9.4.19

क्या बीजेपी जीती तो राजनाथ सिंह की जगह अमित शाह होंगे देश के नए गृहमंत्री?

शंभु चौधरी
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत और कांग्रेस की हार सुनिश्चित थी । मोदी के नेतृत्व को भाजपा ने यह सोचकर स्वीकार कर लिया कि इससे  भाजपा की जीत और आसान हो जायेगी क्योंकि मोदी मनैजमेंट का मास्टर आदमी है जो इस बात से भलींभांति परिचित है कि कैसे सत्ता हासिल की जाए।  परन्तु भाजपा इस बात को भूल गई थी कि जिस प्रकार मोदी गुजरात में अपने ही संगठन के तमाम बड़े नेताओं को जिसमें केशुभाई पटेल सहित कई बड़े भाजपा के पुराने व समर्पित कार्यकर्ताओं को दर किनार कर दिया गया आज केन्द्र में भी इस परंपरा की शुरूआत हो चुकी है।

हालांकि यह काम 2014 से ही शुरू हो चुका था जब  आडवाणीजी, अरुण शौरी, यसवंत सिन्हा व शत्रुघन सिन्हा सहित कई नेताओं को दरकिनार कर दिया गया था, कारण साफ था ये नेता मोदी के नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे । जबकि राजनाथ सिंह, सुमित्रा महाजन, मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्रा, सुषमा स्वराज और सैयद शाहनवाज़ हुसैन सहित कई नेताओं को अपनी आत्मा बेच कर मोदी के नेतृत्व को स्वीकार लेना पड़ा। शायद यह इनकी राजनीति मजबूरी थी। आडवाणी चुप रह यह सोचकर कि शायद उनको राष्ट्रपति बना दिया जाएगा । परन्तु जैसे ही राष्ट्रपति बनने का समय आया मोदी ने चुपके से उस बाबरी मस्जिद से जुड़ी वह फाइल को खुलवा दिया जिसमें आडवाणी बरी हो चुके थे।

संकेत साफ था कि मोदी जी अपने रास्ते के तमाम बड़े कांटों को हटा देना चाहते थे जो उनके तानाशाही बनने के मार्ग में रोड़े अटका सके । मोदी जी किसी भी हालात में वैसे व्यक्ति को निर्णायक पद पर नहीं लाना चाहते, जो उनके द्वारा लिये फ़ैसलों पर तनिक भी सोचता हो। यह सीधे-सीधे भाजपा के संगठन को मोदी संगठन बना देने की लड़ाई थी जिसमें मोदी व शाह की जोड़ी कोई समझौता नहीं चाहती थी।

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ नारे को लेकर असहमति जाहिर करते हुए कहा था कि ‘‘राष्ट्र निर्माण किसी एक आदमी का काम नहीं है। यह समावेशी होना चाहिए। इसमें सत्ता और विपक्ष दोनों का सहयोग जरूरी है।’’ परन्तु संघ प्रमुख को भी लगा कि वे यह बात कह कर मोदी को नाराज़ कर चुके हैं और उन्होंने इसके बाद चुप्पी साध ली।  इधर आडवाणी जी अपनी पांच साल की चुप्पी पर विराम लगाते हुए अपने ब्लाॅग में एक लेख लिखा जिसमें भी मोहन भागवत की उपरोक्त बातों को संकेत है आपने लिखा - ‘‘हर बात में आपकी बातों से जो सहमत ना हो वह देशद्रोही नहीं हो सकता। उन्होंने अपने लेख में कई जगह यह संकेत भी दिया कि ‘‘हमें पीछे-आगे और भीतर भी देखते रहना चाहिये।’’ अर्थात उपरोक्त तीन बातों स्पष्ट रूप से मोदी के तानाशाही व्यवहार की तरफ संकेत दे रहें हैं कि वे किस प्रकार ना सिर्फ अपने राजनीति प्रतिद्वंद्विओं को किनारे लगाना चाहते हैं साथ ही साथ भाजपा के अंदर भी उन तमाम नेताओं को किनारे लगा देना चाहते हैं जो मोदी के आदेशों का पालन ना कर सके। मोदी किसी भी रूप में चाहे वह सत्ता हो, विपक्ष हो, अदालत हो, चुनाव आयोग हो, सरकारी उच्च पदों पर विराजमान अधिकारी हो किसी भी जगह वे सिर्फ और सिर्फ उन लोगों को लाना चाहते हैं जो मोदी की जी हजूरी बजा सके और उनके सभी काले कारनामों में संसद से लेकर अदालत तक में सही ठहराया जा सके जो भले ही राफेल से भी बड़ा घोटाला क्यों ना हो।

इसके पर्व आगे कुछ लिखा जाय इस बात को पढ़ें - ‘‘भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद 50 सालों तक कोई नहीं उन्हें हटा पाएगा।’’  यह उन्हें कौन है? आज 2019 को लोकसभा का चुनाव आ चुका है । चुनाव के अंक गणित अपने-अपने स्तर पर विभिन्न गोदी मीडिया लगा रही है ।  सुमित्रा महाजन, मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्रा, सुषमा स्वराज और सैयद शाहनवाज़ हुसैन को किनारे लगा दिया गया है । आडवाणी जी पहले से ही किनारे लगे हुए है। बचे राजनाथ सिंह जो बालू में नाव चला रहें हैं उनका भी जाना तय है। इस बार नहीं तो अलगे बार क्योंकि इस बार गृह मंत्री अमित शाह होंगे यदि मोदी की सरकार बहुमत में आ गई तो । ऊपर के घटनाक्रम को बारी-बारी से भाजपा के नेतागण जोड़ ले तो उनको पता चल जायेगा कि अब वे कहां खड़े हैं।

पत्रकारें के लिए चेतावनी - पाकस्तिान व बंग्लादेश के बाद अब भारत भी क्ट्टरवाद की राह पर । बंगलुरू  में गौरी लंकेश की हत्या से इसकी शुरूआत हो चुकी है।

जयहिन्द !

Shambhu Choudhary
Kolkata

No comments:

Post a Comment