Shivam Dwivedi
पूर्व में गाँधी जयंती थी। जाहिर है खूब विचार विमर्श चला। गाँधी प्रासंगिक है या अप्रसांगिक। गाँधी किसका है और किसका नहीं है। गांधी बीजेपी का है या कांग्रेस का। एक दूसरे कि विचारधारा को गलत सावित करने के लिए और अपनी विचारधारा को सही बताने के लिए इतिहास , राजनीति, की बड़ी - बड़ी बातें की तथा अंत में एक दूसरे को या गांधी को कोसने के सिवा और कुछ नहीं शेष मिला । पर आखिर में गांधी है किसका ? तेरा या मेरा ।
आज भारत की राजनीती पर से आजादी के आंदोलन का प्रभाव खत्म हो चुका है. शेष रह गई हैं स्मृतियाँ और उनमे एक गाँधी भी है। एक स्मृति एक मूर्ति। बस यही है गाँधी जिसको लेकर कांग्रेस और बीजेपी में प्रतिस्पर्धा चल रही है कि गांधी तो मेरा है।
आप कहेंगे गाँधी जनता का है। मैं कहूंगा नहीं। कोई भी आदमी जनता का आदमी तभी तक रहता है जब तक कि वो जीवित रहता है, उसके मरने के बाद ही उसके वयक्तित्व और विरासत के बंटवारे को लेकर अनुयायियों और आलोचकों में संघर्ष शुरू हो जाता है और जनता भी अलग अलग खेमों में बंट जाती हैं। इसलिए मुझे नहीं लगता की जनता का तर्क सही तर्क है या कोई महानुभव जनता का आदमी भी होता है या हो सकता है। हाँ जब तक वो जीवित होता है तब तक उसका व्यक्तित्व भी होता है और जनता से संबंध भी रहता है, तब तक वो जनता का आदमी जरूर रहता है है और जनता का एक हिस्सा भी उसके साथ रहता है।
जो हर इतिहास पुरुष के साथ हुआ है वो आज गाँधी के साथ भी होगा। एक तरफ अनुयायी हैं जो महिमा मंडन करने में लगे हैं दूसरी तरफ प्रतिद्वंदी हैं जो ख़ारिज करने में लगे हैं।
आज देश का राजनितिक माहोल ही ऐसा बन गया है या बना दिया गया है. मानों बीजेपी के सत्ता में आने से पहले भारत की धरती ने कभी सूरज देखा ही न हो। अब पहली बार सूर्योदय देख रहा हो। और कांग्रेस भी बी जे पी की गांधी के प्रति सम्मान देखकर इतनी बौखला जाती है कि जैसे गांधी इनका पुरखा हो।
क्या करेंगे गाँधी को याद करके। पूजा। बस। और आप कर भी क्या सकते हैं पढ़ आप नहीं सकते, हैं? समझ आप नहीं सकते, जी आप नहीं सकते। सिर्फ पूजा करना सीखे हैं, कर लीजिये. गाँधी तो एक मूर्ति है जहाँ चाहिए रख लीजिये। घर के किसी कोने मैं किसी चौराहे पर जहाँ चाहे फिट कर लीजिये। लेकिन इतना याद रहे यह मूर्ति गाँधी की नहीं है यह या तो बीजेपी का गाँधी होगा या फिर कांग्रेस। वास्तविक गाँधी नहीं होगा।
वास्तविक गाँधी तो एक विचार है एक दर्शन है। निर्भीकता का, संवाद कुशलता का, प्रयोग शीलता का और शत्रु भी से प्यार करने का। गाँधी भारत की मानवतावादी, उदारवादी, नागरिकता वादी परम्पराओं का उत्तराधिकारी है। गाँधी भारत की धरती पर पैदा हुआ दूसरा बुद्ध है।
तो अंत में , मैं यही कहूंगा कि हे फेसबुक के बुद्धिमान मानव गांधी तो वास्तविक रूप से उसी का है जिसने उनकी विचारधारा का अनुकरण किया है, ।
तो लगे रहो भैया अपनी ढपली , अपना राग अलापने ।
और एक दूसरे को नीचा दिखाने ।
शिवम द्विवेदी
प्रधान संपादक
दैनिक सत्ता तंत्र न्यूज़ पेपर
dwivedishivam180@gmail.com
