अजय कुमार, लखनऊ
कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। कारगिल युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई 1999 को खत्म हुआ। उस समय केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। अटल जी के कुशल ने नेृतत्व के चलते पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी और भारत की विजय हुई। इस युद्ध में शहीद हुए जवानों के सम्मान के लिए कारगिल विजय दिवास मनाया जाता है। कारगिल यु़द्ध से पूर्व भी भारत अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की उदंडता का जबाव देते हुए उसे तीन बार 1947,1965 और 1971 के युद्ध में धूल चटा चुका था।
कारिगल युद्ध हुआ, किन्तु इससे समझने के लिए युद्ध से पूर्व के परिपेक्ष पर भी नजर डालना जरूरी है। जिस समय कारगिल में युद्ध हुआ उस समय पाकिस्तान में नवाज शरीफ की सरकार थी और वहां के सेनाध्यक्ष परवेज मुर्शरफ हुआ करते थे। जो बाद में नवाज शरीफ सरकार का तख्ता पलट कर राष्ट्रपति बन गए थे।
अटल और नवाज शरीफ के बीच संबंध बहुत दोस्ताना थे। इन संबंधों को मजबूती देने लिए ही फरवरी 1999 में प्रधानमंत्री ने दिल्ली-लौहर के बीच बस सेवा शुरू कराई थी। इतना ही नहीं वह स्वयं बस में बैठ कर पाकिस्तान भी गए थे। तब नवाज शरीफ ने कहा था कि अटल जी कि लोकप्रियता पाकिस्तान में इतनी बढ़ गई है कि वह यहां से चुनाव भी लड़ें तो जीत जाएंगे।
उधर, पाक सेनाध्यक्ष मुर्शरफ को अटल-नवाज की निकटता रास नहीं आ रही थी। इसी का परिणाम था कारिगल का युद्ध।
अटल जी कहा करते थे कि हम दोस्त तो बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं। इसी लिए उन्होंने पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए उस तत्कालीन राष्ट्रपति और पूर्व सेनाध्यक्ष परवेज मुर्शरफ से बातचीत करने में भी संकोच नहीं किया जिसके सेनाध्यक्ष रहते कारिगल हुआ था। अटल और मुर्शरफ की आगरा में मुलाकात हुई जिसे आगरा समित नाम दिया गया था, लेकिन यह सफल नहीं रही थी।
एक बात का जिक्र यहां और जरूरी है। कारगिल युद्ध से पहले मई 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। ये 1974 के बाद भारत का पहला परमाणु परीक्षण था.। वाजपेयी ने परीक्षण ये दिखाने के लिए किया था कि भारत परमाणु संपन्न देश है. हालांकि उनके आलोचक इस परीक्षण की जरूरत पर सवाल उठाते रहे हैं,भारत को इसके खिलाफ न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंद्ध झेलना पड़ा था,बल्कि इसके जवाब के तौर पर पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण किया था। इसके बाद पाकिस्तान को अपनी परमाणु क्षमता पर काफी घमंड हो गया था। वह इसकी धमकी आज तक देता है।
शुरुआत में कारिगल यु़द्ध को शुरू में एक बड़ी घुसपैठ की कोशिश मान लिया था और सकरार की तरफ से कहा गया कि घुसपैठियों को कुछ ही दिनों में बाहर कर दिया जाएगा। लेकिन नियंत्रण रेखा में खोज के बाद और इन घुसपैठियों के नियोजित रणनीति में अंतर का पता चलने के बाद भारतीय सेना को अहसास हो गया कि हमले की योजना बहुत बड़े पैमाने पर किया गया है। इसके बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय नाम से 2,00,000 सैनिकों को भेजा। यह युद्ध आधिकारिक रूप से 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ। कारगिल युद्ध के दौरान 527 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया। 1300 से ज्यादा जवान घायल हो गए, जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नही देख पाए थे।
कारगिल में पाकिस्तान को हार का मुंह जरूर देखना पड़ा था,लेकिन उसकी भारत को परमाणु बम वाली धमकी यहां काम नहीं आ सकी थी।कारिगल युद्ध से पूर्व तक पाकिस्तान यही सोचता रहता था कि परमाणु बम के डर से भारत उससे कभी युद्ध की हिमाकत नहीं करेगा।
पहला युद्ध-1947 का भारत-पाक युद्ध, जिसे प्रथम कश्मीर युद्ध भी कहा जाता है, अक्टूबर 1947 में शुरू हुआ। उस समय पंडित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। पाकिस्तान की सेना के समर्थन के साथ हजारों की संख्या में जनजातीय लड़ाकुओं ने कश्मीर में प्रवेश कर राज्य के कुछ हिस्सों पर हमला कर उन पर कब्जा कर लिया, जिसके फलस्वरूप भारत से सैन्य सहायता प्राप्त करने के लिए कश्मीर के महाराजा को इंस्ट्रूमेंट ऑफ अक्सेशन पर हस्ताक्षर करने पड़े। कहा जाता है कि अगर नेहरू कश्मीर के महाराजा से समझौते की औपचारिकता पूरी करने से पूर्व कश्मीर में सेना भेज देते तो पाकिस्तान कश्मीर का बड़ा हिस्सा कब्जा नहीं पाता,जो आज तक उसके कब्जे में हैं।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 22 अप्रैल 1948 को रेसोलुशन 47 पारित किया। इसके बाद तत्कालीन मोर्चों को ही धीरे-धीरे ठोस बना दिया गया, जिसे अब नियंत्रण रेखा कहा जाता है। 1 जनवरी 1949 की रात को औपचारिक संघर्ष-विराम घोषित किया गया था।
