अजय कुमार, लखनऊ
नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान वीआईपी कल्चर पर ‘हथौड़ा’ चलाते हुए वर्ष 2017 में मंत्रियों और अफसरों की गाड़ी पर लाल-नीली बत्ती(जो स्टे्टस सिम्बल हुआ करता था) लगाए जाने पर रोक लगाई थी तो इसकी चैतरफा प्रशंसा के साथ-साथ इस पर खूब सियासत भी हुई थी। गैर भाजपाई राज्य सरकारों ने मोदी सरकार के फैसले को अपने राज्यों में लागू करने से मना कर दिया था। उस समय उत्तर प्रदेश में नई-नई योगी सरकार बनी थी। अन्य राज्यों से इत्तर योगी सरकार ने सबसे पहले लाल-नीली बत्ती कल्चर को खत्म करने के लिए इसे प्रदेश में लागू कर दिया। गौरतलब हो, मोदी सरकार ने पहली मई 2017 से लाल बत्ती हटाने के लिए मोटर व्हीकल एक्ट से वो नियम ही हटा दिया था, जिसके तहत केंद्र और राज्य सरकारें वीआईपी लोगों को लाल बत्ती लगाने की इजाजत देती थीं। लाल बत्ती हटाने के आदेश के साथ ही 28 साल पुरानी परंपरा खत्म हो गई थी। वैसे, उत्तर प्रदेश की योगी सरकार सख्त फैसले लेने के लिए जाने जाती है। पहले उसने मोदी सरकार की पहल पर मंत्रियों और अधिकारियों की गाड़ी पर लगने वाली लाल-नीली बत्ती कल्चर को खत्म किया तो उसके बाद मंत्रियों और नेताओं से सम्पति का ब्योरा मांग लिया। इसी प्रकार प्रदेश में अपराध नियंत्रण के लिए बदमाशों के एनकांउटर का रास्ता भी चुना।
अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं की सुरक्षा में कटौती करने का निर्णय लिया है। इसी प्रकार राज्यपाल आनंदीबेन पटेल भी वीआईपी कल्चर खत्म करने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ की तरज अपने सुरक्षा घेरे से सुरक्षाकर्मियों को कम करने की पहल की है। राज्यपाल और सीएम की इस पहल के बाद गृह विभाग ने सभी माननीयों की सुरक्षा व्यवस्था का रिव्यू करने का फैसला किया है। जिनके पास भी जरूरत से अधिक सुरक्षाकर्मी होंगे, उन्हें वापस लिया जाएगा। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बड़े पैमाने पर माननीयों व वीवीआईपी लोगों की सुरक्षा में भारी कटौती की पहल की है। राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने शासन से उनके सुरक्षा घेरे का रिव्यू करने के लिए कहा है। साथ ही उन्होंने निर्देश दिए हैं कि जो भी सुरक्षा गैर जरूरी है, उसे कम किया जाए। राज्यपाल और मुख्यमंत्री के लिए तय सुरक्षा मानकों और उनके जीवन भय को देखते हुए सुरक्षा इंतजामों का रिव्यू करवाया गया। पूरी रिपोर्ट आने के बाद अतिरिक्त सुरक्षाकर्मी को हटाया जाएगा।
सूत्र बताते हैं कि राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने सुरक्षाकर्मियों को हटाने की पहल करते हुए कहा कि सुरक्षाकर्मियों को आम जनता की सुरक्षा के लिए लगाया जाए। जानकारी के मुताबिक राज्यपाल ने करीब 50 सुरक्षाकर्मियों को कम करने के लिए कहा है, इस पर शासन को कोई ज्यादा एतराज भी नहीं होगा, लेकिन जब मामला सीएम योगी आदित्यनाथ की सुरक्षा कम करने का आता है तो शासन,पुलिस और खुफिया तंत्र के हाथपांव फूल जाते हैं।दरअसल, हिंदूवादी छवि के चलते सीएम योगी आदित्यनाथ तमाम आतंकी संगठनों के निशाने पर रहते हैं। सीएम बनने के बाद उन पर यह खतरा और बढ़ने की आशंका जताते हुए गृह विभाग ने उनके लिए जेड प्लस सुरक्षा के अलावा एनएसजी कमांडो का घेरा बढ़ाने की मांग की थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने उनके लिए एनएसजी घेरे की मंजूरी दे दी थी। वर्तमान में सीएम तीन स्तरीय सुरक्षा घेरे में रहते हैं। इसमें एक घेरा सुरक्षा शाखा के सुरक्षाकर्मियों का, दूसरा घेरा सीआईएसएफ जवानों का और तीसरा घेरा एनएसजी कमांडो का है। अब देखने वाला होगा कि सीएम पर जीवन भय को देखते हुए उनके सुरक्षा घेरे में क्या कटौती की जाएगी।
