कृष्णमोहन झा
क्रिकेट से राजनीति में आए कांग्रेस के बडबोले नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने आखिरकार पंजाब की अमरिंदर सरकार से इस्तीफा देना ही उचित समझा। पंजाब में गत विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की शानदार विजय के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्रित्व में सरकार का गठन हुआ था, तभी से नवजोत सिंह सिद्धू उसमें मंत्री बने हुए थे ,लेकिन उन्होने अपनी एक अलग हस्ती बनाए रखने की महत्वाकांक्षा का परित्याग कभी नहीं किया। वे जितने समय मंत्री रहे हमेशा ही अपनी हैसियत को मुख्यमंत्री से ऊपर मानते रहे। उन्हे यह अहंकार हो गया था कि जब तक राहुल गांधी के हाथों में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की बागडोर है ,तब तक पंजाब में उनकी कुर्सी पूरी तरह सुरक्षित है। सिद्धू ने एकाधिक अवसरों पर यहां तक कह दिया कि मैं किसी कैप्टन को नहीं जानता मेरे केप्टन तो राहुल गांधी ही है। और अब जब राहुल गांधी ही कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं रहे तो मानो उनके सिर से उनका वरदहस्त भी हट गया।
कांग्रेस अध्यक्ष पद से राहुल गांधी जी के इस्तीफे के बाद से ही यह अटकले लगाई जाने लगी थी कि अमरिंदर सरकार से अब नवजोत सिंह सिद्धू की विदाई तय है। अब उन्हे अपनी उन गलतियो से सबक लेना चाहिए,जिनके कारण उन्हें पंजाब की सरकार से हटने के लिए विवश होना पडा। सवाल यह उठता है कि जब सरकार के एक मंत्री के रूप में सिद्धू खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाए तो मंत्री पद से हटने के बाद क्या वे पूरी तरह ऑउट ऑफ कन्ट्रोल नहीं हो पायेंगे। वैसे पिछले कुछ समय से यह खबरें सुनने में आ रही थी कि मुख्यमंत्री केप्टन अमरिंदर सिंह उन्हे सरकार से हटाने का मन बना चुके है,परन्तु लोकसभा चुनाव में चूंकि पार्टी को उनके वक्तव्य कला का इस्तेमाल करना था, इसलिये उन्हे मंत्री पद से नहीं हटाया गया ,लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजो से यह साबित हो गया कि वह अपनी व्यक्तित्व की क्षमता का कोई विशेष लाभ पार्टी को नही दिला पायें। सबसे खास बात तो यह हे कि पार्टी के स्टार प्रचारक के रूप में उन्होने पंजाब के बाहर चुनाव रेलियों में अपने भाषणों से विवादों को ही जन्म दिया। इस कारण वे चुनाव आयोग का कोपभाजन बनने से नहीं बच पाए। एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र में आयोजित चुनावी रैली में उन्होने कहा था कि यहां आप अल्पसंख्यक नहीं बहुसंख्यक हो अगर आप सब एक हो जाओ तो यहां कांग्रेस को कोई नहीं हरा सकता। सिद्धू के द्वारा दिये गए विवादास्पाद बयानों से उपजे विवादों ने कांग्रेस को कई बार असहज स्थिति का सामना करने के लिये विवश होना पडा। सिद्धू ने इतने दिनों में अगर खुद को बदलने की जरूरत महसूस कर ली होती तो शायद उन्हे मंत्री पद से इस्तीफा नहीं देना पडता।