पूर्व में गाँधी जयंती थी। जाहिर है खूब विचार विमर्श चला। गाँधी प्रासंगिक है या अप्रसांगिक। गाँधी किसका है और किसका नहीं है। गांधी बीजेपी का है या कांग्रेस का। एक दूसरे कि विचारधारा को गलत सावित करने के लिए और अपनी विचारधारा को सही बताने के लिए इतिहास , राजनीति, की बड़ी - बड़ी बातें की तथा अंत में एक दूसरे को या गांधी को कोसने के सिवा और कुछ नहीं शेष मिला । पर आखिर में गांधी है किसका ? तेरा या मेरा ।
आज भारत की राजनीती पर से आजादी के आंदोलन का प्रभाव खत्म हो चुका है. शेष रह गई हैं स्मृतियाँ और उनमे एक गाँधी भी है। एक स्मृति एक मूर्ति। बस यही है गाँधी जिसको लेकर कांग्रेस और बीजेपी में प्रतिस्पर्धा चल रही है कि गांधी तो मेरा है।
आप कहेंगे गाँधी जनता का है। मैं कहूंगा नहीं। कोई भी आदमी जनता का आदमी तभी तक रहता है जब तक कि वो जीवित रहता है, उसके मरने के बाद ही उसके वयक्तित्व और विरासत के बंटवारे को लेकर अनुयायियों और आलोचकों में संघर्ष शुरू हो जाता है और जनता भी अलग अलग खेमों में बंट जाती हैं। इसलिए मुझे नहीं लगता की जनता का तर्क सही तर्क है या कोई महानुभव जनता का आदमी भी होता है या हो सकता है। हाँ जब तक वो जीवित होता है तब तक उसका व्यक्तित्व भी होता है और जनता से संबंध भी रहता है, तब तक वो जनता का आदमी जरूर रहता है है और जनता का एक हिस्सा भी उसके साथ रहता है।
जो हर इतिहास पुरुष के साथ हुआ है वो आज गाँधी के साथ भी होगा। एक तरफ अनुयायी हैं जो महिमा मंडन करने में लगे हैं दूसरी तरफ प्रतिद्वंदी हैं जो ख़ारिज करने में लगे हैं।
आज देश का राजनितिक माहोल ही ऐसा बन गया है या बना दिया गया है. मानों बीजेपी के सत्ता में आने से पहले भारत की धरती ने कभी सूरज देखा ही न हो। अब पहली बार सूर्योदय देख रहा हो। और कांग्रेस भी बी जे पी की गांधी के प्रति सम्मान देखकर इतनी बौखला जाती है कि जैसे गांधी इनका पुरखा हो।
क्या करेंगे गाँधी को याद करके। पूजा। बस। और आप कर भी क्या सकते हैं पढ़ आप नहीं सकते, हैं? समझ आप नहीं सकते, जी आप नहीं सकते। सिर्फ पूजा करना सीखे हैं, कर लीजिये. गाँधी तो एक मूर्ति है जहाँ चाहिए रख लीजिये। घर के किसी कोने मैं किसी चौराहे पर जहाँ चाहे फिट कर लीजिये। लेकिन इतना याद रहे यह मूर्ति गाँधी की नहीं है यह या तो बीजेपी का गाँधी होगा या फिर कांग्रेस। वास्तविक गाँधी नहीं होगा।
वास्तविक गाँधी तो एक विचार है एक दर्शन है। निर्भीकता का, संवाद कुशलता का, प्रयोग शीलता का और शत्रु भी से प्यार करने का। गाँधी भारत की मानवतावादी, उदारवादी, नागरिकता वादी परम्पराओं का उत्तराधिकारी है। गाँधी भारत की धरती पर पैदा हुआ दूसरा बुद्ध है।
तो अंत में , मैं यही कहूंगा कि हे फेसबुक के बुद्धिमान मानव गांधी तो वास्तविक रूप से उसी का है जिसने उनकी विचारधारा का अनुकरण किया है, ।
तो लगे रहो भैया अपनी ढपली , अपना राग अलापने ।
और एक दूसरे को नीचा दिखाने ।
शिवम द्विवेदी
प्रधान संपादक
दैनिक सत्ता तंत्र न्यूज़ पेपर
dwivedishivam180@gmail.com
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