7.6.19

आओ राजा हम ढोएंगे पालकी, जाती रहे जान हमारे जवान की

Asit Nath Tiwari
नारा लगा कि आएगा तो मोदी ही और आए भी मोदी ही। लेकिन आए क्यों ? क्योंकि रोज़ी, रोज़गार, शिक्षा, चिकित्सा के तो मुद्दे ही ग़ायब हैं। चुनाव में सेना की शहादत का मुद्दा राष्ट्रवादी चासनी में मीठा होता दिखा। 2016 में भी भारतीय वायुसेना का एएन-32 विमान लापता हो गया था। इस विमान ने तब चेन्नई से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लिए उड़ान भरी थी, लेकिन बंगाल की खाड़ी के ऊपर से उड़ते हुए ये लापता हो गया था। चीन बॉर्डर के नजदीक लापता हुए विमान को ना तो धरती ने निगला होगा और ना ही आसमान ने खा लिया होगा। चीन से पूछने की हिम्मत किसे है। रक्षा मामले में मोदी सरकार की इस बड़ी विफलता पर जवानों की शहादत पर जश्न मनाने वाले मोदी के मतदाताओं ने खामोशी की चादर तान ली। एयर फोर्स के अधिकारियों और जवानों समेत 29 लोग इसमें सवार थे। इनकी शहादत, सरकार की विफलता थी लिहाजा, 29 सैनिकों की शहादत को ग़ुमनामी के घोर अंधेरे में धकेल दिया गया।

18 सितंबर 2016 को जम्मू-कश्मीर के ऊरी सेक्टर में सेना के स्थानीय मुख्यालय पर आतंकी हमला हुआ। इस हमले में 19 जवान ज़िंदा जलाकर मार डाले गए। ये हमला मोदी सरकार की बड़ी विफलता थी। ये विफलता चुनावी फायदा नहीं देती लिहाजा इसे ना तो राष्ट्रवाद से जोड़ा गया और ना ही जवानों की शहादत वाली राजनीति से। मतलब जो शहादत चुनावी फायदा नहीं देती उसे मोदी के मतदाता सम्मान नहीं देते। इससे पहले 2 जनवरी 2016 को पठानकोट में भारतीय वायु सेना के एयर बेस में आतंकी घुसे और जवानों की हत्या की। ये हमला भी मोदी सरकारी ही विफलता थी। रक्षा मामले में मोदी सरकार ने विफलताओं के तमाम रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किए। 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में 40 से ज्यादा जवानों की हत्या ने शहादत के ज़रिए चुनावी फायदे का बड़ा मौका दिया। सियासी राष्ट्रवाद ने उफान मारा और शहादत से उपजी राष्ट्रवादी भावना को वोट में तब्दील करने की अपील भाजपा नेता करने लगे। मतलब जवानों की शहादत का सम्मान तब ही जब वो वोट में तब्दील हो।

पुलवामा की शहादत ने रंग दिखाया और चुनावी बाज़ी पूरी तरह से पलट गई। जवानों की शहादत को पूरी तरह से भुनाया जा चुका है। अब वही जवान चुनाव के किसी काम नहीं आने वाले सो किसे फिक्र है असम को जोरहाट से उड़ान भरने भरने के बाद लापता हुए एएन 32 विमान में सवार फौजियों की ? 13 लोगों के साथ चीन सीमा के नजदीक भारतीय वायु सेना का ये विमान लापता है। आसमान ने निगला नहीं होगा, धरती ने खाया नहीं होगा और चीन से पूछने की हिम्मत नहीं होगी। और इन जवानों के साथ अगर अनहोनी हो गई होगी तो मामले को ठंडे बस्ते में ही डाला ही जाएगा क्योंकि, ये भी तो मोदी सरकार की बड़ी विफलता ही है। जाहिर है जवानों के साथ हुई अनहोनी में तब तक राष्ट्रवादियों की कोई दिलचस्पी नहीं है जब तक कि वो भाजपा को चुनावी फायदा न पहुंचाती हो। वरना 2016 में 29 जवानों के साथ चीन बॉर्डर पर लापता हुए विमान के बारे में ये राष्ट्रवादी अपनी सरकार से सवाल ज़रूर पूछ चुके होते।

तो मतलब ये कि आएगा तो मोदी ही वाला नारा फर्जी राष्ट्रवादियों ने ही गढ़ा, बढ़ाया और थोपा। सेना की शहादत पर सियासत करने वाली ये भीड़ भी फर्जी राष्ट्रवादियों की ही थी। इस भीड़ की कोई दिलचस्पी 2016 में 29 जवानों के साथ ग़ायब हुए एयर फोर्स के विमान में नहीं है और ना ही चार दिन पहले 13 जवानों के साथ ग़ायब हुए विमान में। और इसीलिए नारा लगा कि आएगा तो मोदी ही और आए भी मोदी ही क्योंकि, राष्ट्रवाद का नारा भी फर्जी था और वोटर भी फर्जी नारे का समर्थक। यही नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धि है। नरेंद्र मोदी ने एक नेता के तौर पर आपके सोचने के तरीके बदल दिए। अब आप देश,समाज और खुद के लिए नहीं सोच रहे हैं। अब आप सिर्फ नरेंद्र मोदी के लिए सोच रहे हैं। अब आप महंगाई, भ्रष्टाचार, सैनिकों की शहादत, बेरोजगारी, विकास के लिए नहीं सोच रहे हैं। आप सिर्फ नरेंद्र मोदी के लिए सोच रहे हैं। यही एक नेता के तौर पर नरेंद्र मोदी की सफलता है।

असित नाथ तिवारी
टीवी पत्रकार

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