8.4.19

वैचारिक असहिष्णुता शब्द विगत 5 वर्षों में आया : शांन्तुन गुप्ता



शेखावाटी क्षेत्र के प्रथम पुस्तक समागम 'ज्ञान गंगा पुस्तक मेले' के दूसरे दिन आज दिनांक 7/4/2019 को सीकर के बद्री विहार में लेखन कार्यशाला का आयोजन हुआ। मूल रूप से आलेख एवं समाचार लेखन पर आधारित इस कार्यशाला में वार्ताकार के रूप में राजस्थान साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष श्री इंदु शेखर तत्पुरुष रहे।


वार्ता के रूप में प्रारंभ इस कार्यशाला का संचालन डॉ गौरव अग्रवाल ने किया। नव लेखकों एवं मीडिया से जुड़े या इच्छुक प्रतिभागियों के मध्य प्रारंभ में लेखन क्या और किस लिए से विषय से प्रारंभ इस सत्र में रचनात्मक लेखन के लिए आवश्यक बिंदु एवं तत्व पर चर्चा करते हुए इंदु शेखर ने कहा कि राष्ट्र के मूल संस्कारों को आहत करने वाली सामग्री के प्रति सचेत रहा जाए। लेखन में नवीनता और मौलिकता का आग्रह रहता है परंतु स्रोतों की प्रामाणिकता जाने बिना यूं ही उनका उल्लेख कर देना लेखक की प्रामाणिकता पर प्रश्न उठाता है। आयातित शब्दकिस प्रकार से समाज के सोचने की प्रक्रिया को बदलते हैं और कई बार नुकसान पहुंचाते हैं इसका उदाहरण राष्ट्र एवं राष्ट्रवाद का संदर्भ देते हुए बताया कि अंग्रेजी के ism का रूपांतर हिंदी में वाद करने के कारण कई बार भ्रम की स्थिति बनती है। भारत में सदैव राष्ट्र एवं राष्ट्रबोध का चिंतन रहा है। कार्यशाला के अंतिम सत्र में समाचार लेखन का पूर्वाभ्यास किया गया।

मेले के द्वितीय सत्र में वैचारिक असहिष्णुता विषय पर मुख्य वार्ताकार प्रसिद्ध लेखक व पैनलिस्ट श्रीशांन्तुन गुप्ता ने अपने विचार रखे तथा तनया गडकरी ने वार्ता का संचालन किया। उन्होंने कहा कि वैचारिक असहिष्णुता शब्द विगत 5 वर्षों में आया।

पूर्व में पत्रकारों को विशेष प्रकार की सुविधाएं दी जाती थीं, पीएमओ में किस मंत्री को कौन सा विभाग मिलेगा यह पत्रकार ही तय करते थे। इस सिस्टम को भेदना मुश्किल था। पिछले 5 सालों में यह ट्रेंड बदला है।  वर्तमान में सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक चेतना से लोग तर्क देना सीख गए हैं। पूर्व में हमारे पास गलत इंफॉर्मेशन का जवाब नहीं होता था।

आज विचारों की लड़ाई एक नई विधा है जो न्यूज़ टीवी चैनल पर दिखाई देती है यह हमारी संस्कृति को तोड़ने का एक नया षडयंत्र है। असहिष्णुता इसकी वैज्ञानिक तरीके से तैयार की गई लैंग्वेज है।

भारत के संविधान में कानून पहले से भी बने हुए हैं लेकिन उनका इंप्लीमेंट प्रॉपर नहीं हुआ यदि कोई इंप्लीमेंट कर रहा है तो हम उसको गलत दिशा की ओर ले जा रहे हैं। परंतु इस बार हमारी सरकार दबती  नजर नहीं आ रही है।

पहले की अधिकांश पुस्तकें और साहित्य वामपंथी विचारधारा द्वारा लिखा हुआ है। उन्होंने एक बेचारेपन की तरह हमारे समाज को दर्शाया है। हमें व हमारे समाज को अपरिष्कृत बताया है।

आज हमें उनके सामने तर्क रखने होंगे। भारत के विरोध में बोलने वालों को जवाब देने होंगे। हमें चाहिए हम स्वयं पत्रकार बनें और सभ्य भाषा में तर्क करें। आज सोशल मीडिया टि्वटर फेसबुक आदि के माध्यम से अपनी बात कहें व गलत बातों का संयमित शब्दों में विरोध करें। आज वही लोग वैचारिक असहिष्णुता की बात कर रहे हैं जिनकी दाल नहीं गल रही है।

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