20.8.18

हारी बाजी पलट देंगे अटल जी?

पार लगाएंगे शिवराज, रमन और वसुंधरा की नैया?

सबसे पहले अटलजी के चरणों में नमन। कांग्रेस की राह पर चल रही है बीजेपी ? ये इसलिए कहना पड़ रहा है क्यों कि हाल के दिनों में जो फैसले लिए गए वो बिल्कुल इन्ही बातों की ओर इशारा करते हैं । पहले जरा करीब 1 हफ्ते पीछे चलिए, एक निजी चैनल का सर्वे आया था । जिसमें इस बात का दावा किया गया था कि मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बल्ले बल्ले होने वाली है, पीएम मोदी देश की आवाम की पहली पंसद हैं लेकिन शिवराज, रमन सिंह और वसुंधरा की सरकार जाने वाली है और वहां कांग्रेस की सरकार बन सकती है।
इस चैनल के सर्वे के बाद से ही सरकार माथे पर शिकन साफ देखी जा रही थी । इसमें कोई दोहराय नहीं है कि शिवराज और रमन सिंह दोनों ही नेता इस सर्वे को पलटने माद्दा नहीं रखते हैं लेकिन जिस तरह से मंत्रियों, विधायकों और बीजेपी नेताओं का क्षेत्र में विरोध हो रहा था । वो ये बताने के लिए काफी था कि लोगों में नाराजगी तो है । भले ही मध्यप्रदेश की कृषि विकास दर 20 फीसदी से ज्यादा हो और छत्तीसगढ़ का पीडीएस मॉडल देश के सभी बीजेपी शासित राज्यों के सिर चढ़कर बोल रहा हो फिर भी कुछ तो बिगड़ा है । जिससे खेल बिगड़ सकता है, लेकिन इसी बीच एक झकझोर देने वाली खबर आती है, कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न परम श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन हो गया । एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उसी वक्त दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे । जब अटल जी कि तबियत अचानक बिगड़ी थी । वो उस दौरान जन आशीर्वाद यात्रा कर रहे थे, लेकिन नीयति को कुछ और ही मंजूर था।

फिर शिवराज सिंह चौहान दिल्ली से मध्यप्रदेश लौटते हैं, ऐलान करते हैं कि एमपी की 7 स्मार्ट सिटी (भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, उज्जैन और सागर) अब अटल जी के नाम पर होंगी । इसके साथ ही हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम भी अटल जी के नाम पर ही होगा । वैसे ये वही हबीबगंज रेलवे स्टेशन है, जिसे देश का पहला वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन बनना है । इसके साथ ही एम्स का नाम भी अटल जी के नाम पर ही होगा । वाकई में अटल जी को एक शिष्य के रूप में ये शिवराज सिंह चौहान की सबसे उम्दा श्रद्धांजलि है । अटल जी की अस्थियां रविवार दोपहर हरिद्वार में प्रवाहित कर दी गईं, उनकी दत्तक बेटी नमिता ने इन्हें प्रवाहित किया । इस दौरान अटल जी की नातिन नम्रता, अमित शाह, राजनाथ सिंह, त्रिवेंद्र सिंह रावत और योगी आदित्यनाथ मौजूद रहे।  20 अगस्त को होने वाली प्रार्थना सभा के बाद एमपी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह अस्थि कलश लेकर भोपाल आएंगे, कलश को 21 अगस्त को लोगों के दर्शन के लिए पार्टी कार्यालय में रखा जाएगा । इसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कलश को नर्मदा में प्रवाहित करने ले जाएंगे।

इस बीच मंडल ब्लॉक और हर जिला मुख्यालय में अटल जी के नाम पर प्राथर्ना सभा रखी जाएगी, बिल्कुल इसी तर्ज पर अस्थि कलश 22 अगस्त को छत्तीसगढ़ आएगा । जिसके बाद राजिम की त्रिवेणी में विसर्जन होगा । यहां भी रायपुर में बीजेपी मुख्यालय और फिर टाउन हॉल में लोगों के दर्शन के लिए रखा जाएगा । ठीक इसी तर्ज पर 20 अगस्त को प्रार्थना सभा के बाद अस्थि कलश राजस्थान के जयपुर आएगा और यहां भी इसी तरह की शोक सभा और इसके बाद अटल जी अस्थियों को बेणेश्वर धाम, कोटा में चंबल नदी, अजमेर के पुष्कर में प्रवाहित किया जाएगा । दरअसल अटल जी की अस्थियां देश के सभी राज्यॆं में जाएंगी और देश की 100 नदियों में उन्हें प्रवाहित किया जाएगा । खैर बात शिवराज सिंह और रमन सिंह की हो रही थी तो मैं ये कह रहा था कि एमपी के हालात हैं क्या..

