7.11.19

क्या राम मंदिर मुद्दा खत्म होने देंगे राम को भुनाने वाले लोग?

नई दिल्ली। अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर अगले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाला है। मंदिर और मस्जिद दोनों ओर के पैरोकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने की बात कर रहे हैं। देश में कहीं से कोई अनहोनी न होने पाए, इसके लिए पुलिस-प्रशासन को पूरी रह से सक्रिय कर दिया गया है । पर क्या सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानकर दोनों ओर के पैरोकार चुप बैठ जाएंगे ? क्या मंदिर -मस्जिद के नाम पर सियासत करने वाले दल इन धर्म स्थलों की राजनीति करनी छोड़ देंगे ? अब तक के भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों का इतिहास देखा जाए तो लगता नहीं है कि ये लोग सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी मानेंगे। जिस पार्टी कानून हाथ में लेकर सरकारों को चुनौती देते हुए रथयात्रा निकाली है, कानून को ढेंगा दिखाकर अयोध्या में बाबरी मस्जिद ध्वस्त की है।

मामला कोर्ट में विचाराधीन होने के बावजूद आंदोलन के बल पर राम मंदिर निर्माण का राग अलाापा है। ऐसे में इस पार्टी और इसके सहयोगी संगठनों ने कानून मानने की उम्मीद कैसे की जा सकती है ? क्योंकि फैसले में मुख्य रूप से मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगई हैं तो फैसले की एकतरफा आने की उम्मीद तो कतई नहीं की जा सकती है। जब केंद्र के साथ उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है तो मंदिर पैरोकार तो विवाद की सारी जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए ही चाएंगे ? वैसे राम मंदिर निर्माण से जुड़े कई संगठन कह भी चुके हैं कि कोर्ट के फैसला मानने के लिए उन्होंने आंदोलन थोड़े ही किया था। यदि ये लोग कोर्ट का ही फैसला मानते तो कोर्ट का फैसला तो कई बार आ चुका है और सुप्रीम कोर्ट के भी हाईकोर्ट के फैसले को आगे बढ़ाते हुए उसी तरह का फैसला देने की उम्मीद की जा रही है। वैसे भी कोर्ट में तो मामला तब भी विचाराधीन था, जब राम मंदिर निर्माण के लिए 1990 में भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा निकाली थी। 1992 में कल्याण सिंह (भाजपा) की सरका में विवादित ढांचे को ध्वस्त किया गया था।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसला आने तक समर्थकों से संयम बरतने की अपील की है पर वह भी जानते हैं कि भाजपा के हाथ से राम मंदिर निर्माण का मुद्दा फिसलते ही शिवसेना मुद्दे को कब्जाने के लिए तैयार बैठी है। वैसे भी शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अयोध्या में आकर मामले में अपना रुख स्पष्ट कर चुके हैं। महाराष्ट्र सरकार बनाने में भी शिवसेना ने भाजपा को अपनी ताकत का एहसास करा दिया है। भाजपा और उसके सहयोगी संगठन भलीभांति जानते हैं कि राम मंदिर मुद्दा उनसे फिसलते ही दूसरे संगठन इसे भुना सकते हैं। ऐसे में राम मंदिर का मुद्दा भाजपा के खत्म होने देनेा मुश्किल लग रहा है। भाजपा के कर्णधार भलीभांति जानते हैं कि यह राम मंदिर निर्माण मुद्दा है जिसके बल पर  वह प्रचंड बहुमत के साथ देश पर राज कर रही है।

राम मंदिर निर्माण आंदोलन से पहले भाजपा की स्थिति क्या थी और आज क्या है ? हर बार चुनाव में भाजपा के लिए राम मंदिर निर्माण का मुद्दा अहम होता है। वैसे भी अब भाजपा और उसके सहयोगी दलों के अयोध्या के साथ ही मथुरा के मुद्दे को भी सुलगाने की बातें सामने आ रही हैं।

याद कीजिये लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा, विवादित ढंाचे को ध्वस्त करना। जितना उग्र आंदोलन उतना ही बड़ा भाजपा का जनादेश। यह वही भाजपा है जिसके 'राम लला हम आएंगे, 'मंदिर वहीं बनाएंगे, 'बच्चा-बच्चा राम का जन्मभूमि के काम का, 'जिस हिन्दू का खोला न खून, खून न वह पानी है,  नारे प्रमुख रूप से सड़कों पर गूंजे थे। यदि ये लोग कोर्ट पर विश्वास करने वाले होते तो कानून हाथ में क्यों लेेते ? क्यों विवादित ढांचा ढहाया जाता ? क्यों गोदरा कांड होता ?

वैसे भी अब देश पर ऐसे दो नेताओं की जोड़ी राज कर रही है जिन्होंने कभी कानून को गंभीरता से लिया ही नहीं। प्रधानमंत्री आज भले ही कानून की बात कर रहे हैं पर अपने गुजरात में लोकपाल का विरोध करने वाले वह पहले मुख्यमंत्री थे।  जो संगठन सत्ता के लिए युवाओं की जिंदगी से खेलते रहे हैं। कानून का हाथ में लेकर घूमते रहे हैं। उनसे भला सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानने की उम्मीद कैसे की जा सकती है ? वह ऐसे में जब केंद्र में उनकी प्रचंड बहुमत के साथ सरकार चल रही हो। उत्तर प्रदेश में उनकी सरकार है।

याद कीजिए कल्याण सिंह के राज में 6 दिसम्बर 1992 का दिन, जब बाबरी मस्जिद को विध्वंस किया गया। हजारों युवाओं का भविष्य उस आंदोलन की भेंट चढ़ गया था। कल्याण सिंह की सरकार गिरने पर जब उत्तर प्रदेश में अगली सरकार सपा और बसपा गठबंधन की बनी तो काफी युवाओं पर गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज हुए थे। आंदोलन में बर्बाद हुए युवाओं की ओर भाजपा ने मुड़कर कभी नहीं देखा। इनके हर आंदोलन मे देखा गया है कि भाजपा और आरएसएस न कानून को मानते हैं। इन्हें न देश से लेना है, न ही समाज से और न ही हिन्दुत्व से। बस किसी तरह से किसी भावनात्मक मुद्दे को सुलगाकर सत्ता हासिल करना है।

सत्ता के लिए इस हद तक जाने वाले लोग भला राम मंदिर निर्माण का मुद्दा इतनी जल्द कैसे खत्म होने देंगे। भाजपा का इतिहास देख लीजिए हर बार ऐसे ही मुद्दे को सुलगाकर सत्ता को कब्जाई है। यह भी जागजाहिर है कि जब-जब देश में भाजपा की सत्ता आई तब-तब देश अराजकता की ओर बढ़ा है। ऐसे में इन लोगों से कानून की बात करना बेमानी लगती है। हां केंद्र सरकार के दबाव में विवादित ढांचे की सुनवाई करने वाली बेंच इन संगठनों के पक्ष में एकतरफा फैसला दे दे तो बात दूसरी है । इसकी उम्मीद न के बराबर है।

चरण सिंह राजपूत
charansraj12@gmail.com

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