याद में दिये जाते थे।सरकारी और सामाजिक रूप से इसका कभी विरोध भी नहीं हुआ,लेकिन योगी ने सत्ता संभाले ही घोषणा कर दी कि अवकाश क्यों ?इसके बदले महापुरुषों के जन्म दिवस के अवसर पर प्रदेश के सभी शिक्षण संस्थाओं में उनके व्यक्तित्व, कृतित्व एवं प्रेरणा देने वाली सीखों को वर्तमान युवा पीढ़ी में प्रचारित व प्रसारित करने के उद्देश्य से कम से कम एक घंटे की सभा आयोजित की जाये। महापुरूषों की जयंती पर कार्यक्रम आयोजित हो इस पर तो योगी अमल नहीं करा सके, अलबत्ता निजी स्कूलों के मालिक जो सरकार का कोई फैसला नहीं मानते हों ? शिक्षिकों को न्यूनतम वेतनमान या अन्य सुविधाएं न देते हों ? परंतु इन्होंने छुट्टियां रद्द करने का आदेश तुरंत मान लिया।
ऐसा लगता है कि भारी बहुमत से सत्ता में आई भाजपा और उसके बाद सीएम बनाये गये फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ सरकार अपना नौ महीने का कार्यकाल पूरा करते-करते बुरी तरह हांफने लगेगी। योगी सरकार की ‘उम्र’ के साथ-साथ नाकामियों का पहाड़ भी बढ़ता जा रहा हैं। गोरखपुर स्थित मेडिकल कॉलेज में करीब 60 मासूमों की मौतें आज भी न तो भुलाई जा सकती है, न पुराने आंकड़ों के सहारे इस पर पर्दा डाला जा सकता है।इसी प्रकार से बहुप्रचारित किसान ऋण मोचन योजना भी बदनामी का कारण बनती जा है। चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी से लेकर तमाम नेताओं ने कहा था कि उनकी सरकार बनी तो लघु एवं सीमान्त किसानों के एक लाख रुपये तक के कर्ज माफ कर दिये जायेंगे,कुछ के कर्ज माफ भी किये गये,लेकिन लाभान्वित किसानों में अनेक किसान ऐसे थे, जिनमें किसी का एक रुपये तो किसी का डेढ़ रुपये का कर्ज माॅफ हुआ। इटावा के एक किसान को, जिसने 28 हजार रुपये का कर्ज लिया था, उसका एक रुपये 80 पैसे का कर्ज माफ किया गया इसी तरह से यही के मुकुटपुर के 2 लाख से ज्यादा के कर्जदार एक किसान के डेढ़ रुपये माफ हुए।. बिजनौर की बलिया देवी के हिस्से में तो सिर्फ नौ पैसे की कर्ज माफी आई थी। ऐसे कर्जमाफी के तमाम मामले सुर्खिंया बटोर रहे हैं। राज्य सरकार के ही आंकड़ों के अनुसार पहले चरण में जिन 11 लाख 93 हजार किसानों का कर्ज माफ किया गया था, उनमें एक रुपये से लेकर एक हजार रुपये तक की माफी वाले किसानों की संख्या 34,262 थी।
बात एंटी भू-माफिया या अतिक्रमण विरोधी अभियान की कि जाये तो इस मोर्चे पर भी योगी सरकार असफल नजर आ रही है। योगी सरकार एंटी भू- माफिया अभियान को सफल बनाने के लिये तमाम जन शिकायतों पर कड़ी कार्रवाई करने की बात करती है,लेकिन जन शिकायत के लिये बने पोर्टल में इतनी पूछतांछ होती है कि शिकायत करने वाला डर-सहम कर शिकायत करने की हिम्मत ही नहीं जुटा जाता है। किसी भू-माफिया के खिलाफ कोई कैसे आवाज बुलंद कर सकता है,जब शिकायत करने वाले से उसका नाम,पता मोबाइल नंबर सहित तमाम जानकारियां मांगी जाती हों। बात अतिक्रमण की कि जाये तो आज तक अतिक्रमण के लिये जिम्मेदार किसी सरकारी कर्मचारी/ पुलिस वालों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया गया है, जबकि बच्चा-बच्चा जानता है कि प्रदेश में अतिक्रमण के लिये कौन सी ताकतें जिम्मेदार हैं। जमीनों पर कब्जा हो या फिर अतिक्रमण की बात, इसके पीछे नेताओं, पुलिस, नगर निगम का गठजोड़ काम करता है, जिनकी शह पर ही भू-माफिया और अतिक्रमणकारी पनपते और फलते-फूलते हैं। हाॅ, योगी की सख्ती का नतीजा इतना जरूर हुआ है जो नाजायज और गलत काम पचास हजार में हो जाता था, अब वही काम दोगुने रेट पर होता है।
