5.12.17

विस्फोट से भी ज्यादा खतरनाक है बढ़ती भीड़

भारत की बात होते ही जहन में एक ही बात सामने आती है, यहां रेल, बस, मैट्रो व सड़कों पर सिर्फ और सिर्फ भीड़ ही भीड़ नजर आती है। देश के महानगरों में लोगों की संख्या दिन प्रति दिन लगातार बढ़ती जा रही है और गांव-कस्बे खाली हो रहे हैं। लोग रोजगार की तलाश में अपने गांवों को छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। महानगरों में बढ़ती भीड़ किसी विस्फोटक स्थिति से कम नहीं है।

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। वहीं क्षेत्रफल के लिहाज से देखा जाए तो भारत दुनिया का सबसे घनी आबादी वाला देश है। किसी देश की जनता उस देश की ताकत होती है, लेकिन वही जनता अगर भीड़ में तब्दील हो जाए तो उसी देश के लिए खतरनाक हो सकती है।
हमारा देश कई तरह की समस्याओं से जुझता रहता है। राजनेता उन समस्याओं को चुनावी मुद्दा बनाकर आसानी से कुर्सी पर काबिज हो जाते हैं, लेकिन देश का कोई भी नेता या नागरिक इन समस्याओं की जड़ में नहीं जाना चाहता। किसी भी देश की सम्वृद्धि उस देश के आखिरी व्यक्ति की सम्वृद्धि पर निर्भर करती है, लेकिन जब देश की आबादी सबा सौ करोड़ हो तो उस देश के प्रत्येक व्यक्ति को सम्वृद्ध बनाना बहुत मुश्किल है। वो भी तब जब शिक्षा निम्न स्तर पर हो।
देश की बढ़ती आबादी देश के लिए घातक है। इसके कुछ जीते जागते उदाहरण हैं। अभी हाल ही में मुंबई महानगर के एक उपनगर स्थित रेवले स्टेशन के पुल पर भगदड़ के कारण कई लोगों की जान चली गई थी। इससे पहले मध्यप्रदेश स्थित रतनगढ़ में एक धार्मिक स्थल में हुई भगदड़ में सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी। कुछ वर्ष पहले दशहरा पर्व पर पटना के मैदान में हुई भगदड़ में कई लोग मारे गए थे। इस तरह के और भी सैकड़ों उदाहरण है। और यह सब न समझी के कारण होता है। यहां किसी विस्फोट की जरूरत नहीं है। बस एक अफवाह उड़ते ही, लोग खुद वा खुद भाग खड़े होते है और अपनी जान गंवा बैठते हैं।
अब यहां ध्यान देने वाली बात है कि दुनिया के कई भीड़भाड़ वाले शहरों को आतंकवादियों ने अपना निशाना बनाया है। और सोचने वाली बात है कि यहां न तो उन्होंने किसी बंदूक का इस्तेमाल किया और ना ही किसी बम का। बल्कि उन्होंने भीड़भाड़ पर भारी वाहन चढ़ाकर निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया। हालांकि भारत में अभी तक ऐसी कोई घटना सामने नहीं आई है। परन्तु यहां भीड़ में भगदड़ से मरने वाली खबरें आम बात हैं।
बढ़ती भीड़ के कारण इंसान-इंसान का दुश्मन होता जा रहा है। इसका उदाहरण आप रेल के जनरल डिब्बों में खूब देखते होंगे। जहां डिब्बे के अंदर बैठा हर इंसान बाहर खड़े इंसान को डिब्बे में घुसने से रोकता है। इन डिब्बों में लड़ाई-झगड़े, मारपीट व हत्या जैसे जघन्य अपराध भी सामने आए हैं। भीड़ के कारण ही यात्रियों का सामान चोरी होना, जेब कटना, चेन स्नेचिंग जैसी वारदाते होती हैं।
