जोधपुर। पढ़ो तो पूरा पढ़ो, तल तक जाओ। आगे बढ़ो तो उत्स तक जाओ।' हिंदी के वयोवृद्ध आलोचक प्रो. मोहनकृष्ण बोहरा ने उकत विचार अपने अस्सीवें जन्मदिन पर चौपाल द्वारा आयोजित समारोह में व्यक्त किये। जोधपुर के इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स के सभागार में आत्मीय जन को सम्बोधित करते हुए प्रो बोहरा ने अपने वक्तव्य की शुरुआत एक पंजाबी कथन से की: तुस्सी साड्डा जुलूस करना चांदे हो, यानि आप लोग मेरा जुलूस निकालना चाहते हो।
यह इस आयोजन पर उनकी हास्यपूर्ण प्रतिक्रिया थी, जिसमें करुणा और किंचित नापसंदगी का स्वर भी साफ़ सुना जा सकता था। इसके बाद वे अपनी रौ में आए और फिर अपनी जीवन यात्रा, लेखन यात्रा का बहुत निर्मम और तटस्थ चित्रण किया। अपने साहित्यिक जीवन में स्व. नेमिचंद्र जैन ‘भावुक’ के अवदान को उन्होंने बहुत कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार किया। उन्होंने नयी पीढ़ी को तुरंत प्रसिद्धि की प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए कहा कि अगर साहित्य कर्म में आ रहे हैं तो यह जानकर आओ कि आपको जीते जी कोई मान नहीं मिलेगा। उनकी यह सलाह भी बहुत महत्वपूर्ण थी कि अगर इतिहास ने किसी को भुला दिया तो इतिहास की उस ग़लती को भी सुधारा जाना ज़रूरी है। यह बात उनके अपने काम के संदर्भ में भी कम महत्वपूर्ण नहीं है जिसकी गवाही उनकी पुस्तकें 'आलोचना के पूर्व आयाम' और 'शिलिमुख' देती हैं।
समारोह के अध्यक्ष विख्यात कवी -चिंतक डॉ नंद किशोर आचार्य ने बोहरा जी की ही एक किताब के शीर्षक से खेलते हुए कहा कि हक़ सिर्फ तसलीमा ही नहीं, आत्मीयता का भी होता है। उनका संकेत इस बात की तरफ था कि बोहरा जी इस समारोह के पक्ष में नहीं थे। आचार्य जी ने बोहरा जी के साथ अपने सुदीर्घ और सघन रिश्तों की चर्चा की और फिर उनके आलोचक रूप का विश्लेषण करते हुए कहा कि वे छोटे-बड़े का भेद किये बग़ैर गम्भीरता से पढ़ते और बेबाकी से अपनी बात कहते हैं। आचार्य जी ने तसलीमा और फिर एलियट को केंद्र में रखकर किये गए बोहरा जी के काम की चर्चा की और फिर कहा कि कोई बड़ा दर्शन ऐसा नहीं है जो पूरी तरह त्रुटिमुक्त हो। मूल बात होती है मूल्य दृष्टि और बोहरा जी की मूल्य दृष्टि सहानुभूतिशील और निष्पक्ष है।
इस अवसर पर प्रो. बोहरा की कौटिल्य प्रकाशन द्वारा सद्य प्रकाशित दो पुस्तकों – ‘रचनाकार का संकट” और ‘समकालीन कहानीकार: नया वितान’ का लोकार्पण भी किया गया। इसी अवसर पर एटा से प्रकाशित हो रही चर्चित पत्रिका ‘चौपाल’ के प्रो बोहरा पर केंद्रित विशेषांक ‘साहित्य साधना के अस्सी वर्ष: मोहनकृष्ण बोहरा’ का भी लोकार्पण हुआ। इस विशेषांक का सम्पादन जाने माने आलोचक डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने किया है। इस समारोह में बोहरा जी के अनेक शुभ चिंतकों, प्रशंसकों व रचनाकारों ने छोटे-छोटे किंतु सारगर्भित वक्तव्य देकर इसे गरिमा प्रदान की। बनास जन के सम्पादक और युवा आलोचक डॉ पल्लव का कहना था कि हिंदी आलोचना अभी तक मुख्यत: कविता केंद्रित रही है और उसमें कहानी पर कम ध्यान दिया गया है। ऐसे में प्रो बोहरा की यहां लोकार्पित पुस्तक ‘समकालीन कहानीकार’ एक बड़े अभाव की पूर्ति करती है।
पल्लव ने हमारे समय के बड़े कवि नंद चतुर्वेदी की इस शिकायत का स्मरण करते हुए कि उत्तर प्रदेश वाले राजस्थान को अपनी साहित्यिक मण्डी समझते रहे हैं, इस बात पर उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि आज उत्तर प्रदेश की एक पत्रिका ने राजस्थान के एक बड़े आलोचक पर अपना विशेषांक केंद्रित किया है। 'चौपाल' के सम्पादक डॉ कामेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि लघु पत्रिका आंदोलन की सार्थकता इसी बात में है कि चकाचौंध से दूर रहकर निष्ठा से साहित्य सेवा में लगे साहित्यकारों और विचारों का जन जन तक प्रसार करे। डॉ माधव हाड़ा ने बोहरा जी के मनुष्यत्व को रेखांकित करते हुए उनके साथ बिताये गए समय की कुछ मार्मिक स्मृतियों को साझा किया।
डॉ हाड़ा का विचार था कि बोहरा जी ने कभी कहीं भी शॉर्ट कट नहीं अपनाया, और यही वजह है कि वे हिंदी में प्राय: हाशिये पर मानी जानी वाली पुस्तक समीक्षा को भी प्रतिष्ठा प्रदान कर सके। डॉ हरीदास व्यास का विचार था कि एक आलोचक के रूप में बोहरा जी रूढ़ और जड़ होने से बचते हैं। इस आयोजन को प्रो. बोहरा की पौत्री झिलमिल द्वारा बनाई गई एक वीडियो फिल्म के प्रदर्शन ने एक भिन्न आयाम प्रदान किया। इस फिल्म का शीर्षक था – जीवन के मधुर क्षण। इस अवसर पर प्रो. मीनू रॉय, आशा बोथरा, भावेंद्र शरद जैन, डॉ पुष्पा गुप्ता, भागचंद सोलंकी, मुकेश भार्गव, प्रो. कैलाश कौशल और अदिति ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम के अंत में प्रो बोहरा के सुपुत्र मधुसूदन बोहरा ने कृतज्ञता ज्ञापित की।
रिपोर्ट - डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल
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