6.4.18

बच्चों के आत्महत्या की ओर बढ़ते कदम

-ओम प्रकाश उनियाल

आज के दौर में बच्चे इतने संवेदनशील हो चुके हैं कि छोटी-छोटी बातों को लेकर तनाव व अवसाद का शिकार हो जाते हैं। यहां तक कि आत्महत्या करने जैसा कदम उठा रहे हैं। क्या कारण हैं जो बच्चे इस प्रकार के कदम उठाते हैं। अक्सर ज्यादातर मां-बाप आधुनिकता का लबादा ओढ़े हुए हैं। बच्चा पैदा हुआ नहीं कि उसका भविष्य बनाने पर तुल जाते हैं। अढाई-तीन की आयु से शुरू हो जाता है बोझ लादना। इस उम्र में थोप दी जाती है पढ़ाई। घर आकर रिवीजन का सिलसिला। घर में कोई आया है तो उसके सामने भी शुरु हो जाते हैं- 'बेटे ए बी सी डी सुनाओ...फलां पोयम सुनाओ....डांस दिखाओ.....गाना गाओ...' जैसी बातों का दबाव डालते रहते हैं।
यह आजकल एक-दूसरे की होड़ में कर रहे हैं मां-बाप। उन्हें पता नहीं कि यह उम्र बच्चे के विकास की होती है। पहले पांच साल का होने पर ही बच्चे को विद्यालय में प्रवेश कराया जाता था। आज मां-बाप यह महत्वकांक्षा पाले रहते हैं कि बचपन में ही उनका बच्चा सब कुछ सीख ले हर विधा में पारंगत हो जाए। थोड़ा बड़ा होते ही प्रतिस्पर्द्धाओं का खेल शुरू। बच्चे की बौद्धिक-क्षमता को नजरअंदाज कर हर चीज में दूसरे की नकल  करने को प्रेरित किया जाता है।

कुछ मां-बाप तो अपनी स्वतंत्रता कायम रखने के लिए या दोनों नौकरी-पेशा वाले होने के कारण छोटी उम्र में बच्चों को स्कूल, हाॅस्टल में डाल देते हैं। जिससे उनमें एकाकीपन एवं असुरक्षा की भावना घर कर जाती है। नकारात्मक सोच से ग्रसित हो जाते हैं। जरा-कुछ कहने पर गलत कदम उठाने में हिचक नहीं करते। बंधन उन्हें पसंद नहीं होता।

उम्र बढ़ने पर तो बच्चे पर बोझ और भी बढ़ जाता है। वह यह नहीं समझ पाता कि उसे क्या करना है क्या नहीं? घिर जाता है सवालों के बीच। खो बैठता है आत्मविश्वास। परीक्षा किसी प्रकार की हो में कम अंक आना, परीक्षा परिणाम सही नहीं निकलना जैसे कारण बच्चों के जीवन पर हावी हो रहे हैं। आत्मग्लानि में आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं।

माता-पिता की किसी बात को लेकर डांट-फटकार को कुछ बच्चे इतनी गहराई में ले लेते हैं। कई जिद्दी किस्म के होते हैं। अपनी हर बात को मनावाने का हठ पकड़े रहते हैं। जिद पूरी न होने पर वे ऐसा कदम उठा लेते हैं। आजकल प्रेम-प्रसंग की घटनाएं, विद्यालयों में व बाहर छेड़छाड़, प्रताड़ना, पारिवारिक क्लेश,गरीबी जैसे कारणों से बच्चे आत्महत्याएं कर रहे हैं। हाल ही में  नोएडा के एक निजी विद्यालय की छात्रा ने दो अध्यापकों अध्यापकों द्वारा छेड़छाड़ किए जाने से तंग आकर आत्महत्या की। घटना बहुत ही गंभीर और शर्मशार कर देने वाली है। 

बच्चों में बढ़ती इस प्रवृति पर समाज, सरकार व अभिभावकों को मिलकर गहन विचार करना होगा। मां-बाप को चाहिए कि बच्चों पर चाहे पढ़ाई हो या अन्य बातें जबरन दबाव न डालें। बच्चों की समस्याएं सुनें। दोस्त की भूमिका निभाएं उनके साथ। डांट-डपट, मार- पीट को अपना हथियार न बनाएं। बच्चे की भावनाएं समझें। जो अपने बच्चों को किसी कारणवश समय नहीं दे पाते वे सदैव उनके प्रति सकारात्मक सोच रखें। थोड़ा-सा समय मिलने पर उनको विश्वास में लें।

घरेलू परिस्थितियों से हर बच्चे को अवगत कराना जरूरी होता है। उसका मनोबल गिराने के बजाय बढ़ाएं। उसे हर काम के लिए प्रेरित व आश्वस्त करें। जहां भी जाएं साथ लेकर जाएं। ताकि हर प्रकार के लोगों से मिलने-जुलने से उसको व्यवहारिक ज्ञान मिलता रहे। उसमें दब्बूपन न आए। उसकी तार्किक शक्ति को बल मिले। बच्चों को भी चाहिए कि उनके साथ कुछ ऐसा-वैसा कुछ घटता है, कोई समस्या या उलझन हो, आर्थिक, सामाजिक व पारिवारिक परिस्थिति हो अपनी बात को शेयर करें।

अबोध बच्चों के तो हाव-भाव ही उसकी परेशानी उजागर कर देते हैं। जरूरत है तो समझने की। वर्तमान में बच्चे जिस दौर से गुजर रहे हैं उन पर नजर रखने की आवश्यकता है। जागरूक होना, सजग रहना जरूरी है। कुल मिलाकर उनकी

मन:स्थिति को सकारात्मक रुख देना होगा। चाहे वह किसी भी स्तर से हो।
 
 -ओम प्रकाश उनियाल
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