25.1.20

ओछी मानसिकता रखने वाले पत्रकारों की कलम से पत्रकार और पत्रकारिता का गिरता स्तर

Pradeep Gadhwal
 

लोकतंत्र में संविधान के चौथे स्तंभ के रूप में पत्रकार  को जाना जाता है । एक पत्रकार की अहमियत क्या होती है ? उन पीड़ितों से पूछो जिन की परेशानी प्रशासनिक स्तर तक बगैर  जात-पात, धर्म पूछे एक पत्रकार ने पहुंचाई है । लेकिन बदलते समय के अनुसार आम जनता और प्रशासन के बीच सेतु की यह कड़ी धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है इसकी प्रमुख वजह निकल कर आई है वह है अब ऐसे पत्रकार बनने लगे हैं , जिनके पास किसी प्रकार का कोई अनुभव हैं ही नहीं है । न हीं कोई डिग्री डिप्लोमा है । ऐसे व्यक्ति प्रायः पत्रकारिता में इसलिए आते हैं कि समाज में उनकी पत्रकार की इमेज बने जिसके जरिए वह रोब डालने वाला बन सके। 

"हां मैं पत्रकार हूं ! मैं ऐसा कर सकता हूं ! मैं आपका यह  अहित कर सकता हूं वह  हित  कर सकता हूं। आज के ऐसे नौसिखए पत्रकार ऐसे शब्दों के साथ अपनी पत्रकारिता कर रहे हैं । लेकिन ऐसे ऐसी सोच रखने वाले पत्रकार अपने आप को ज्यादा लंबे समय तक सामाजिक सरोकार निभाने वाले इस क्षेत्र में नहीं रख पाएंगे क्योंकि आज की जनता जागरूक हो गई है उसके पास भी सोशल मीडिया की पावर है वह है आपको अच्छी तरह है सबक सिखाने वाली हो गई है ।  ऐसे पत्रकारों की  भी अब कोई खैर नहीं है , इसीलिए  हम आए दिन देखते हैं की पत्रकार कि यहां पिटाई हुई वहां कुटाई हुई । आखिरकार ऐसे पत्रकारों के दिन जल्दी ही लद जाएंगे और कईयों के तो लद चुके हैं।

इन नौसखिए पत्रकार की वजह से ऐसे पत्रकार जो वास्तविकता में ही पत्रकारिता कर रहे हैं उन पर भी लोगों की हेय दृष्टि बनी हुई है । क्योंकि सच्ची पत्रकारिता करने वाले हमारे पत्रकारिता जगत में बहुत कम पत्रकार बचे है । कई ऐसे पत्रकार बन चुके हैं जिनको पत्रकारिता का  कुछ भी  अनुभव नहीं है  लेकिन वे थोड़े से सिक्योरिटी डिपॉजिट  के नाम पर  कुछ रुपए देखकर आज वो बड़े जिला प्रभारी बन चुके हैं इसका प्रमुख बड़ा कारण है ऐसे संस्थान है जो विज्ञापन एजेंसी देते हैं और जिला प्रभारी बना देते हैं ,और हर जगह प्रचार करते हैं वे जिला प्रभारी हैं।

मीडिया संस्थानो द्वारा  बंधुआ मजदूरी -

आम जनता के लिए लिखने वाला कलम का सिपाही  आजकल अपने लिए लिखने लग गया है,  इसकी प्रमुख वजह है - आजकल के कुछ मीडिया संस्थान हर पत्रकार से एक टारगेट के तहत  काम करवाते है । ऐसे में पत्रकार  के पास कोई विकल्प नहीं बचता है , अपना रुतबा और नौकरी बचाने के लिए वह  खबरें छुपाकर या दिखाकर  अपने संस्थान के लिए विज्ञापन निकलवाने का काम करता है।

कुछ पत्रकारों ने तो अपने यहां तेल लगाने की ही दुकान खोली है बस अपनी दुकान पर लिखना बाकी रह गया कि यहां विज्ञापन देने वालों की तेल मालिश की जाती है  ।  तेल मालिश लगाने वाला पत्रकार और उसकी इमेज क्या है उसे भी पता है और सामने वाले को भी पता है। हां हम मानते हैं कि विज्ञापन देने वाले को खबरों में अहमियत दो लेकिन   ! यह मत भूलो कि जिसके लिए आपकी खबरें छपती हैं उनको यह नहीं लगना चाहिए कि आपको सुबह दो से चार रुपए लेकर या टीवी स्क्रीन के जरिए मूर्ख बनाया जा रहा है।

आखिरकार कब तक रुकेगा?
इस प्रश्न का समाधान तो  समय बताएगा । लेकिन कई पत्रकारिता के विद्वानों से जब पूछा गया तो उन्होंने कुछ पंक्तियों के माध्यम से कहा कि  " अपनी हस्ती को इतना बुलंद कर  कि खुदा भी  बंदे से पूछे बता तेरी रजा क्या है " उस दिन आपको विज्ञापन भी मिलेंगे और आपकी कलम भी चमकदार होगी साथ ही समाज व प्रशासनिक स्तर तक आपका रुतबा भी बुलंद होगा ।

Pradeep Gadhwal
pradeepg4u22@gmail.com

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