बताते चलें अभी हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कई नेताओं को दी गई सुरक्षा की समीक्षा की थी। स्टेटस सिंबल के रूप में देखी और आंकी जाने वाली वीआईपी की सुरक्षा पर इस बार केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बड़ी बारीकी से कैंची चलाई तो इस कदम का असर देश भर माननीयों की सुरक्षा में देखने को मिला। इसमें यूपी के डिप्टी सीएम से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री तक शामिल है। कुछ माननीयों सुरक्षा जहां बिल्कुल हटा ली गयी है वहीं कुछ की सुरक्षा में कटौती कर दी गयी है। बता दें कि देश भर के नेताओं की सुरक्षा के नाम हर माह लम्बा-ड़ा खर्च आता है। किसी को वाई तो किसी को वाई प्लस, किसी को जेड तो किसी को जेड प्लस स्तर की सुरक्षा उपलब्ध कराई जाती है। प्रत्येक तीन माह पर सुरक्षा की समीक्षा भी गृह मंत्रालय द्वारा की जाती है जिसके आधार पर ही आगे की सुरक्षा बढ़ाई जाती है।
इस बार रिव्यू रिपोर्ट आने के बाद गृह मंत्रालय ने बड़ें पैमाने पर माननीयों की सुरक्षा पर कैंची चलाई है। जिन नेताओं की सुरक्षा पर यह कैंची चली है उन्हें सर्वाधिक माननीय उत्तर प्रदेश के ही हैं। इसमें यूपी के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा तो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आदि कई नाम शामिल हैं। अखिलेश यादव के साथ चलने वाला एनएसजी घेरा अब नहीं नजर आएगी। उनकी सुरक्षा अब पुलिस के हवाले होगी। इसके अलावा बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्र, संगीत सोम, साक्षी महाराज जैसे दिग्गजों की सुरक्षा भी घटना दी गयी है। योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री सुरेश राणा के अलावा आचार्य प्रमोद कृष्णम, ओपी माथुर, कुंवर सर्वेश सिंह, राघव लखन पाल, शिव चरण गुप्ता, इंद्रेश कुमार, रामशंकर कठेरिया, उदित राज, अनिल सिंह, ब्रजेश सौरभ, जयवीर सिंह, मोती सिंह, निहालचंद्र, सलीम शेरवानी, विजय पाल तोमर जैसे माननीयों को अब गृह मंत्रालय सुरक्षा नहीं उपलब्ध कराएगा। इन्हें सुरक्षा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी संबंधित राज्य की स्थानीय पुलिस की होगी।
लब्बोलुआब यह है कि केन्द्र की मोदी और यूपी की योगी सरकार इस बात से फिक्रमंद है कि आम जनता के लिए सुरक्षा कर्मियों की भारी कमी है,लेकिन नेतागणों के साथ सुरक्षा कर्मियों का हुजूम चलता है। इससे यातायात व्यवस्थता प्रभावित होती है तो आमजन को यह बात भी कचोटती है कि उनके द्वारा चुने गए सांसद और विधायकों को अपनी जान की इतनी परवाह क्यों रहती है। अक्सर यह भी देखने में आया है कि माननीयों की सुरक्षा में लगे कर्मी इधर-उधर दबंगई दिखाने लगते हैं। कई तरह के अनैतिक धंधों में शामिल हो जाते हैं।
नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान वीआईपी कल्चर पर ‘हथौड़ा’ चलाते हुए वर्ष 2017 में मंत्रियों और अफसरों की गाड़ी पर लाल-नीली बत्ती(जो स्टे्टस सिम्बल हुआ करता था) लगाए जाने पर रोक लगाई थी तो इसकी चैतरफा प्रशंसा के साथ-साथ इस पर खूब सियासत भी हुई थी। गैर भाजपाई राज्य सरकारों ने मोदी सरकार के फैसले को अपने राज्यों में लागू करने से मना कर दिया था। उस समय उत्तर प्रदेश में नई-नई योगी सरकार बनी थी। अन्य राज्यों से इत्तर योगी सरकार ने सबसे पहले लाल-नीली बत्ती कल्चर को खत्म करने के लिए इसे प्रदेश में लागू कर दिया। गौरतलब हो, मोदी सरकार ने पहली मई 2017 से लाल बत्ती हटाने के लिए मोटर व्हीकल एक्ट से वो नियम ही हटा दिया था, जिसके तहत केंद्र और राज्य सरकारें वीआईपी लोगों को लाल बत्ती लगाने की इजाजत देती थीं। लाल बत्ती हटाने के आदेश के साथ ही 28 साल पुरानी परंपरा खत्म हो गई थी। वैसे, उत्तर प्रदेश की योगी सरकार सख्त फैसले लेने के लिए जाने जाती है। पहले उसने मोदी सरकार की पहल पर मंत्रियों और अधिकारियों की गाड़ी पर लगने वाली लाल-नीली बत्ती कल्चर को खत्म किया तो उसके बाद मंत्रियों और नेताओं से सम्पति का ब्योरा मांग लिया। इसी प्रकार प्रदेश में अपराध नियंत्रण के लिए बदमाशों के एनकांउटर का रास्ता भी चुना।
अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं की सुरक्षा में कटौती करने का निर्णय लिया है। इसी प्रकार राज्यपाल आनंदीबेन पटेल भी वीआईपी कल्चर खत्म करने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ की तरज अपने सुरक्षा घेरे से सुरक्षाकर्मियों को कम करने की पहल की है। राज्यपाल और सीएम की इस पहल के बाद गृह विभाग ने सभी माननीयों की सुरक्षा व्यवस्था का रिव्यू करने का फैसला किया है। जिनके पास भी जरूरत से अधिक सुरक्षाकर्मी होंगे, उन्हें वापस लिया जाएगा। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बड़े पैमाने पर माननीयों व वीवीआईपी लोगों की सुरक्षा में भारी कटौती की पहल की है। राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने शासन से उनके सुरक्षा घेरे का रिव्यू करने के लिए कहा है। साथ ही उन्होंने निर्देश दिए हैं कि जो भी सुरक्षा गैर जरूरी है, उसे कम किया जाए। राज्यपाल और मुख्यमंत्री के लिए तय सुरक्षा मानकों और उनके जीवन भय को देखते हुए सुरक्षा इंतजामों का रिव्यू करवाया गया। पूरी रिपोर्ट आने के बाद अतिरिक्त सुरक्षाकर्मी को हटाया जाएगा।
सूत्र बताते हैं कि राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने सुरक्षाकर्मियों को हटाने की पहल करते हुए कहा कि सुरक्षाकर्मियों को आम जनता की सुरक्षा के लिए लगाया जाए। जानकारी के मुताबिक राज्यपाल ने करीब 50 सुरक्षाकर्मियों को कम करने के लिए कहा है, इस पर शासन को कोई ज्यादा एतराज भी नहीं होगा, लेकिन जब मामला सीएम योगी आदित्यनाथ की सुरक्षा कम करने का आता है तो शासन,पुलिस और खुफिया तंत्र के हाथपांव फूल जाते हैं।दरअसल, हिंदूवादी छवि के चलते सीएम योगी आदित्यनाथ तमाम आतंकी संगठनों के निशाने पर रहते हैं। सीएम बनने के बाद उन पर यह खतरा और बढ़ने की आशंका जताते हुए गृह विभाग ने उनके लिए जेड प्लस सुरक्षा के अलावा एनएसजी कमांडो का घेरा बढ़ाने की मांग की थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने उनके लिए एनएसजी घेरे की मंजूरी दे दी थी। वर्तमान में सीएम तीन स्तरीय सुरक्षा घेरे में रहते हैं। इसमें एक घेरा सुरक्षा शाखा के सुरक्षाकर्मियों का, दूसरा घेरा सीआईएसएफ जवानों का और तीसरा घेरा एनएसजी कमांडो का है। अब देखने वाला होगा कि सीएम पर जीवन भय को देखते हुए उनके सुरक्षा घेरे में क्या कटौती की जाएगी।