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि उन्होने राहुल गांधी को अपना इस्तीफा 10 जून को ही भेज दिया था जिसे गत दिवस उन्होने ट्विटर पर शेयर किया और कहा कि वे मुख्यमंत्री को भी अपना इस्तीफा भेज रहे है । यह इस्तीफा महज एक पंक्ति में दिया गया है। अमरिंदर सरकार से उनके इस्तीफे के बाद यह सवाल भी उठ सकता है कि सिद्धू ने लोकसभा चुनाव परिणामों के आधार पर अपनी नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए इस्तीफा क्यों नहीं दिया है। वैसे यह भी सच है कि पंजाब ही एकमात्र ऐसा राज्य है ,जहां कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया। गौरतलब है कि पंजाब के अलावा राजस्थान, छत्तीसगढ, और मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास सत्ता की बागडोर रहने के बावजूद वहां उसे लोकसभा चुनावों में शर्मनाक हार का सामना करना पडा। मात्र पंजाब में अमरिंदर सरकार ने कांग्रेस की लाज रखी है। गौरतलब है कि नवजोत सिंह सिद्धू ने मुख्यमंत्री पर यह आरोप भी लगाया था कि लोकसभा चुनावों मे उन्होने नवजोत कौर सिध्दू को अमृतसर सीट से टिकट नहीं मिलने दी। सिध्दू अपनी पत्नी को इस सीट से लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी बनाए जाने के इच्छुक थे। उल्लेखनीय है कि वे पंजाब में पूर्ववर्ती अकाली भाजपा सरकार में मंत्री थी। बाद में उन्होने और नवजोत सिंह सिध्दू ने पंजाब विधानसभा चुनावों के पूर्व भाजपा छोडकर कांग्रेस में प्रवेश कर लिया था और दोनो पंजाब विधानसभा चुनावो में विजयी रहे। अमरिंदर सरकार में सिध्दू मंत्री पद अर्जित करने में भी सफल रहे ,लेकिन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के साथ उनके सम्बंध कभी सामान्य नहीं रहे। अनेक अवसरों पर तो उन्होने मुख्यमंत्री की इच्छा के विरूध जाकर कदम उठाए, जिनके लिए उन्हे आलोचना का शिकार भी बनना पडा। परन्तु सिध्दू ने हमेशा यहीं साबित करना चाहा कि वे अपनी मर्जी के मालिक है।
पाकिस्तान में जब इमरान खान की ओर से उन्हे अपने प्रधानमंत्री पद के शपथग्रहण समारोह में शामिल होने का न्यौता मिला ,तब भी चौतरफा विरोध के बावजूद सिध्दू पाकिस्तान चले गए और सेनाध्यक्ष बाजवा से गले भी मिले। सिध्दू की इमरान खान से दोस्ती निभाने के लिए की गई यह पाकिस्तान यात्रा केप्टन अमरिंदर सिंह की नाराजगी की सबसे पहली वजह थी और इसके बाद तो यह सिलसिला ही चल पडा कि सिध्दू ने मुख्यमंत्री की सहमति की प्रतीक्षा किए बिना ही विवादास्पद फैसले प्रारंभ कर दिए। उन्होने अपने बयानों से भी यह संकेत देने मे केाई कसर नहीं छोडी कि कैप्टन अमरिंदर सिंह उनके मुख्यमंत्री भले हो ,परन्तु वे अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है। गौरतलब है कि 2018 में जब पाकिस्तान में करतारपुर कारिडोर के शिलान्यास समारोह में सिध्दू ने शिरकत की थी तब उनके इस फैसले से कैप्टन अमरिंदर सिंह असहमत थे और उन्होने कहा था कि सिध्दू ने इसके लिए पार्टी के हाईकमान से कोई अनुमति नहीं ली। अमरिंदर सिंह ने विगत दिनो सिध्दू के विभाग में परिवर्तन कर उन्हे अपनी नाराजगी का अहसास भी करा दिया था, लेकिन सिध्दू ने भी एक महीने तक अपने नए मंत्रालय का कार्यभार ग्रहण न करके अपने असंतोष की परोक्ष अभिव्यक्ति मे कोई संकोच नहीं किया। धीरे-धीरे यह मतभेद बढते गए परन्तु सिध्दू ने कभी उन्हे दूर करने की अपनी ओर से कोई पहल नहीं की, और अब नतीजा सामने है। सिध्दू ने कहा है कि वे मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा भेज रहे है। यहां