गुजरात दंगों में गैंगरेप पीड़िता को 50 लाख का मुआवजा और आवास देने के सुप्रीम निर्देश
जे.पी.सिंह
"आप खुद को भाग्यशाली समझिए कि हम अपने आदेश में सरकार के खिलाफ कुछ नहीं कह रहे हैं।" यह कहते हुये उच्चतम न्यायालय ने 2002 गुजरात दंगा मामले में गैंगरेप सर्वाइवल बिलकिस बानो को 50 लाख रुपए का हर्जाना देने का निर्देश गुजरात सरकार को दिया है। उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार को ये भी निर्देश दिया है कि उन्हें नियमों के मुताबिक नौकरी और रहने की सुविधा दी जाए। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने 29 मार्च को बिलकिस बानो मामले में गलत जांच करने वाले 6 पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करने को कहा था। अपने फैसले में कोर्ट ने ये कहा था कि उन्हें सेवा में नहीं रखा जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ को जब पता चला कि वह 2002 से खानाबदोश की जिंदगी जी रही हैं तो सरकार को उन्हें घर देने का आदेश दिया।
इस मामले 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की कोर्ट ने 12 लोगों को मर्डर और गैंगरेप का आरोपी माना था। इसके बाद ट्रायल कोर्ट की ओर से सभी को उम्रकैद की सजा दी गई थी। सभी आरोपियों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में फैसले के खिलाफ अपील की थी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने 4 मई 2019 के फैसले में सामूहिक बलात्कार के इस मामले में 12 दोषियों की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी थी। कोर्ट ने पुलिसकर्मियों और चिकित्सकों सहित सात व्यक्तियों को बरी करने का निचली अदालत का आदेश निरस्त कर दिया था।
क्या है बिलकिस बानो मामला
3 मार्च 2002 को 14 लोग जिसमें चार महिलाएं और चार बच्चे शामिल थे, उनकी हत्या कर दी गई थी। वहीं 19 साल की बिलकिस याकूब रसूल के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया और वहीं मरने के लिए छोड़ दिया गया। इस क्रूरता के बाद उनकी जान बच गई और उन्होंने न्याय के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। साल 2017 में बंबई उच्च न्यायालय ने सभी 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। अदालत ने इस अपराध के सात आरोपी जिसमें डॉक्टर और पुलिसवालों शामिल थे उन्हें बरी करने के फैसले को रद्द कर दिया। इन सभी पर सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप था।
गोधरा कांड के चौथे दिन गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा फैल गई थी। हजारों हिंदू और मुस्लिम परिवार सुरक्षित स्थानों पर जा रहे थे। इसमें से ही एक बिलकिस बानो का परिवार था। उनका परिवार ट्रक में बैठकर जा रहा था। उसमें 17 लोग थे। तभी 30-35 हमलावरों ने उनपर दाहोद जिले के रंधिकपुर के पास हमला कर दिया।हमलावरों ने एक घंटे के अंदर ट्रक में मौजूद 14 लोगों की हत्या कर दी। मृतकों में बिलकिस की दो साल की बेटी सालेहा भी शामिल थी। उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया गया।
गुजरात सरकार की इस मामले में कार्यवाही
गुजरात सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय को बताया गया कि इस मामले में सबूतों से छेड़छाड़ के दोषी पुलिसकर्मियों की पेंशन आदि सुविधाओं को वापस ले लिया गया है, जबकि संबंधित आइपीएस अधिकारी को 2 रैंक पीछे कर दिया गया है। उच्चतम न्यायालय ने इस पर मुहर लगा दी।
अदालत ने मांगा था गुजरात सरकार की ओर से जवाब
दरअसल बीते 30 मार्च को वर्ष 2002 के गुजरात दंगा पीड़िता गैंगरेप केस को दबाने और जांच को प्रभावित करने के मामले में उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार से 2 हफ्ते में दोषी पुलिसकर्मियों व सरकारी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच पूरी करने के निर्देश दिए थे।
मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने कहा था कि गुजरात सरकार इन दोषियों के खिलाफ जांच पूरी करे और उसके परिणाम की रिपोर्ट पीठ के सामने 2 हफ्ते के बाद रखे। इस दौरान गुजरात सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सरकार इस मामले में पीड़िता को 5 लाख रुपये का मुआवजा देने को तैयार है लेकिन पीड़िता की वकील शोभा ने कहा कि यह एक ऐसा केस है, जिसमें पीड़िता अभूतपूर्व मुआवजा पाने की हकदार है।
दरअसल गोधरा कांड के बाद हुई इस वारदात की पीड़िता ने बढ़ा हुआ मुआवजा और केस को दबाने के दोषी करार दिए गए 5 पुलिसकर्मियों व 2 डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की अर्जी दाखिल की थी। इस दौरान पीड़िता की ओर से पेश वकील शोभा ने कोर्ट को बताया था कि इस मामले में जांच को प्रभावित करने के लिए 5 पुलिसकर्मियों व 2 डॉक्टरों को हाईकोर्ट ने दोषी करार दिया था, लेकिन ट्रायल के दौरान जेल में काटे वक्त को ही उनकी सजा मान लिया गया था। अब इन लोगों को फिर से सेवा में रख लिया गया है। वहीं गुजरात सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरु की गई है।
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