29.5.19

लघुकथा : डर

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी “उसके मानसिक रोग का उपचार हो गया।” चिकित्सक ने प्रसन्नता से केस फाइल में यह लिखा और प्रारंभ से पढने लगा। दंगों के बाद उसे दो रंगों से डर लगने लगा था। वो हरा रंग देखता तो उसे लगता कि हरा रंग भगवा रंग को मार रहा है और इसका उल्टा भी लगता।

उसके चिकित्सक ने बहुत प्रयत्न किया था, दवाओं के साथ-साथ सवेरे सूर्य उगने के समय हरी घास पर उसे चलावाया तो वो घास और उगते सूर्य का रंग देखकर भाग जाता। उसे रंगों की पुस्तक भी दी गयी थी, लेकिन उसने उसे भी डर कर फैंक दी ।

फिर उसे उसके देश का झंडा दिखाया गया, जिसमें तीन रंग थे, भगवा से बिलकुल मिलता-जुलता केसरिया रंग उपर, हरा रंग नीचे और बीच में सफ़ेद रंग जो दोनों रंगों को जोड़े रखता था। दोनों रंगों को एक साथ देख वो झंडा अपने हाथों में लेकर गौर से देखता रहता था, यही उसका इलाज था।
उसकी गर्दन हिलती देख चिकित्सक की तन्द्रा भंग हुई, उसने प्रेम से पूछा, "अब तो इन रंगों से डर नहीं लगता।" उसने इनकार में गर्दन हिला दी। चिकित्सक निश्चिन्त हुआ।

अचानक देखते ही देखते उसके चेहरे के भाव बदल गए, आँखें फ़ैल गयीं, आँसू निकल आये और साँसे तेज़ चलने लगीं। वो घबराने लगा, और अपने चिकित्सक का हाथ पकड़ कर बोला, "कहीं लोग अपनी तरह इसके भी रंग बदल देंगे तो...?" कहते हुए उसने झंडे को लपेटा और अपनी कमीज़ के अंदर छिपा दिया।

लघु कथाकार डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी उदयपुर में रहते हैं और कंप्यूटर विज्ञान में पीएचडी हैं. उनसे संपर्क chandresh.chhatlani@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.

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