भी मजेदार बात यह है कि सिध्दू ने पहले राहुल गांधी को इस्तीफा भेजना उचित समझा, जबकि राहुलगांधी ने तो लोकसभा चुनाव परिणामों की घोषणा के तुरन्त बाद ही कांग्रेसाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। आश्चर्य की बात यह है कि मंत्री पद से अपना जो इस्तीफा सिध्दू ने राहुल गांधी को 10 जून को भेजा था उसे भी मुख्यमंत्री तक पहुंचाने में उन्हे एक माह से अधिक समय लग गया, हो सकता है कि सिध्दू अब मान मनोव्वल की प्रतीक्षा कर रहे हो। देखना यह है कि इसके बाद वे अपने लिए कौन सी भूमिका तय करते हैं।
उधर मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने स्पष्ट कहा है कि नवजोत सिंह सिध्दू की पत्नी नवजोत कोैर सिध्दू को अमृतसर लोकसभा सीट से टिकिट न मिलने में उनका कोई हाथ नहीं था। सिध्दू यह तय नहीं कर सकते कि पार्टी किस क्षेत्र से किसे उम्मीदवार बनाए। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने यह भी कहा है कि अनुशासन सबके लिए एक सा है और सबको उसका पालन करना चाहिए। सिध्दू के एक लाइन के इस्तीफे के बाद जिसमे उन्होने इस्तीफे की कोई वजह नहीं बताई है, अब मुख्यमंत्री के निर्णय की प्रतीक्षा है और संभावना यहीं व्यक्त की जा रही है कि सिध्दू का इस्तीफा स्वीकार करने में उन्हे कोई संकोच नहीं है ,परन्तु इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि प्रायः अपने बयानों से विवादों को जन्म देने वाले सिध्दू के ऐसे बयानों का सिलसिला जल्द थमने वाला नहीं है।
लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक हैं.
क्रिकेट से राजनीति में आए कांग्रेस के बडबोले नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने आखिरकार पंजाब की अमरिंदर सरकार से इस्तीफा देना ही उचित समझा। पंजाब में गत विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की शानदार विजय के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्रित्व में सरकार का गठन हुआ था, तभी से नवजोत सिंह सिद्धू उसमें मंत्री बने हुए थे ,लेकिन उन्होने अपनी एक अलग हस्ती बनाए रखने की महत्वाकांक्षा का परित्याग कभी नहीं किया। वे जितने समय मंत्री रहे हमेशा ही अपनी हैसियत को मुख्यमंत्री से ऊपर मानते रहे। उन्हे यह अहंकार हो गया था कि जब तक राहुल गांधी के हाथों में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की बागडोर है ,तब तक पंजाब में उनकी कुर्सी पूरी तरह सुरक्षित है। सिद्धू ने एकाधिक अवसरों पर यहां तक कह दिया कि मैं किसी कैप्टन को नहीं जानता मेरे केप्टन तो राहुल गांधी ही है। और अब जब राहुल गांधी ही कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं रहे तो मानो उनके सिर से उनका वरदहस्त भी हट गया।
कांग्रेस अध्यक्ष पद से राहुल गांधी जी के इस्तीफे के बाद से ही यह अटकले लगाई जाने लगी थी कि अमरिंदर सरकार से अब नवजोत सिंह सिद्धू की विदाई तय है। अब उन्हे अपनी उन गलतियो से सबक लेना चाहिए,जिनके कारण उन्हें पंजाब की सरकार से हटने के लिए विवश होना पडा। सवाल यह उठता है कि जब सरकार के एक मंत्री के रूप में सिद्धू खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाए तो मंत्री पद से हटने के बाद क्या वे पूरी तरह ऑउट