11.4.18
हर असम्भव में संभव तलाशना ही एक शिष्य का कर्तव्य है : शेखर सेन
नयी दिल्ली : “जो असम्भव लगता हो, उसे संभव करने के तरीके तलाशना ही एक अच्छे शिष्य की विशेषता है, जिस तरह तीर को दूर तक फैंकने के लिए धनुष की प्रत्यंचा को उतना ही पीछे खिंचा होता है, उसी तरह नृत्य कला में अपने गुरु, उनके गुरु और उनके गुरु के कार्यों को जानना कलाकार को आगे ले जाता है, जितना अतीत का अन्वेषण कर्नेगे उतना ही आगे जाएंगे .”’ यह उदगार थे कत्थक केंद्र के अध्यक्ष, प्रख्यात रंगकर्मी श्री शेखर सेन के, वे दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थित कत्थक केंद्र में सम्पन्न , डॉ चित्रा शर्मा की पुस्तक ‘गुरु मुख से’ के लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि की आसंदी से बोल रहे थे .
इस आयोजन में प्रख्यात कत्थक गुरु सुश्री शोभना नारायण , कत्थक गुरु राजेन्द्र गंगानी और पंडित जयकिशन जी महाराज और जाने माने साहित्यकार लीलाधर मंडलोई विशेष अतिथि थे . उल्लेखनीय है कि चित्रा जी की इस पुस्तक में कत्थक के सभी घरानों के १७ गुरुओं के साक्षात्कार को प्रस्तुत किया गया है.
कार्यक्रम के प्रारंभ में लेखिका ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि कत्थक उनके लिए इबादत है और गुरु उनके लिए ईश्वर . आज कत्थक का सम्मान, अस्तित्व, शास्त्रीयता सब कुछ गुरुओं के कारण है . श्री लील्धर मंडलोई ने इस अवसर पर कत्थक के संगतकारों पर भी इसी तरह के शोधपरक पुस्तक की आवश्यकता पर जोर दिया . श्री राजेंद्र गंगानी ने कहा कि उनके गुरु कहते थे की कुच्छ लिखना नहीं है, सब कुछ सीधे दिल से याद करो तो कभी नहीं भूलोगे . उनका मानना है की कत्थक को वीडियो या स्काईप से नहीं सिखाया जा सकता, यह कला गुरु के सामने, साथ में ही सीखी जा सकती है .
सुश्री शोभना नारायण का वक्तव्य कत्थक में आ रहे परिवर्तन, उसकी मौलिकता ,और शास्त्रीयता पर केन्द्रित था, उनका कहना था कि कत्थक में गत पांच दशकों में कई प्रयोग हुए – पेश अकरने के ढंग और चमक भले ही अलग हो गयी हो लेकिन मूल आत्मा वाही रही, उनका कहना था की इस तरह की पुस्तकें आने वाले दिनों में, इस बात का प्रमाण होंगी की पहले गुरु किस तरह सीखते थे और आज कैसे .हमें हर पीढ़ी को हर प्रयोग को सम्मान देना चाहिए. पंडित जयकिशन महाराज ने कहा की गुरु असल में अपने शिष्य के स्वभाव को बदलता है ताकि वह कला को भलीभांति सीख सके. कार्यक्रम का संचालन प्रांजल धर ने किया.
प्रेस नोट
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