बताते चलें अभी हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कई नेताओं को दी गई सुरक्षा की समीक्षा की थी। स्टेटस सिंबल के रूप में देखी और आंकी जाने वाली वीआईपी की सुरक्षा पर इस बार केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बड़ी बारीकी से कैंची चलाई तो इस कदम का असर देश भर माननीयों की सुरक्षा में देखने को मिला। इसमें यूपी के डिप्टी सीएम से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री तक शामिल है। कुछ माननीयों सुरक्षा जहां बिल्कुल हटा ली गयी है वहीं कुछ की सुरक्षा में कटौती कर दी गयी है। बता दें कि देश भर के नेताओं की सुरक्षा के नाम हर माह लम्बा-ड़ा खर्च आता है। किसी को वाई तो किसी को वाई प्लस, किसी को जेड तो किसी को जेड प्लस स्तर की सुरक्षा उपलब्ध कराई जाती है। प्रत्येक तीन माह पर सुरक्षा की समीक्षा भी गृह मंत्रालय द्वारा की जाती है जिसके आधार पर ही आगे की सुरक्षा बढ़ाई जाती है।
इस बार रिव्यू रिपोर्ट आने के बाद गृह मंत्रालय ने बड़ें पैमाने पर माननीयों की सुरक्षा पर कैंची चलाई है। जिन नेताओं की सुरक्षा पर यह कैंची चली है उन्हें सर्वाधिक माननीय उत्तर प्रदेश के ही हैं। इसमें यूपी के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा तो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आदि कई नाम शामिल हैं। अखिलेश यादव के साथ चलने वाला एनएसजी घेरा अब नहीं नजर आएगी। उनकी सुरक्षा अब पुलिस के हवाले होगी। इसके अलावा बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्र, संगीत सोम, साक्षी महाराज जैसे दिग्गजों की सुरक्षा भी घटना दी गयी है। योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री सुरेश राणा के अलावा आचार्य प्रमोद कृष्णम, ओपी माथुर, कुंवर सर्वेश सिंह, राघव लखन पाल, शिव चरण गुप्ता, इंद्रेश कुमार, रामशंकर कठेरिया, उदित राज, अनिल सिंह, ब्रजेश सौरभ, जयवीर सिंह, मोती सिंह, निहालचंद्र, सलीम शेरवानी, विजय पाल तोमर जैसे माननीयों को अब गृह मंत्रालय सुरक्षा नहीं उपलब्ध कराएगा। इन्हें सुरक्षा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी संबंधित राज्य की स्थानीय पुलिस की होगी।
लब्बोलुआब यह है कि केन्द्र की मोदी और यूपी की योगी सरकार इस बात से फिक्रमंद है कि आम जनता के लिए सुरक्षा कर्मियों की भारी कमी है,लेकिन नेतागणों के साथ सुरक्षा कर्मियों का हुजूम चलता है। इससे यातायात व्यवस्थता प्रभावित होती है तो आमजन को यह बात भी कचोटती है कि उनके द्वारा चुने गए सांसद और विधायकों को अपनी जान की इतनी परवाह क्यों रहती है। अक्सर यह भी देखने में आया है कि माननीयों की सुरक्षा में लगे कर्मी इधर-उधर दबंगई दिखाने लगते हैं। कई तरह के अनैतिक धंधों में शामिल हो जाते हैं।
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