द्वितीय विश्व युद्ध-1965 युद्ध पाकिस्तान के ऑपरेशन जिब्रॉल्टर के साथ शुरू हुआ, जिसके अनुसार पाकिस्तान की योजना जम्मू कश्मीर में सेना भेजकर वहां भारतीय शासन के विरुद्ध विद्रोह शुरू करने की थी। उस समय देश की कमान लाल बहादुर शास्त्री के हाथों में थी। शास्त्री जी की निडरता ने पाक को हिलाकर रख दिया। प्रधानमंत्री शास्त्री ने सेना को खुली छूट दे दी। भारत ने भी पश्चिमी पाकिस्तान पर बड़े पैमाने पर सैन्य हमले शुरू कर दिए। सत्रह दिनों तक चले इस युद्ध में हजारों की संख्या में जनहानि हुई थी। आखिरकार सोवियत संघ और संयुक्त राज्य द्वारा राजनयिक हस्तक्षेप करने के बाद युद्ध विराम घोषित किया गया। इसी के बाद 1966 में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों ने ताशकन्द समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
तीसरा युद्ध- 1971 के इस युद्ध में 94000 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बनाया गया। उस समय इदिरा गांधी की सरकार थी। इस युद्ध मे पाक कि हार देखते हुए संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और कई मित्र देशों को साथ लेकर जिसमें ब्रिटेन,चीन,पाक, फ्रांस मुख्य थे। भारत की ओर बढ़ने लगे। इसकी सूचना सोवियत संघ रूस को मिली तो वह सक्रिय हो गया। 1948 में रूस और भारत के एक दूसरे की मदद करने के लिए समझौता हुआ था। रूस ने बिना कुछ सोचे समझे अपनी पूरी ताकत भारत की मदद के लिये भेज दी। आधे देसो को तो रूस ने सीधे चेतावनी देदी कि अगर आप लोगों की तरफ से भारत पे कोई आक्रमण हुआ तो भुगतने के लिए तैयार रहना आधे से ज्यादा देस तो उल्टे पाव वापस चले गए थे।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। कारगिल युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई 1999 को खत्म हुआ। उस समय केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। अटल जी के कुशल ने नेृतत्व के चलते पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी और भारत की विजय हुई। इस युद्ध में शहीद हुए जवानों के सम्मान के लिए कारगिल विजय दिवास मनाया जाता है। कारगिल यु़द्ध से पूर्व भी भारत अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की उदंडता का जबाव देते हुए उसे तीन बार 1947,1965 और 1971 के युद्ध में धूल चटा चुका था।
कारिगल युद्ध हुआ, किन्तु इससे समझने के लिए युद्ध से पूर्व के परिपेक्ष पर भी नजर डालना जरूरी है। जिस समय कारगिल में युद्ध हुआ उस समय पाकिस्तान में नवाज शरीफ की सरकार थी और वहां के सेनाध्यक्ष परवेज मुर्शरफ हुआ करते थे। जो बाद में नवाज शरीफ सरकार का तख्ता पलट कर राष्ट्रपति बन गए थे।
अटल और नवाज शरीफ के बीच संबंध बहुत दोस्ताना थे। इन संबंधों को मजबूती देने लिए ही फरवरी 1999 में प्रधानमंत्री ने दिल्ली-लौहर के बीच बस सेवा शुरू कराई थी। इतना ही नहीं वह स्वयं बस में बैठ कर पाकिस्तान भी गए थे। तब नवाज शरीफ ने कहा था कि अटल जी कि लोकप्रियता पाकिस्तान में इतनी बढ़ गई है कि वह यहां से चुनाव भी लड़ें तो जीत जाएंगे।
उधर, पाक सेनाध्यक्ष मुर्शरफ को अटल-नवाज की निकटता रास नहीं आ रही थी। इसी का परिणाम था कारिगल का युद्ध।
अटल जी कहा करते थे कि हम दोस्त तो बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं। इसी लिए उन्होंने पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए उस तत्कालीन राष्ट्रपति और पूर्व सेनाध्यक्ष परवेज मुर्शरफ से बातचीत करने में भी संकोच नहीं किया जिसके सेनाध्यक्ष रहते कारिगल हुआ था। अटल और मुर्शरफ की आगरा में मुलाकात हुई जिसे आगरा समित नाम दिया गया था, लेकिन यह सफल नहीं रही थी।