हालही में 10 से ज्यादा बच्चियों से रेप के मामलों में फांसी की सजा सुनाई गई है वो भी सूपरफास्ट तरीके से, किसी को 7 दिन में, किसो 10 दिन तो किसी को 25 दिन में, सरकार के इस कदम की तारीफ हो रही है लेकिन मौजूदा समय में भी रेप की वारदातें थमीं नहीं हैं । क्यों कि आंकड़े कहते हैं कि एमपी में रोज़ औसतन 15 रेप होते हैं । 2017 में कुल 5300 रेप हुए । NCRB की रिपोर्ट कहती है कि 2016 में 4,882 रेप हुए यानि औसतन रोज़ाना 13 रेप के मामले सामने आए । शिवराज सरकार बनने के बाद से 13 साल में 15,129 किसानों ने खुदकुशी की है।

यही हालात किसानों के भी हैं । क्यों कि NCRB की रिपोर्ट कहती है कि देश में किसान आत्महत्या के मामले में मध्य प्रदेश तीसरी पायदान पर है । कुपोषण के भी हालात जस के तस हैं । मध्यप्रदेश में औसतन हर दिन 92 बच्चों की मौत कुपोषण से होती है । ये जानकारी खुद महिला बाल विकास मंत्रालाय ने जारी कर के दी थी । नए आंकड़ों के लिए हालही में मॉनसून सत्र में सरकार को जानकरी देनी थी लेकिन साल चुनावी था तो सिरदर्द सरकार लेना चाहती नहीं तो नए आंकड़े भी सामने नहीं आए । कुछ यही हाल मध्यप्रदेश के नवजातों का भी है । क्यों कि यहां जन्म लेने वाले 1000 नवजातों में से औसतन 50 नवजातों की मौत हो जाया करती है । कुछ इससे हट के लेकिन एमपी के युवाओं का दर्द भी कुछ ऐसा ही है । क्यों कि मौजूदा समय में मध्यप्रदेश में करीब 1 करोड़ 41 लाख युवा हैं और आंकड़े कहते हैं कि हर छठवें घर में एक युवा बेरोजगार है । हर सातवें घर में एक शिक्षित युवा बेरोजगार है । ऊपर से पिछले दो सालों में एमपी में 53% बेरोजगार और बढ़ गए हैं।

मौजूदा समय में मध्य प्रदेश में 21 फीसदी आबादी आदिवासी समाज की है यानि एमपी का में हर पांचवां व्यक्ति अनुसूचित जनजाति वर्ग से है, लेकिन इनकी हालत क्या है देख लीजिए.. 50 फीसदी से ज्यादा गरीबी रेखा के नीचे हैं । 1000 में सिर्फ 4 घरों में फोर व्हीलर गाड़ी मिलती है । सिर्फ 38 फीसदी आबादी के पास रहने लायक घर है । जबकि ऐलान सबको आशियाना देने का किया जा रहा है । 42 फीसदी आबादी को पीने के पानी के लिये दूर जाना पड़ता है । आज भी महज 10 फीसदी घरों में ही टेलीविजन (टीवी) है । 3 फीसदी घरों में ही कंप्यूटर या लैपटॉप है । 6 फीसदी घरों में दो पहिया वाहन हैं । जबकि इनके हालात बदलने के लिए 29 में से 6 लोकसभा सीटें आदिवासियों के लिये आरक्षित की गई हैं । ये तस्वीरें बदलने के लिए 230 में से 47 विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिये ही आरक्षित हैं लेकिन हालात नहीं बदले । जबकि एमपी में SC- 91 लाख 55 हजार 177 वोटर और 1 करोड़ 22 लाख 33 हजार ST वोटर हैं फिर भी इनकी याद किसी को नहीं आई, अब चुनाव आने वाले हैं तो याद जरूर आएगी ।

एमपी में सिर्फ 2013 से 2017 तक 5231 किसानों ने खुदकुशी कर ली है । किसान आत्म हत्या के मामले में एमपी का तीसरा नंबर है । तो क्या ये माना जाए कि इस बार के विधानसभा चुनाव में किसान, पीने का पानी, शिक्षा, रोजगार, महिला सशक्तिकरण, बेहतर सड़कों जैसे मसले पीछे छूट जाएंगे ? फिलहाल लगता तो कुछ ऐसा ही है । क्यों कि शराबबंदी हो नहीं पाई। मेट्रो का सपना 2009 से अधूरा है, करीब 10 साल होने वाले हैं । शिशु मृत्य दर थम नहीं रही।

हाल ही में गुना के जिला अस्पताल की तस्वीर सबके सामने है । जहां एसएनसीयू में डॉक्टर ना होने की वजह से 3 दिन के अंदर 6 नवजातों की मौत हो गई है और पिछले तीन महीनों में यहां 121 मौतें हो चुकी हैं । ऊपर से डॉक्टर्स की भारी कमी है । क्यों कि आंकड़े कहते हैं कि एमपी के 51 जिलों के 250 अस्पतालों में डॉक्टर्स की कमी है । प्रथम श्रेणी के विशेषज्ञों के 3266 में से 2044 पद खाली हैं । मेडिकल ऑफिसर के 4860 पदों में 1926 खाली हैं । एनेस्थेटिस्ट के 70 फीसदी पद सरकार भर नहीं पाई । गायनोकोलॉजिस्ट के 54 फीसदी पद खाली हैं । .शिशु रोग विशेषज्ञों के 40 फीसदी पद खाली हैं, तो होगा क्या ? क्यों कि जूनियर डॉक्टर्स भी सरकार से खफा हैं, हालही में आंदोलन भी कर चुके हैं। लेकिन हाई कोर्ट की फटकार के बाद वापस काम पर लौटना पड़ा था । लेकिन मुझे लगता है कि भले ही उनका हड़ताल पर जाना गलत हो लेकिन उनकी मांगें जायज हैं, क्यों कि बतौर स्टाइपेंड एमपी में उनको 45 हजार रुपए मिलते हैं, जबकि दिल्ली में 90 हजार मिलते हैं, यूपी में 67 हजार मिलते हैं, हरियाणा में 65 हजार मिलते हैं । इसी स्टाइपेंड को वो बढ़ाने की मांग कर रहे थे ।

