9.9.19

2020 का विधान सभा चुनाव पार्टियों की आईटी टीम लड़ेगी


वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र यादव के साथ अमरेंद्र पटेल की बातचीत

वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र यादव कहते हैं कि मीडिया संस्थागत बदलाव का ही नहीं, बल्कि व्यवस्थागत बदलाव का भी केंद्र रहा है। सामाजिक बदलाव का भी कारक रहा है। मीडिया की तकनीकी बदल रही है और इसका कार्य क्षेत्र और स्वरूप भी बदल गया है। पत्रकार अमरेंद्र पटेल के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि 2020 का विधान सभा चुनाव पार्टियों की आइटी टीम लड़ेगी और इसकी कवायद भी शुरू हो गयी है। वीरेंद्र यादव से अमरेंद्र पटेल की हुई बातचीत प्रस्तुत है:

सवाल: किस आधार पर कह सकते हैं कि पार्टियों की आइटी टीम चुनाव लड़ेगी?
उत्तर: इसे आम सकारात्मक पक्ष में भी ले सकते हैं और नकारात्मक पक्ष में भी ले सकते हैं। चुनाव प्रचार हाईटेक हो गया है। सुविधाएं बढ़ गयी हैं। उस हिसाब से निगरानी का तंत्र भी मजबूत हुआ है। अगर हम कहते हैं कि आईटी (सूचना तकनीकी) टीम चुनाव लड़ेगी तो इसका आशय है कि पार्टियों की ढांचागत बनावट का महत्वपूर्ण हिस्सा आईटी हो गया है। भाजपा, राजद, जदयू समेत सभी प्रमुख पार्टियों ने ऑन लाइन सदस्यता अभियान चलाया है। इसके लिए भी आईटी टीम काम करती है। चुनाव के दौरान पार्टियों को चंदा देने का मामला हो या उम्मीदवार के एकाउंट में पार्टी की ओर से राशि ट्रांसफर करने का मामला हो या नेताओं की गतिविधियों पर निगरानी का सवाल हो, सभी काम आइटी टीम ही करती है। फेसबुक, वाट्सएप, ट्विटर से लेकर अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म चलाने और उसके माध्यम से प्रचार का काम भी आइटी टीम ही करती है। सूचना प्रौद्योगिकी राजनीतिक प्रक्रिया की रीढ़ हो गयी है। इसके बिना पार्टियों की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।

सवाल: चुनाव को लेकर आपकी क्या तैयारी है?
उत्तर: चुनाव राजनीतिक प्रक्रिया के साथ ही बाजार की प्रक्रिया भी हो गया है। यहां सस्ते माल भी बिकते हैं और महंगे माल भी बिकते हैं। यह बेचने वाले के कौशल और खरीदने वाले की आवश्यकता पर निर्भर करता है। आप देखेंगे कि एक ही कंपनी सभी पार्टियों के लिए झंडा, बैनर और अन्य प्रचार सामग्री बनाती है। उसके लिए वैचारिक प्रतिबद्धता नहीं होती है। आगामी विधान सभा चुनाव के लिए Birendra Yadav Institute of Caste Study ने आंकड़ों की आपूर्ति का काम शुरू किया है। Birendra Yadav Institute of Caste Study ने आरक्षित सीटों को छोड़कर अन्य सीटों के लिए विधान सभावार जातीय वोटों का आंकड़ा, पिछले 2010 और 2015 के चुनाव में प्रमुख पार्टियों (गठबंधन नहीं) के उम्मीदवारों को मिले वोट और उनकी जाति, जातीय बनावट और बसावट से जुड़े विभिन्न प्रकार के आंकड़े एकत्रित किये हैं। इसके साथ दावेदारों की मांग के अनुसार भी आंकड़े उपलब्ध कराने की व्यवस्था है।

सवाल: आरक्षित सीटों को कोई छोड़ दिया आपने?
उत्तर: इसकी वजह है। इन सीटों पर उम्मीदवार की भूमिका गौण होती है और समर्थक जातियां ज्यादा आक्रामक होती हैं। वैसे स्थिति में टिकट मिलने से पहले इन सीटों पर कोई हलचल नहीं होती है। प्रदेश में करीब 35 सीटें ऐसी हैं, जहां अतिपिछड़ी जातियां निर्णायक होती हैं और प्रमुख उम्मीदवार भी इन्हीं जातियों के होते हैं। जबकि करीब 165 सीटों पर यादव, राजपूत, भूमिहार, कोईरी, कुर्मी, ब्राह्मण और मुसलमान के बीच मुकाबला होता है। कई सीटों पर एक ही जाति के उम्मीदवार आमने-सामने होते हैं। हमने सबसे अधिक आंकड़ा इन्हीं क्षेत्रों के लिए संकलित किया है। उम्मीदवारी से पहले ही इन जातियों के लोग दावेदारी में लाखों रुपये फूंक देते हैं।

सवाल: अपने टारगेट तक पहुंचने का माध्यम क्या बनाया है?
उत्तर: हमारा टारगेट ग्रुप वही है, जिसे चुनाव लड़ना है। इस टारगेट ग्रुप को हमने जोड़कर रखा है। Birendra Yadav Institute of Caste Study के पास 2010 और 2015 के विधान सभा चुनाव लड़ चुके प्रमुख पार्टियों के उम्मीदवारों और निर्वाचित विधायकों के मोबाइल, वाट्सएप और इमेल आइडी है। इसके साथ ही 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव में प्रमुख पार्टियों के निर्वाचित और पराजित उम्मीदवारों का मोबाइल, वाट्सएप और इमेल आइडी संस्थान के पास है। इन लोगों से लगातार खबरों के साथ जुड़े हुए हैं।

सवाल: आपकी पुस्तक ‘राजनीति की जाति’ को लेकर क‍या रिस्पॉस है?
उत्तर: हम अपने पाठकों को पहले स्पष्ट कर दें कि ‘राजनीति की जाति’ पुस्तक के फार्मेट में नहीं है। यह पुस्तक मासिक ‘वीरेंद्र यादव न्यूज’ के सभी अंकों का संकलन है। इस पुस्तक में हर महीने में नया अंक जोड़ते चले जाते हैं। ‘वीरेंद्र यादव न्यूज’ बिहार की राजनीति पर सबसे अधिक शोधपरक और तथ्यपरक सामग्री अपने पाठकों तक पहुंचाती है। इसमें प्रदेश की महीने भर की प्रमुख राजनीतिक घटनाओं का विश्लेषण भी रहता है। लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 तथा विधान सभा चुनाव 2010 और 2015 से जुड़े आंकड़ों के साथ 2015 में निर्वाचित विधायकों और उम्मीदवारों की जातिवार सूची भी पुस्तक में है। इसके अलावा इसमें वह हर सामग्री है, जो बिहार की राजनीति करने वाले और बिहार की राजनीति में रूचि रखने वाले व्यक्तियों के लिए उपयोगी और जरूरी है, पुस्तक में उपलब्ध है। हम Birendra Yadav Institute of Caste Study के निदेशक के रूप में पाठकों से आग्रह करेंगे कि वे एक बार संस्थान से जुड़े और इसकी सशुल्क सुविधाओं का लाभ उठायेंगे। सशुल्क सुविधाओं का लाभ उठाना भाजपा वालों के लिए राष्ट्रसेवा है और समाजवादियों के लिए समाजसेवा। हम सभी का स्वागत करेंगे।


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