ऑफ कन्ट्रोल नहीं हो पायेंगे। वैसे पिछले कुछ समय से यह खबरें सुनने में आ रही थी कि मुख्यमंत्री केप्टन अमरिंदर सिंह उन्हे सरकार से हटाने का मन बना चुके है,परन्तु लोकसभा चुनाव में चूंकि पार्टी को उनके वक्तव्य कला का इस्तेमाल करना था, इसलिये उन्हे मंत्री पद से नहीं हटाया गया ,लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजो से यह साबित हो गया कि वह अपनी व्यक्तित्व की क्षमता का कोई विशेष लाभ पार्टी को नही दिला पायें। सबसे खास बात तो यह हे कि पार्टी के स्टार प्रचारक के रूप में उन्होने पंजाब के बाहर चुनाव रेलियों में अपने भाषणों से विवादों को ही जन्म दिया। इस कारण वे चुनाव आयोग का कोपभाजन बनने से नहीं बच पाए। एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र में आयोजित चुनावी रैली में उन्होने कहा था कि यहां आप अल्पसंख्यक नहीं बहुसंख्यक हो अगर आप सब एक हो जाओ तो यहां कांग्रेस को कोई नहीं हरा सकता। सिद्धू के द्वारा दिये गए विवादास्पाद बयानों से उपजे विवादों ने कांग्रेस को कई बार असहज स्थिति का सामना करने के लिये विवश होना पडा। सिद्धू ने इतने दिनों में अगर खुद को बदलने की जरूरत महसूस कर ली होती तो शायद उन्हे मंत्री पद से इस्तीफा नहीं देना पडता।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि उन्होने राहुल गांधी को अपना इस्तीफा 10 जून को ही भेज दिया था जिसे गत दिवस उन्होने ट्विटर पर शेयर किया और कहा कि वे मुख्यमंत्री को भी अपना इस्तीफा भेज रहे है । यह इस्तीफा महज एक पंक्ति में दिया गया है। अमरिंदर सरकार से उनके इस्तीफे के बाद यह सवाल भी उठ सकता है कि सिद्धू ने लोकसभा चुनाव परिणामों के आधार पर अपनी नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए इस्तीफा क्यों नहीं दिया है। वैसे यह भी सच है कि पंजाब ही एकमात्र ऐसा राज्य है ,जहां कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया। गौरतलब है कि पंजाब के अलावा राजस्थान, छत्तीसगढ, और मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास सत्ता की बागडोर रहने के बावजूद वहां उसे लोकसभा चुनावों में शर्मनाक हार का सामना करना पडा। मात्र पंजाब में अमरिंदर सरकार ने कांग्रेस की लाज रखी है। गौरतलब है कि नवजोत सिंह सिद्धू ने मुख्यमंत्री पर यह आरोप भी लगाया था कि लोकसभा चुनावों मे उन्होने नवजोत कौर सिध्दू को अमृतसर सीट से टिकट नहीं मिलने दी। सिध्दू अपनी पत्नी को इस सीट से लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी बनाए जाने के इच्छुक थे। उल्लेखनीय है कि वे पंजाब में पूर्ववर्ती अकाली भाजपा सरकार में मंत्री थी। बाद में उन्होने और नवजोत सिंह सिध्दू ने पंजाब विधानसभा चुनावों के पूर्व भाजपा छोडकर कांग्रेस में प्रवेश कर लिया था और दोनो पंजाब विधानसभा चुनावो में विजयी रहे। अमरिंदर सरकार में सिध्दू मंत्री पद अर्जित करने में भी सफल रहे ,लेकिन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के साथ उनके सम्बंध कभी सामान्य नहीं रहे। अनेक अवसरों पर तो उन्होने मुख्यमंत्री की इच्छा के विरूध जाकर कदम उठाए, जिनके लिए उन्हे आलोचना का शिकार भी बनना पडा। परन्तु सिध्दू ने हमेशा यहीं साबित करना चाहा कि वे अपनी मर्जी के मालिक है।
