12.2.20

कांग्रेस-भाजपा साफ, आप फिर दिल्ली टाप

                                        
वास्तव में एक बार फिर से सिद्ध हो गया कि सियासत में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। कि परिणाम क्या होगा क्योंकि सियासत में कुछ भी स्थाई नहीं होता। दिल्ली के चुनाव में एक बार यह बात सत्य साबित हो गई। जिस प्रकार से भाजपा ने दिल्ली के चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी उससे ऐसा प्रतीत होने लगा था कि दिल्ली का चुनाव किसी भी करवट बैठ सकता है। जिस प्रकार से भाजपा ने अपने ढ़ेरों मुख्यमंत्रियों का कुनबा दिल्ली के चुनाव में उतार रखा था इस कारण दिल्ली के चुनाव का अनुमान नहीं लग पा रहा था। क्योंकि, जिस प्रकार से प्रचार-प्रसार शुरुआत हुई थी उससे ऐसा प्रतीत होता था कि भाजपा एक मजबूत स्थिति में पहुँच रही है। क्योंकि चुनावी सभाओं में जिस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया जाता था उससे एक अलग रूप रेखा तैयार होती हुई दिखाई दे रही थी। परन्तु दिल्ली की जनता ने अपना ध्यान केन्द्रित रखा और अपने अनुसार मतदान किया।


तमाम तरह की चुनावी सभाओं का दिल्ली वासियों पर कोई असर नहीं पड़ा। इसका मुख्य कारण यह था कि दिल्ली के निवासी एक मजबूत एवं विश्वासी मुख्यमंत्री की खोज कर रहे थे। जोकि केजरीवाल के इतर दिल्ली वासियों को पूरे चुनाव में नहीं दिखा। मुख्यमंत्री का चेहरा भाजपा को न घोषित करना चुनाव में भारी पड़ गया। दिल्ली की जनता केजरीवाल का कार्यकाल देख चुकी थी। और अरविंद केजरीवाल अपने कार्यकाल का गुणगान भी खूब खुलकर कर रहे थे। प्रत्येक चुनावी सभा में केजरीवाल अपने कार्य के नाम पर वोट माँग रहे थे। जिसको जनता सुन और समझ रही थी।

दिल्ली की सत्ता से दो दशकों से अधिक समय से चले आ रहे वनवास को खत्म करने की भाजपा की सारी कोशिशें धरी की धरी रह गईं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मुफ्त बिजली-पानी की काट के लिए भाजपा ने दो रुपये किलो आटे, छात्राओं को मुफ्त स्कूटी, साइकिल जैसे वायदे किए। चुनाव प्रचार में भाजपा ने केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों की पूरी फौज को उतार दिया था। चुनाव प्रचार की बागडोर पार्टी के 'चाणक्य' कहे जाने वाले अमित शाह ने खुद संभाली। कांग्रेस पिछली बार की तरह ही इस बार भी साफ हो गई और केजरीवाल की अगुआई में आम आदमी पार्टी ने फिर से प्रचंड जीत हासिल की। चुनाव में करारी हार का मुख्य कारण दिल्ली में केजरीवाल के टक्कर का कोई दूसरा नेता न होना। यह कारण बहुत बड़ा है जिस पर किसी भी नेता की नज़रें नहीं पहुँच पाई थीं। यह कारण निश्चित तौर पर भाजपा की हार के प्रमुख कारणों में से एक है। केजरीवाल ने पूरे प्रचार अभियान को अपने चेहरे और अपनी सरकार के कामकाज के इर्द-गिर्द रखा।

केजरीवाल को भी पता था कि उनके विरोधियों के पास उनके टक्कर का कोई चेहरा नहीं है इसीलिए वह सीधे-सीधे अमित शाह को अपना मुख्यमंत्री कैंडिडेट घोषित करने के लिए बहस को चुनौती देते रहे। वह तकरीबन अपनी हर सभाओं में जोर देकर कहते रहे कि लोकतंत्र में मुख्यमंत्री जनता तय करती है, अमित शाह नहीं। भाजपा अपना मुख्यमंत्री कैंडिडेट बताए। केजरीवाल के द्वारा बार-बार ऐसा कहने पर इसका सीधे-सीधे उन्हें फायदा मिला। साथ ही भाजपा की कोशिश चुनाव को मोदी बनाम केजरीवाल की करने की रही लेकिन आप नेता पूरे चुनाव में बहुत ही सधे हुए रहे।

