20.7.19

कर्नाटक के नाटक में राज्यपाल के कूदने से नया संवैधानिक संकट

जे.पी.सिंह
कर्नाटक के नाटक में राज्यपाल के कूद जाने से नए तरह का संवैधानिक संकट उत्पन्न हो  गया है और एक बार फिर पूरा विवाद उच्चतम न्यायालय की देहरी पर पहुंच गया है। उच्चतम न्यायालय  की संवैधानिक पीठ ने वर्ष  2016 में अरुणाचल प्रदेश की नबाम टुकी सरकार के मामले में एक आदेश दिया था कि असेंबली का सत्र चलने के दौरान गवर्नर के पास दखल देने और आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है।तब पीठ ने फ्लोर टेस्ट को लेकर तत्कालीन गवर्नर जेपी राजखोवा के फैसले को असंवैधानिक करार दिया था।कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस  सरकार भी उच्चतम न्यायालय के इस आदेश से फिलहाल फ्रंटफुट पर है। आंकड़ों के खेल में मुख्यमंत्री  कुमारस्‍वामी यह जंग लगभग हार चुके हैं लेकिन वह अभी पराजय को मानने के मूड में नहीं दिखाई दे रहे हैं। जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार राज्‍यपाल के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय चली गयी है।

कर्नाटक के राज्यपाल द्वारा बहुमत परीक्षण के लिए डेडलाइन तय किए जाने के खिलाफ मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी ने शुक्रवार को उच्चतम न्यायालयमें अपनी याचिका दाखिल की । याचिका में दलील दी गयी है कि राज्यपाल वजुभाई वाला विधानसभा की कार्यवाही में दखल नहीं दे सकते। मुख्यमंत्री ने विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग के लिए राज्यपाल द्वारा एक के बाद एक डेडलाइनल तय किए जाने पर सवाल उठाया है। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने उच्चतम न्यायालय  से उसके 17 जुलाई के आदेश पर स्पष्टीकरण की मांग की है, जिसमें कहा गया है कि 15 बागी विधायकों को सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

याचिका में कहा गया है कि गवर्नर ने गुरुवार को पत्र लिखकर निर्देश दिया था कि शुक्रवार दोपहर डेढ़ बजे तक बहुमत परीक्षण हो जाना चाहिए। जब विश्वास मत प्रस्ताव की प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी हो, तब गवर्नर इस तरह का निर्देश नहीं जारी कर सकते हैं। विश्वासमत प्रस्ताव पर फिलहाल बहस चल रही है।इसमें कहा गया है कि कर्नाटक विधानसभा के स्पीकर के. आर. रमेश कुमार भी कह चुके हैं कि चर्चा समाप्त होने के बाद ही वोटिंग होगी। याचिका में कहा गया है कि इन परिस्थितियों में गवर्नर दखल नहीं दे सकते कि विधानसभा में बहस किस तरीके से हो।याचिका में व्हिप के मुद्दे को उठाया है और कहा गया है कि राजनीतिक दलों को अपने विधायकों/सांसदों को व्हिप जारी करने का अधिकार है। संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत राजनीतिक दल को व्हिप  जारी करने का अधिकार है। उसे इस अधिकार से रोका नहीं जा सकता।

कर्नाटक में चल रहे सियासी शह और मात के खेल के बीच कांग्रेस पार्टी ने भी उच्चतम न्यायालय  में एक याचिका दायर करके उच्चतम न्यायालय द्वारा 17 जुलाई को दिए गए फैसले को चुनौती दी है। कर्नाटक कांग्रेस के प्रभारी दिनेश गुंडूराव ने अपनी याचिका में कहा की 15 बागी विधायकों के बारे में उच्चतम न्यायालय का आदेश पार्टी के अधिकारों का उल्‍लंघन है। उन्‍होंने कहा कि पार्टी को 10वीं अनुसूची के तहत अपने विधायकों को व्हिप  जारी करने का अधिकार है।

गुंडूराव ने उच्चतम न्यायालय से 17 जुलाई के उसके आदेश पर स्‍पष्‍टीकरण देने का अनुरोध किया है ताकि कांग्रेस पार्टी के विधायकों को व्हिप जारी करने के अधिकार पर प्रभाव न पड़े। उच्चतम न्यायालय ने अपने 17 जुलाईके फैसले में कहा था कि हमें इस मामले में संवैधानिक संतुलन  कायम करना है। स्पीकर खुद से फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है। उन्हें समयसीमा के भीतर निर्णय लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।लेकिन बागी विधायकों को विधानसभा में आने के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा।

अब सवाल उठ रहा है कि कर्नाटक विधानसभा स्पीकर केआर रमेश कुमार ने राज्यपाल  की  डेडलाइनो तक विश्वास मत के लिए वोटिंग नहीं कराया तो ऐसे में राज्यपाल क्या अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए राज्य की जेडीएस-कांग्रेस की संयुक्त सरकार को बर्खास्त कर सकते हैं। संवैधानिक परंपरा और उच्चतम न्यायालय  के फ़ैसले के संदर्भ में यह बात पूरी  स्पष्ट है कि राज्यपाल वजूभाई वाला ने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है। उन्हें स्पीकर को विश्वास मत पर वोट कराने का न तो आदेश और न ही सलाह देने का कोई अधिकार है। अरुणाचल प्रदेश के मामले में  पाँच जजों की पीठ  ने व्यवस्था दिया था कि राज्यपाल किसी भी हालत में स्पीकर को आदेश नहीं दे सकते कि वह अपना काम कैसे करें। राज्यपाल न तो स्पीकर के गाइड हैं और न ही उनके मार्गदर्शक। राज्यपाल यह क़तई तय नहीं कर सकते कि स्पीकर ने अपने अधिकारों का निर्वहन संविधान के मुताबिक़ किया है या नहीं।उच्चतम न्यायालय के मुताबिक़, स्पीकर और राज्यपाल, दोनों ही स्वतंत्र संवैधानिक संस्थाएँ हैं।

उच्चतम न्यायालय का स्पष्ट तौर पर कहना है कि राज्यपाल सिर्फ़ एक काम कर सकते हैं कि वह अपनी रिपोर्ट महामहिम राष्ट्रपति को यह बताते हुए भेज सकते हैं कि संविधान के मुताबिक़, राज्य में सरकार चलना मुश्किल हो गया है। यह रिपोर्ट देने के बाद वह महामहिम राष्ट्रपति के आदेश का इंतजार करना चाहिए।

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