पाकिस्तान में जब इमरान खान की ओर से उन्हे अपने प्रधानमंत्री पद के शपथग्रहण समारोह में शामिल होने का न्यौता मिला ,तब भी चौतरफा विरोध के बावजूद सिध्दू पाकिस्तान चले गए और सेनाध्यक्ष बाजवा से गले भी मिले। सिध्दू की इमरान खान से दोस्ती निभाने के लिए की गई यह पाकिस्तान यात्रा केप्टन अमरिंदर सिंह की नाराजगी की सबसे पहली वजह थी और इसके बाद तो यह सिलसिला ही चल पडा कि सिध्दू ने मुख्यमंत्री की सहमति की प्रतीक्षा किए बिना ही विवादास्पद फैसले प्रारंभ कर दिए। उन्होने अपने बयानों से भी यह संकेत देने मे केाई कसर नहीं छोडी कि कैप्टन अमरिंदर सिंह उनके मुख्यमंत्री भले हो ,परन्तु वे अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है। गौरतलब है कि 2018 में जब पाकिस्तान में करतारपुर कारिडोर के शिलान्यास समारोह में सिध्दू ने शिरकत की थी तब उनके इस फैसले से कैप्टन अमरिंदर सिंह असहमत थे और उन्होने कहा था कि सिध्दू ने इसके लिए पार्टी के हाईकमान से कोई अनुमति नहीं ली। अमरिंदर सिंह ने विगत दिनो सिध्दू के विभाग में परिवर्तन कर उन्हे अपनी नाराजगी का अहसास भी करा दिया था, लेकिन सिध्दू ने भी एक महीने तक अपने नए मंत्रालय का कार्यभार ग्रहण न करके अपने असंतोष की परोक्ष अभिव्यक्ति मे कोई संकोच नहीं किया। धीरे-धीरे यह मतभेद बढते गए परन्तु सिध्दू ने कभी उन्हे दूर करने की अपनी ओर से कोई पहल नहीं की, और अब नतीजा सामने है। सिध्दू ने कहा है कि वे मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा भेज रहे है। यहां भी मजेदार बात यह है कि सिध्दू ने पहले राहुल गांधी को इस्तीफा भेजना उचित समझा, जबकि राहुलगांधी ने तो लोकसभा चुनाव परिणामों की घोषणा के तुरन्त बाद ही कांग्रेसाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। आश्चर्य की बात यह है कि मंत्री पद से अपना जो इस्तीफा सिध्दू ने राहुल गांधी को 10 जून को भेजा था उसे भी मुख्यमंत्री तक पहुंचाने में उन्हे एक माह से अधिक समय लग गया, हो सकता है कि सिध्दू अब मान मनोव्वल की प्रतीक्षा कर रहे हो। देखना यह है कि इसके बाद वे अपने लिए कौन सी भूमिका तय करते हैं।
उधर मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने स्पष्ट कहा है कि नवजोत सिंह सिध्दू की पत्नी नवजोत कोैर सिध्दू को अमृतसर लोकसभा सीट से टिकिट न मिलने में उनका कोई हाथ नहीं था। सिध्दू यह तय नहीं कर सकते कि पार्टी किस क्षेत्र से किसे उम्मीदवार बनाए। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने यह भी कहा है कि अनुशासन सबके लिए एक सा है और सबको उसका पालन करना चाहिए। सिध्दू के एक लाइन के इस्तीफे के बाद जिसमे उन्होने इस्तीफे की कोई वजह नहीं बताई है, अब मुख्यमंत्री के निर्णय की प्रतीक्षा है और संभावना यहीं व्यक्त की जा रही है कि सिध्दू का इस्तीफा स्वीकार करने में उन्हे कोई संकोच नहीं है ,परन्तु इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि प्रायः अपने बयानों से विवादों को जन्म देने वाले सिध्दू के ऐसे बयानों का सिलसिला जल्द थमने वाला नहीं है।
लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक हैं.
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