22.4.19

गायब कर दिया 'धूलकोट चौराहा' नाम



इतिहास के पन्नों में दर्ज 'आहड़ सभ्यता' के अवशेष उदयपुर के आयड़ क्षेत्र में महासतियां के पास है, जो 'मिट्टी' में दबे होकर संरक्षित है। इन मिट्टी के टीलों को 'धूलकोट' के नाम से जाना जाता है। 80 के दशक में जब धूलकोट के पीछे आबादी बसी और आवासीय कॉलोनियां बनी तो यहां चार रास्ते निकले, जिनमें से एक ठोकर, दूसरा आयड़, तीसरा पहाड़ा और चौथा बोहरा गणेश मंदिर। इससे इस चौराहा का नाम 'धूलकोट चौराहा'  रखा गया और तभी से यह 'धूलकोट चौराहा' के रूप में ही जाना जाता रहा है।

चौराहा पर बसी कॉलोनियों की पहचान (लेण्डमार्क) भी धूलकोट चौराहा ही है। कॉलोनियों में रहने वाले सभी लोगों ने अपने समस्त दस्तावेजों में पते में धूलकोट चौराहा ही दर्ज करा रखा है। हाल ही एक षडयंत्र के तहत इस चौराहा का नाम 'संत श्री पीपा जी चौराहा' रखते हुए यहां लगे बोर्ड पर यह लिखवा भी दिया गया। नगर निगम ने स्थानीय लोगों से किसी प्रकार की सहमति तक लेना उचित नहीं समझा और पल भर में 'ऐतिहासिक पहचान' वाले 'धूलकोट' के नाम से स्थापित 'धूलकोट चौराहा' नाम को दस्तावेजों से 'गायब' कर देने वाला कदम उठा लिया, जो 'निंदनीय' है। ऐसा करके 'भारतीय जनता पार्टी वाले बोर्ड' वाले उदयपुर नगर निगम ने 'अपने फायदें' के लिए किसे 'फायदा' पहुंचाने का 'प्रयास' किया यह शायद सभी 'समझ' गए होंगे लेकिन कॉलोनीवासियों की 'भावनाओं' के साथ बड़ा 'खिलवाड़' किया है।

बोर्ड की इस सामान्य सी प्रक्रिया यहां रहने वाले लोगों को अपने समस्त दस्तावेजों में पता संशोधन करने में जो परेशानियां देगी शायद उसे नगर निगम में बैठे आला अफसरों और जनप्रतिनिधयों ने नहीं समझा।

pawan sharma
premchee@yahoo.com

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