एक बात का जिक्र यहां और जरूरी है। कारगिल युद्ध से पहले मई 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। ये 1974 के बाद भारत का पहला परमाणु परीक्षण था.। वाजपेयी ने परीक्षण ये दिखाने के लिए किया था कि भारत परमाणु संपन्न देश है. हालांकि उनके आलोचक इस परीक्षण की जरूरत पर सवाल उठाते रहे हैं,भारत को इसके खिलाफ न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंद्ध झेलना पड़ा था,बल्कि इसके जवाब के तौर पर पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण किया था। इसके बाद पाकिस्तान को अपनी परमाणु क्षमता पर काफी घमंड हो गया था। वह इसकी धमकी आज तक देता है।
शुरुआत में कारिगल यु़द्ध को शुरू में एक बड़ी घुसपैठ की कोशिश मान लिया था और सकरार की तरफ से कहा गया कि घुसपैठियों को कुछ ही दिनों में बाहर कर दिया जाएगा। लेकिन नियंत्रण रेखा में खोज के बाद और इन घुसपैठियों के नियोजित रणनीति में अंतर का पता चलने के बाद भारतीय सेना को अहसास हो गया कि हमले की योजना बहुत बड़े पैमाने पर किया गया है। इसके बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय नाम से 2,00,000 सैनिकों को भेजा। यह युद्ध आधिकारिक रूप से 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ। कारगिल युद्ध के दौरान 527 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया। 1300 से ज्यादा जवान घायल हो गए, जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नही देख पाए थे।
कारगिल में पाकिस्तान को हार का मुंह जरूर देखना पड़ा था,लेकिन उसकी भारत को परमाणु बम वाली धमकी यहां काम नहीं आ सकी थी।कारिगल युद्ध से पूर्व तक पाकिस्तान यही सोचता रहता था कि परमाणु बम के डर से भारत उससे कभी युद्ध की हिमाकत नहीं करेगा।
पहला युद्ध-1947 का भारत-पाक युद्ध, जिसे प्रथम कश्मीर युद्ध भी कहा जाता है, अक्टूबर 1947 में शुरू हुआ। उस समय पंडित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। पाकिस्तान की सेना के समर्थन के साथ हजारों की संख्या में जनजातीय लड़ाकुओं ने कश्मीर में प्रवेश कर राज्य के कुछ हिस्सों पर हमला कर उन पर कब्जा कर लिया, जिसके फलस्वरूप भारत से सैन्य सहायता प्राप्त करने के लिए कश्मीर के महाराजा को इंस्ट्रूमेंट ऑफ अक्सेशन पर हस्ताक्षर करने पड़े। कहा जाता है कि अगर नेहरू कश्मीर के महाराजा से समझौते की औपचारिकता पूरी करने से पूर्व कश्मीर में सेना भेज देते तो पाकिस्तान कश्मीर का बड़ा हिस्सा कब्जा नहीं पाता,जो आज तक उसके कब्जे में हैं।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 22 अप्रैल 1948 को रेसोलुशन 47 पारित किया। इसके बाद तत्कालीन मोर्चों को ही धीरे-धीरे ठोस बना दिया गया, जिसे अब नियंत्रण रेखा कहा जाता है। 1 जनवरी 1949 की रात को औपचारिक संघर्ष-विराम घोषित किया गया था।
द्वितीय विश्व युद्ध-1965 युद्ध पाकिस्तान के ऑपरेशन जिब्रॉल्टर के साथ शुरू हुआ, जिसके अनुसार पाकिस्तान की योजना जम्मू कश्मीर में सेना भेजकर वहां भारतीय शासन के विरुद्ध विद्रोह शुरू करने की थी। उस समय देश की कमान लाल बहादुर शास्त्री के हाथों में थी। शास्त्री जी की निडरता ने पाक को हिलाकर रख दिया। प्रधानमंत्री शास्त्री ने सेना को खुली छूट दे दी। भारत ने भी पश्चिमी पाकिस्तान पर बड़े पैमाने पर सैन्य हमले शुरू कर दिए। सत्रह दिनों तक चले इस युद्ध में हजारों की संख्या में जनहानि हुई थी। आखिरकार सोवियत संघ और संयुक्त राज्य द्वारा राजनयिक हस्तक्षेप करने के बाद युद्ध विराम घोषित किया गया। इसी के बाद 1966 में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों ने ताशकन्द समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
तीसरा युद्ध- 1971 के इस युद्ध में 94000 से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बनाया गया। उस समय इदिरा गांधी की सरकार थी। इस युद्ध मे पाक कि हार देखते हुए संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और कई मित्र देशों को साथ लेकर जिसमें ब्रिटेन,चीन,पाक, फ्रांस मुख्य थे। भारत की ओर बढ़ने लगे। इसकी सूचना सोवियत संघ रूस को मिली तो वह सक्रिय हो गया। 1948 में रूस और भारत के एक दूसरे की मदद करने के लिए समझौता हुआ था। रूस ने बिना कुछ सोचे समझे अपनी पूरी ताकत भारत की मदद के लिये भेज दी। आधे देसो को तो रूस ने सीधे चेतावनी देदी कि अगर आप लोगों की तरफ से भारत पे कोई आक्रमण हुआ तो भुगतने के लिए तैयार रहना आधे से ज्यादा देस तो उल्टे पाव वापस चले गए थे।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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