बात यहीं तक सीमित नहीं है। कभी-कभी तो ऐसा भी लगता है कि योगी सरकार भी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह तुष्टिकरण की राह पर ही चल रही है। योगी सरकार अवैध बूचड़खानों, नियम विरूद्ध चल रहे मदरसों, अतिक्रमण करके बनाये जा रहे धर्म स्थलों के खिलाफ कार्रवाई करने में ढुलमुल रवैया अख्तियार किये हुए है। योगी सरकार एक वर्ग विशेष में गलत संदेश न जाये,इसके लिये उनके उलटे-सीधे कामों की तरफ से मुंह मोड़े हुए हैं तो यह लोग इसका भरपूर फायदा उठाकर जमीनों पर अवैध कब्जे/अतिक्रमण आदि करने में लगे हैं। पूरे प्रदेश में अतिक्रमण करके धंधा चलाने वालों ने एक समानांत्तर व्यवस्था ही खड़ी कर ली है,नेताओं, दबंगों, पुलिस और नगर निगम/परिषद के भ्रष्ट कर्मचारियों का गठजोड़ इसके पीछे काम करता है। अतिक्रमण करके अपनी दुकान चलाने वाले तमाम व्यापारियों की तो माली हालत इतनी अच्छी है कि उन्होंने बड़े-बड़े मकान बना लिये हैं। बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ते हैं। इनके घरों में सुख-सुविधाओं के सभी सामान उपलब्ध हैं। समाज में इनकी प्रतिष्ठा है। अतिक्रमण से सरकार को चैतरफा नुकसान उठाना पड़ता है। अतिक्रमण करने वाले चोरी की बिजली इस्तेमाल करते है। जाम की समस्या के यही कारक है। जाम की वजह से पूरे प्रदेश में प्रति माह हजारों करोड़ का पेट्रोल/डीजल बर्बाद हो जाता है। अतिक्रमण अप्रत्क्ष रूप से प्रदूषण बढ़ाने का भी कारण बनता है। इस बात को भी भुलाया नहीं जा सकता है।
अतिक्रमण की तरह ही सड़कों पर दौड़ते अवैध डग्गामार वाहन भी सरकार के लिये चुनौती बने हुए हैं। योगी सरकार द्वारा बातें तो बड़ी-बड़ी की गई थीं, लेकिन इस पर अमल नहीं हो पाया। आज भी ‘पहुंच’ के बल पर डग्गामार वाहन प्रदूषण का स्तर बढ़ाते हुए फर्राटे भर रहे हैं। दूर न जाकर लखनऊ की ही बात की जाये तो यहां सड़कों पर हजारों अवैध डग्गामार वाहन सिर्फ इस लिये दौड़ रहे हैं क्योंकि उन्होंने थाने में सैटिंग कर रखी है और आरटीओं की मेहरबानी उनपर बरसती रहती है।
कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि योगी जी का ब्यूरोक्रेसी पर नियंत्रण ही नहीं है। प्रदेश के विकास,स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार से लेकर कानून व्यवस्था तक के तमाम मामलों पर तेजी से कार्रवाई करने की बजाय नौकरशाह उस पर कुंडली मारे बैठे हुए हैं। प्रदेश को जंगलराज से मुक्त करने के लिये टाडा, मकोका, मीसा जैसा कानून ‘यूपीकोका’ लाने की बात होती है, लेकिन जो कानून मौजूद हैं, उसे भी सख्ती से नहीं लागू किया जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण तब देखने को मिला योगी की पुलिस ने दोपहिया वाहन के पीछे बैठे लोंगो का हैलमेट नहीं पहनने के कारण चालन कर दिया,जबकि हकीकत यह है कि लखनऊ सहित पूरे प्रदेश में अभी भी लोगों में हैलमेट पहनकर वाहन चलाने की आदत ही नहीं पड़ी है। न तो सरकार उनको हैलमेट के प्रति जागरूक कर पाई है, न ही ऐसे लोगों पर सख्ती से शिकंजा कसने में कामयाब रही है,जबकि हैलमेट नहीं पहनने के कारण सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों का आंकड़ा लगातार चिंता का विषय बना हुआ है। कुल मिलाकर शोर तो बहुत हो रहा है,लेकिन नौ महीने पुरानी योगी सरकार जनमानस पर कोई छाप नहीं छोड़ पाई है। कहीं न कहीं योगी सरकार भी पूर्वतर्वी सरकारों की तरह ही चलती दिख रही है। कानून व्यवस्था आज भी प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या है। खाकी का ‘इकबाल’ जाग ही नहीं रहा है।
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