10.5.19

मांछे तेल तिके मांछ भाजा होबे!

बंगाल में एक कहावत है - ‘‘मांछे तेल तिके मांछ भाजा होबे’’ कहने का अभिप्राय है कि पत्रकारों को उसकी कमज़ोरी से मारा जाए। जो पत्रकार पैसे से बिक जायेगा उसे पैसे से खरीद लिया जाता है, जो नहीं बिके उसे धमकाया या उसके मालिकों को डराया जाता है। विज्ञापन का प्रलोभन या उसे हटा देने की धमकी से मीडिया हाउस ना सिर्फ परेशान हो चुकी है लाचार भी है।  

पिछली कांग्रेस की सरकार में एक बात थी कि इनके नेता बार-बार एक ही बात की धमकी देते थे कि ‘‘वे चुन कर आयें हैं ’’ उनका यही अहंकार कांग्रेस पार्टी को ले डूबा। आज वही कांग्रेस पार्टी चुनावी समर में हाथ-पांव मार रही है खुद को बचाने की जद्दोजहद में लगी है। जो एक समय इस अहंकार में दंभ भरते थे वे आज हासिये पर खड़ें हैं। आज वहीं हाल भाजपा के नेताओं का हो चला है। बात-बात में गाली देना, धमकाना, गौरी लंकेश का उदाहरण देना व मानहानि का मुकदमा कर देना इनके दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। इनको पता है कि एक बार मानहानि का मुकदमा फाइल हो जाने के बाद पूरा मामला ठंडे बस्ते में कम से कम पांच साल तो चला ही जायेगा। किसी बात को साबित करने की एक लंबी प्रक्रिया है इतने में तो कमजोर पत्रकार खुद ही मर जायेगा और अंत में झक मार कर खुद घुटने टेक देगा। बंगाल में एक कहावत है - ‘‘मांछे तेल तिके मांछ भाजा होबे’’ कहने का अभिप्राय है कि पत्रकारों को उसकी कमज़ोरी से मारा जाए। जो पत्रकार पैसे से बिक जायेगा उसे पैसे से खरीद लिया जाता है, जो नहीं बिके उसे धमकाया या उसके मालिकों को डराया जाता है। विज्ञापन का प्रलोभन या उसे हटा देने की धमकी से मीडिया हाउस ना सिर्फ परेशान हो चुकी है लाचार भी है। भाजपा (मोदी भाजपा) जब किसी पत्रकार को जबाब नहीं दे सकती तो उस पत्रकार को अपने समर्थकों से ना सिर्फ अपमानित करावाती है उसके घर-परिवार के सदस्यों पर भी भद्दे व अपमानित करने वाले शब्दों से प्रहार करती है।  और इसे मीडिया जगत के उस वर्ग की मौन स्वीकृति प्राप्त है । जो इन दिनों खुद को गोदी मीडिया कहलाने में फूलों नहीं समा रहे। यह सिलसिला लगातार जारी है। परन्तु इन सब के बीच एक अच्छी बात लेह से सामने आई -

लेह प्रेस क्लब  (Press Club Leh ) की घटना:  जहां भाजपा के एक नेता के द्वारा पत्रकारों को नगद बांटते दिखाया गया है। जब इसका विरोध किया गया तो प्रेस क्लब को धमकी दी गई कि उसके विरूद्ध मानहानि का मुकदमा किया जायेगा। इसके पूर्व एक दिवालिया संस्थान के मालिक के द्वारा पांच हजार करोड़ का मामला एक पत्रकार पर पहले ही किया जा चुका है। इसी प्रकार के कई मुक़द्दमे की सूची तैयार हो सकती है जो पिछले पांच सालों में सामने आये हैं। अभी राफेल के दस्तावेज़ पर ‘हिन्दू’ समाचार में छपने पर ‘‘समाचार पत्रों पर आपराधिक मुकदमा करने तक की धमकी दी गई थी’’ ख़ुदा न खास्ता कोई कमजोर पत्रकार होता तो मोदी भाजपा अभी तक उस पत्रकार को सूली पर चढ़ा डालती। इनका एक ही लक्ष्य है किसी भी प्रकार से देश की उस व्यवस्था पर प्रहार करना है जो सोचता हो, जो अच्छे-बुरे में अंतर करता हो और सबसे बड़ी बात वह देश के संविधान में विश्वास रखता हो। ना तो वह पत्रकार कभी कांग्रेस का गुलाम था ना आज किसी मोदी भाजपा का ग़ुलाम बनने को तैयार है। जो लोग इस बात का भ्रम फैला रहें है कि इनके पांच सालों के कार्यकाल में ही देश की सुरक्षा हुई  जो इससे पहले कभी नहीं हुई थी यह पांच सालों का सबसे बड़ा ‘झूठ’ है कि इनका ‘सच’ स्वतः इनके ही झूठ से दबकर मर रहा है । इससे बड़े आश्चर्य की बात और क्या हो सकती है जो व्यक्ति देश की सुरक्षा को वीडियो गेम समझता हो, देश के किसानों की आत्महत्या व सेना की शहादत को एक ही समस्या समझता हो वह देश का प्रधानमंत्री बना रोजना लाखों की नई-नई सूट पहनकर विदेशों के चक्कर लगा रहा है।

यह बात सही है कि पत्रकारों का एक छोटा सा वर्ग ‘गोदी मीडिया’ बन चुका है परन्तु इससे देश के ईमान को ख़रीदा नहीं जा सकता ना ही गोदी मीडिया का अपना कोई नहीं वजूद होता है जो वक्त के साथ ही गिरगिट की तरह अपना रंग बदल लेता है। भारत में मुगलों के शासन ने हजारों चारणों को पैदा किया पर राणा प्रताप एक ही पैदा हुआ जिसे आज भी देख रहे हैं, अंग्रेजों के शासनकाल में हजारों चापलूसों को उनकी गुलामी करते देखा गया, आज जो लोग राष्ट्रवाद की बात कर रहें हैं उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में कभी ‘‘बंदे मातरम्’’ नहीं गाया, तिरंगे झंडे को लेकर कल तक जो खुद का अपमानित समझते थे, आरएसएस की शाखा में आज भी बंदे मातरम्’’  सुनाई नहीं देता  जिसे सत्ता में आने के लिए अपना हथियार बना के देश के लोगों को मुर्ख बनाने चले हैं। आज का यह गाना ‘‘एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग’’ यदि रावण के काल में लिखा व गाया, गया होता तो तब का रावण इस गाने को लिखने, सुनने वाले, फिल्मानेवाले, चित्रकार, कलाकार, सबको फाँसी पर लटका दिया होता। गणिमत है की भारत का संविधान इनके आड़े हाथों बीच में रोड़ा अटकाये खड़ा है नहीं तो अब तक सच लिखने व बोलने के जुर्म में कई पत्रकारों को फाँसी के फंदे पर लटका दिया गया होता ।

लेखक शंभु चौधरी स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।

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