11.1.18

इंदौर स्कूल बस हादसा और भ्रष्ट प्रशासन के मुंह पर मृतकों के परिजनों का तमाचा!

इन बातों पर फोकस क्यों नहीं?
1- आरटीओ ने बिना बस चेक किये फिटनेस कैसे दे दिया?
2- स्पीड गवर्नर लगवाने का अधिकार जिन एजेंसीज को नहीं वो ब्लैक लिस्टेड क्यों नहीं हैं?
3- परमिट लेने के लिए किसी ऑथोराइज़्ड कार सर्विस सेंटर का चेकअप सर्टिफिकेट अनिवार्य क्यों नहीं?
4- एक निश्चित समय से पुरानी बसों का परमिट रद्द क्यों नहीं?
5- स्कूल बसों में प्रॉपर विंडों और बम्फर, बैक गार्ड होना अनिवार्य क्यों नहीं?
6- एप्रूवल के दौरान वाहन की लाईट, हॉर्न, ब्रेक व अन्य जरुरी पार्ट्स प्रॉपर काम कर रहे हैं या नहीं इसकी जांच क्यों नहीं?

इंदौर: तेज रफ्तार बस, ड्राइवर की लापरवाही और कई घरों के चिराग मौके पर ही बुझ गये। फिर शुरु हुआ आरोप-प्रत्यारोपण और लोगों द्वारा कैंडल हाथ में लेकर फोटो छपवाकर पब्लिसिटी बटोरने का सिलसिला। यकीनन... मृतक बच्चों के पेरेंट्स इस दिखावे से वाकिफ थे इसीलिये उन्होंने दिल के दर्द को छुपाकर बिना कोई शोर-शराबा चुपचाप बच्चों की आंखें और त्वचा दान करके का सराहनीय फैसला लिया। लेकिन यह सिर्फ एक फैसला नहीं था। यह करारा तमाचा था जो उन्होंने भ्रष्ट सरकारी तंत्र और नाकाम सरकार के गालों पर जड़ा। क्योंकि हकीकत यही है कि भ्रष्ट सरकारी विभागों की लिस्ट में परिवहन विभाग का नाम ढूंढने ज्यादा नीचे तक नहीं खंगालना पड़ेगा। प्रदेश की जनता की माने तो शायद ही कोई सरकारी दफ्तर होगा जहां भ्रष्टाचार न होता हो। लेकिन कार्रवाई किसी पर नहीं होती। होता है तो ज्यादा से ज्यादा तबादला।
बहरहाल इन्वेस्टिगेशन की बात करें तो किसी ने मृतक ड्राइवर को दोषी बताया। किसी ने परिवहन विभाग को तो किसी ने स्कूल प्रशासन को। लेकिन मृतक हरमीत कौर की माँ के शब्दों में हकीकत यह है कि कोई कार्रवाई नहीं होगी। चंद दिनों तक सख्ती और नियम, कायदे, कानून का दिखावा होगा और फिर हालात वही ढांक के तीन पात। और रही मीडिया की बात तो वह तो खुद ही घूम रही है। रोज नई हैडिंग के साथ खबर भी बदल रही है। पहले स्टेयरिंग फेल, फिर ड्राइवर की झपकी और कभी स्पीड गवर्नर का खराब होना बता रही है। अब बात करते हैं बचाव के तरीकों पर। भई आरटीओ तो सरकारी है माने उस पर तो कार्रवाई सिर्फ कागजों में ही होगी। वरना सरकार के मुंह पर कालिख न पुत जायेगी? रही बात स्कूल प्रशासन की तो उसने पहले ही आरटीओ से मिले फिटनेस सर्टिफिकेट की आड़ ले ली। अब बचा ड्राइवर तो उस पर जो जितना चाहे इल्जाम डाल दे वह तो मर ही गया है। यानी अपना बचाव कर नहीं सकता।
तो कुल मिलाकर हादसे के बाद से सारे ड्रामों, इन्वेस्टिगेशन और राजनीतिक बोल-बच्चन का लब्बो-लुआब यह है कि हादसा हुआ, सरकार के विभिन्न महकमों यानी आरटीओ, ट्रैफिक पुलिस की नाकामी की वजह से हुआ, और जांच भी सरकारी ही कर रही है। तो परिणाम जानने ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। बहरहाल इस दौरान कुछ अच्छा होगा तो यह कि कुछ दिनों तक ऐसे ही दूसरे हादसे होने से टल जायेंगे। जैसे घटना के बाद चैकिंग करते हुए भोपाल में एक साथ कई बसों का परमिट कैंसल हुआ।
आशीष चौकसे
एसोसिएट एडिटर, भड़ास4मीडिया

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