10.5.19

इलैक्ट्रोमैग्रेटिक तरंगों से कैंसर का इलाज


उमेश कुमार सिंह

कई बार अथक प्रयास करने के बाद भी ट्यूमर जैसे रोगों का निवारण नामुमकिन हो जाता है. आज इक्कीसवीं सदी में भी हम ऐसे रोगों का उपचार नहीं खोज पाए हैं. ऐसे रोगों से ग्रस्त मरीज सभी प्राकर के कैंसरों को असाध्य मानकर तब तक डाक्टर के पास नहीं जाते जब तक रोग बहुत बढ़ न जाए. कहीं न कहीं उनके मन में कैंसर के प्रति डर तो होता है लेकिन साथ ही वे अभी तक उपलब्ध कैंसर से लडने वाली सभी उपचारों के दुष्प्रभावों को लेकर भी चिंतित रहते हैं. अब कई अध्ययनों और ट्रायलों से यह साफ हो चुका है कि साइटोट्रोन चिकित्सा की मदद से किसी प्रकार का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता और बेहद कम समय मेें कैंसर से छुटकारा पाया जा सकता है. इससे मरीज का डर कम हो जाता है. लुधियाना स्थित सिबिया मेडिकल सेंटर के निदेशक डा. एस.एस. सिबिया का कहना है कि जितनी जल्दी कैंसर का निदान किया जाए और उसका उपचार शुरु कराया जाए, उतनी ही जल्दी कैंसर से छुटकारा पाया जा सकता है. इसके सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करने के लिए इस रोग का निदान होते ही नियमित उपचार आवश्यक है. साइटोट्रोन थैरेपी क्लीनिकली प्रमाणित की हुई एक ऐसी शल्य रहित प्रक्रिया है जिससे कैंसर की बढ़त को रोका जा सकता है और कैंसर के मरीजों की जिंदगी को सुधारा जा सकता है.


कैंसर क्या होता है?
हमारे शरीर में कई प्रकार के सेल होते हैं. ये भी अपने जीवनकाल के अनुसार बनते हैं और विभाजित होते हैं. फिर इनके खत्म होने के बाद इनकी जगह नए सेल ले लेते हैं. यह ताउम्र एक प्रक्रिया के तहत होता है. पुराने सेलों को समापन और उनकी जगह नए सेलों का आना एक जटिल प्रक्रिया है. अगर इस प्रक्रिया में कोई बदलाव आ जाए तो कई बार ऐसा होता है कि सेल अनियंत्रित तरीके से एक ही जगह पर इक्कठे हो जाते हैं और किसी गांठ या ट्यूमर का रूप ले लेते हैं. ये ट्यूमर बिनाइन या मेलाइनेंट दो प्रकार के हो सकते हैं.

साइटोट्रोन थैरेपी कैसे किया जाता है?
मरीज को साइटोट्रोन बिस्तर पर लिटाया जाता है. फिर किरणों को लेजर की मदद से ट्यूमर पर केंद्रित किया जाता है. एमआरआई के आधार पर कंप्यूटर डोज को गिनता है. इसे प्राय 28 दिनों तक रोजाना एक-एक घंटे तक कराया जाता है.  

साइटोट्रोन किस प्रकार कार्य करता है?
साइटोट्रोन एक प्रकार का यंत्र होता है जो कि आर एफ क्यू एम आर का निर्माण करता है. आर एफ क्यू एम आर किरणों में कम ऊर्जा, नॉन-थर्मल, रेडियो या सब-रेडियो तीव्रता वाली इलैक्ट्रोमैग्रेटिक तरंगे होती हैं, जो कि सेलों के अंदर और बाहर मौजूद प्रोटोन स्पिन को वोल्टेज पैदा करने की क्षमता का निर्माण करने के लिए परिवर्तित करती है. आर एफ क्यू एम आर कैंसर के सेलों को समाप्त नहीं करतीं, बल्कि अनियंत्रित मिटोसिस को रोकती हैं और सेलों को वानस्पतिक अवस्था में लाती हैं. इस प्रक्रिया के दौरान कैंसरग्रस्त सेल विकारग्रस्त होते जाते हैं, क्यों कि नियमित समय के अनुसार इनकी क्षति होना स्वाभाविक होता है.