कुछ इसी तरह का हाल छत्तीसगढ़ का भी है, यहां भी 1000 बच्चों में औसतन 41 नवजातों की मौत हो जाती है, बीते 1 महीने में ही डेंगू 15 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है । नक्सलवाद यहां के लिए बड़ी समस्या है, 2015 में 466, 2016 में 395, 2017 में 373 और 2018 में 30.06.2018 तक 222 माओवादी घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें सैकड़ों जवान देश के शहीद हो चुके हैं । मसलन 9 अप्रैल 2007 को एर्राबोर में 23 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे, 12 जुलाई 2009 को  राजनांदगांव में 29 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे,  6 अप्रैल 2010 को दंतेवाड़ा में 76 जवान शहीद हुए थे, 29 जून 2010 को नारायणपुर में 26 CRPF जवान शहीद हुए थे,  11 मार्च 2014 को सुकमा में 15 CRPF जवान शहीद हुए थे, 11 मार्च 2017 को  सुकमा में 11 CRPF जवान शहीद हुए,  24 अप्रैल 2017 को  सुकमा में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हो गए थे  और  13 मार्च 2018 को  सुकमा में 9 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए।

आंखफोड़वा कांड और नसबंदी कांड ये बताने के लिए काफी हैं कि छत्तीसगढ़ का हेल्थ सिस्टम खुद वेंटिलेटर पर है और सिसकियां ले रहा है। ऊपर से डॉक्टरों की कमी का आलम ये है कि 25,032 मरीजों पर एक डॉक्टर है, जिला अस्पतालों में 1234 पद खाली हैं, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 1694 पद खाली हैं, छत्तीसगढ़ में 87 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है,  शिशु रोग, महिला रोग, सर्जन की भी कमी है । अलबत्ता जहां सबसे ज्यादा नक्सल घटनाएं हो रही हैं वहां दंतेवाड़ा और सुकमा में एक भी विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं है । शराबबंदी का ऐलान तो हुआ लेकिन सरकार कर नहीं पाई और बैकफुट पर आ गई, बल्कि अब तो सरकार ने शराब बेचने का जिम्मा खुद ही उठा रखा है, खुद विधानसभा के सदस्यों ने हालही में हुए विधानसभा के मॉनसून सत्र में कहा था कि सरकार एक बीयर के ब्रांड को बढ़ावा दे रही है । किसानों के हालात कमोबेश यहां भी मध्यप्रदेश जैसे ही हैं ।

कुछ इसी तरह की तस्वीर राजस्थान की भी है, यहां की कुल आबादी में 40 फीसदी आबादी बच्चों की है और इनमें से 25 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, ऐसा विपक्ष का आरोप है । किसानों की मौत यहां भी सरकार के लिए सिरदर्द है, सूखे की मार झेलने वाला राजस्थान बाढ़ में गोते लगा रहा हो तो आप समझ सकते हैं कि हालात बेहतर नहीं हैं।

इन राज्यों के हालात ऐसे हैं शायद इसी वजह से नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत को ये कहना पड़ा था कि ऐसे 5 राज्यों की वजह से देश पिछड़ रहा है, तो सवाल ये उठता है कि फिर तस्वीर बदली कहां ? ये राज्य बिहार, यूपी, एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान हैं । विकास की राह में रोड़ा बन रहे हैं, शायद कुछ ऐसा ही कहने का मतलब होगा नीति आयोग के CEO का,  जबकि बिहार में अगस्त 2017 से BJP गठबंधन की सरकार है, उत्तर प्रदेश में मार्च 2017 से बीजेपी सरकार है, मध्य प्रदेश में 2003 से BJP की सरकार है, छत्तीसगढ़ में दिसंबर 2003 से BJP की सरकार है, राजस्थान में दिसंबर 2013 से बीजेपी की सरकार है, फिर भी हालात जस के तस हैं । मेरा कहने का मतलब सिर्फ इतना सा था कि क्या इस बार इन जरूरी मसलों को छोड़कर दूसरे मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाएगा?

वैसे कुछ याद आया कांग्रेस ने भी महात्मा गांधी की हत्या के बाद, पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद,  इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कुछ ऐसा ही किया था, तो क्या इसी राह पर बीजेपी भी चल पड़ी है?

अनुराग सिंह, प्रोड्यूसर

SINGH.OR.ANU@GMAIL.COM

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