ये बढ़ती आबादी का ही परिणाम है जो देश की राजधानी गैस चैम्बर बन गई है। जब महानगरों में उद्योग धंधे बढ़ेंगे, इंडस्ट्रीज एरिया बढ़ेंगे तो प्रदूषण भी बढ़ेगा। इसके अलावा बढ़ती आबादी के कारण पेयजल संकट, ट्रांस्पोटेशन, जाम होती सड़कें एकांकी परिवार जैसी समस्या उत्पन्न होती हैं। ये विस्फोटक आबादी का ही परिणाम है कि प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित करना मुश्किल नजर आता है। देश के प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा पर सवाल पैदा करता है। बढ़ती आबादी के कारण ही देश में रोजगार की अपेक्षा बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है। बढ़ती आबादी के कारण ही देश में सरकारी योजनाओं को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाना एक चुनौती की तरह नजर आता है।
अब सवाल उठता है कि इस नकारात्मक पहलु को सकारात्मक उर्जा में कैसे बदला जाए। जैसा कि पहले भी बताया है कि देश का कोई भी व्यक्ति इस मूल समस्या के समाधान की ओर ध्यान देने को तैयार नहीं है, वहीं राजनीतिक लोग इस भीड़ को केवल अपना वोटबैंक समझते हैं और उनका इस्तेमाल करते हैं। इस समस्या से उबरने के लिए हमें सबसे पहले अपने पड़ोसी देश चीन से कुछ सीखने की जरूरत है। जो दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है। उन्होंने अपने देश की जनता को एक सूत्र में पिरौते हुए अपनी ताकत का लोहा पूरी दुनिया से मनवाया है। जब राष्ट्र की बात होती है तो सभी चीनी एक साथ खड़े नजर आते हैं।
हम सब जानते हैं कि दुनिया उपभोक्तावाद की ओर अग्रसर है। जहां हर कोई अपना सामान बेचने के लिए बाजार की तलाश कर रहा है। दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश चीन है। चीन दुनिया के सभी देशों में अपना सामान बेचता है, परन्तु दूसरे देशों के लिए अपने देश के बाजारों के दरबाजे बंद कर रखे हैं। उसने गूगल और एप्पल जैसी कंपनियों को अपने देश में घुसने तक नहीं दिया। बल्कि उनके विकल्प खुद तैयार कर लिए हैं। यहीं कारण है कि अब विश्व की नजर भारत के बाजारों पर है। ऐसी स्थिति में भारत को चाहिए की अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हुए अवसरवादी देशों से नरमी से नहीं सख्ती से नजर आए। अब हमें उन देशों को बताने की जरूरत है कि हम उन पर निर्भर नहीं बल्कि वो अपना सामान बेचने के लिए हम पर निर्भर हैं। देश के नागरिकों का कर्तव्य है कि अपने देश के विकास लिए स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता दें।
इस ओर देश की सरकार भी सकरात्मक पहल कर चुकी है। परन्तु सरकार को उद्योगों का केंद्रीय बिन्दु महानगरों की बजाय उन क्षेत्रों को बनाना चाहिए जहां बंजर जमीनें खाली पड़ी हुई हैं। ऐसा करने से उन पिछड़े इलाकों का विकास होगा। जिससे जो लोग अपने गांवों को छोड़ महानगरों में रह रहे हैं वह पुनः अपने गांवों को लौटेंगे। इससे सीधा-सीधा लाभ महानगरों को मिलेगा। दिल्ली जैसे महानगरों की आबादी दो करोड़ से अधिक है। अगर उद्योग धंधे दिल्ली से सुदूर इलाकों में लगाए जाएंगे तो उससे दिल्ली में बढ़ती भीड़ में कमी आएगी, प्रदूषण भी कम होगा, जाम की स्थिति में सुधार आएगा और भी कई समस्याएं हैं जो भीड़ से उत्पन्न होती हैं वह स्वतः ही कम होती नजर आएंगी।

जितेन्द्र कुमार नामदेव
चिरगांव, झांसी
9935280497

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