क्या साइटोट्रोन सुरक्षित और आरामदायक है?
इस चिकित्सा के दौरान मरीज को किसी प्रकार का दर्द या असहजता महसूस नहीं होती. साइटोट्रोन को डी आर डी ओ के द्वारा सुरक्षित, कम ऊर्जा वाला और नान-थर्मल प्रमाणित किया जा चुका है. ये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तय किए गए मानकों को पूरा करता है.

किन प्रकार के कैंसरों को इससे ठीक किया जा सकता है?
डा. एस.एस. सिबिया का कहना है कि साइटोट्रोन से लगभग सभी प्रकार के जैसे- दिमाग, स्तन, सर्विक्स, ब्लैडर, कोलोन या रेक्टम, लिवर, फेफड़ा, सिर, गला, मुंह, नाक, ओवेरियन, पैनक्रियाटिक, गुर्दा, पेट, गर्भाशय कैंसर आदि को ठीक किया जा सकता है.

साइटोट्रोन उपचार से पहले कौन से टैस्ट आदि कराने पड़ सकते हैं?
कैंसरग्रस्त भाग का एम आर आई, रक्त, मूत्र जांच आदि सामान्य टेस्ट कराने पड़ते हैं.
क्या साइटोट्रोन अधिक उम्र में भी कराया जा सकता है?
जी हां, ये वृद्धावस्था में भी कराया जा सकता है.

कौन से मरीज साइटोट्रोन के लिए अयोग्य हैं?
गर्भवती महिलाओं और एम आर आई के अयोग्य मरीजों का उपचार इस प्रक्रिया से नहीं किया जा सकता.
क्या मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हार्ट डिसीज के मरीजों में साइटोट्रोन से उपचार करना संभव है?
जी हां, इन सब समस्याओं और कई अन्य बीमारियों से पीडित लोगों का उपचार साइटोट्रोन से किया जा सकता है.

मरीज कैसे जान सकता है कि वह पहले से बेहतर है?
उपचार के बाद मरीज अच्छा, बेहतर महसूस करने लगता है. उसके जीवन की गुणवत्ता सुधर जाती है. उसे दर्द नहीं रहता, वह अधिक ऊर्जावान महसूस करने लगता है. उपचार के बाद एम आर आई टेस्ट के परिणाम से भी इसे मापा जा सकता है. एम आर आई में यह पता चलता है कि कैंसरग्रस्त ट्यूमर की वृद्धि रुक गई है और बाद के एम आर आई में ट्यूमर घटता हुआ दिखने लगता है.

साइटोट्रोन के क्या फायदे हैं?
यह एक बाहरी प्रक्रिया है.
बिना बेहोश किए, शल्यरहित, बिना रक्त चढ़ाए की जाती है.
इसमें कोई दर्द नहीं होता है. रोजाना मरीज को एक घंटे के लिए हास्पिटल में आना होता है. कुछ मरीजों को बीमारी के अनुसार हास्पिटल में रुकना पड़ता है.
इसमें कोई संक्रमण, जटिलता या खतरा नहीं होता है.
सर्जरी के लिए अयोग्य मरीजों के लिए यह एक उपयुक्त उपचार है.
मरीजों द्वारा अधिक तौर पर अपनाया जा रहा है.
इसमें खर्च भी कम आता है.
क्या सर्जरी, कीमोथैरेपी, रेडियोथैरेपी बेहतर विकल्प नहीं हैं?
कैंसर के लिए किसी भी उपचार को शत-प्रतिशत सफल नहीं कहा जा सकता, इसलिए मरीज की अवस्थानुसार उपचार करना चाहिए.
अगर साइटोट्रोन विफल हो गया या कभी कैंसर दुबारा उत्पन्न हो गया तो उस स्थिति में क्या होगा?
अगर साइटोट्रोन विफल हो गया तो इसे दुबारा किया जा सकता है या फिर सर्जरी, कीमोथैरेपी, रेडियोथैरेपी को आजमाया जा सकता है.
साइटोट्रोन को भविष्य में और किस प्रकार से इस्तेमाल किया जा सकता है?
साइटोट्रोन से कई उपचार करने की संभावना जताई जा रही है जैसे ओस्टियोआर्थराइटिस, कैंसर, एंजियोजेनेसिस, ओस्टियोपोरोसिस, पेन मैनेजमेंट, फाइब्रोमाइयेलगिया, माइग्रेन, मधुमेह, डायबिटीक न्यूरोपैथी, कभी न भरने वाले घाव, टाइनाइटस, ड्रग रेसिसटेंट एपिलेप्सी, सेरेब्रल डीजनरेशन, मल्टीपल स्लेरोसिस आदि.

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