वह कभी भी सीधे-सीधे प्रधानमंत्री मोदी पर हमलावर नहीं रहे। केजरीवाल पूरे चुनाव प्रचार के दौरान बदले-बदले से नजर आए। पिछले साल लोकसभा चुनाव में दिल्ली में 56 प्रतिशत वोट पाने वाली भाजपा विधानसभा चुनाव में 38-39 प्रतिशत पर सिमट गई जो साफ बताता है कि मोदी के लिए वोट देने वाले बहुत से लोगों ने असेंबली चुनाव में केजरीवाल को वोट दिया। भाजपा ने चुनाव प्रचार में मनोज तिवारी को ज्यादा तरजीह दी कि पूर्वांचली वोटरों पर उनका प्रभाव होगा लेकिन नतीजों से साफ है कि तिवारी पूरबिया वोटरों को लुभाने में बुरी तरह नाकाम रहे। भाजपा की हार की एक बड़ी वजह कांग्रेस का मैदान से गायब होना भी रहा। केजरीवाल के राजनीतिक उदय से पहले दिल्ली की सत्ता पर लगातार 15 सालों तक काबिज रही कांग्रेस इस बार खाता नहीं खोल पाई और उसका वोट शेयर भी घटकर आधा रह गया। 8-9 महीने पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस दिल्ली में अपने खिसकते जनाधार को कुछ हद तक वापस पाने में कामयाब रही थी। कांग्रेस आप को पछाड़कर दूसरे नंबर पर पहुंची थी। लेकिन विधानसभा चुनाव में तस्वीर बदल गई।

2015 विधानसभा चुनाव में 9.7 प्रतिशत वोट पाने वाली कांग्रेस इस बार 5 प्रतिशत से भी कम वोट शेयर पर सिमट गई। कांग्रेस के कमजोर होने से दिल्ली का चुनाव त्रिकोणीय के बजाय सीधे-सीधे आप बनाम भाजपा की लड़ाई हो गई। पिछले चुनाव के मुकाबले भाजपा अपने वोटशेयर को 6 प्रतिशत बढ़ाने में कामयाब तो रही लेकिन यह ना काफी था। पिछली बार की तरह ही आम आदमी पार्टी अकेले आधे से ज्यादा वोटों पर कब्जा कर मुकाबले को अपने पक्ष में एकतरफा बनाने में कामयाब रही। पिछली बार 54 प्रतिशत वोट शेयर हासिल करने वाली आप इस बार भी उसे बरकरार रखने में कामयाब रही। भाजपा ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ वही गलती की जो मोदी के खिलाफ उनके विरोधी समय-समय पर कर चुके हैं। यह गलती है- निजी हमले। केजरीवाल राजनीति के किसी मंझे हुए खिलाड़ी की तरह अपने खिलाफ निजी हमलों को ही हथियार बनाने में कामयाब हुए।

चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा नेताओं ने अरविंद केजरीवाल पर निजी हमले किए। उन्हें आतंकवादी, नक्सली, अराजकतावादी तक कहा। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने केजरीवाल के हनुमान मंदिर जाने का भी एक तरह से मजाक बनाया। दूसरी तरफ, केजरीवाल ने अपने खिलाफ हुए इन निजी हमलों को ही हथियार बना लिया। वह चुनावी सभाओं में लोगों से पूछते रहे कि क्या 'दिल्ली का बेटा' आतंकवादी, देशद्रोही है। हनुमान मंदिर जाने पर मनोज तिवारी के तंज को भी उन्होंने भुनाया। दिल्ली चुनाव में भी भाजपा ने झारखंड की गलती दोहराई यानी स्थानीय के बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर फोकस रखा।

प्रधानमंत्री मोदी भी अपनी सभाओं में नागरिकता संशोधन कानून, पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक से लेकर अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाते रहे। भाजपा ने स्थानीय मुद्दों को उठाया जरूर लेकिन उसके पूरे कैंपेन में सीएए और दूसरे राष्ट्रीय मुद्दे और राष्ट्रवाद ही हावी रहे। भाजपा को अपने नेताओं की बदजुबानी भी भारी पड़ी। नतीजे साफ बता रहे हैं कि लोगों को कुछ भाजपा नेताओं के 'जहरीले बोल' रास नहीं आए। शाहीन बाग को लेकर प्रवेश वर्मा, अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा जैसे नेताओं ने आपत्तिजनक बयान दिए।

चुनाव आयोग को तीनों के चुनाव प्रचार पर बैन भी लगाना पड़ा। आप से भाजपा में आए कपिल मिश्रा ने तो दिल्ली चुनाव को भारत बनाम पाकिस्तान की लड़ाई करार दिया। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर 'गोली मारो गद्दारों को' नारे लगवाते दिखे। सीएए विरोधी प्रदर्शनों का केंद्र बनकर उभरे शाहीन बाग को 'तौहीन बाग' कहा गया। खुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लगातार सभाओं में यह कहते रहे कि ईवीएम का बटन इतना तेज दबाना कि करंट शाहीन बाग तक पहुंचे। योगी आदित्यनाथ ने शाहीन बाग को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की। लिहाजा भाजपा का यह दांव उल्टा पड़ गया। लोकसभा चुनाव में जो मुस्लिम मतदाता आप से छिटककर कांग्रेस की तरफ गए थे, वह भाजपा के खिलाफ आप के पक्ष में पूरी तरह लामबंद हो गए।

केजरीवाल के कार्यों से जनता संतुष्ट नजर आई शिक्षा और स्वास्थ तथा बिजली एवं महिलाओं के फ्री बस यात्रा के मुद्दे ने केजरीवाल को मजबूती प्रदान की जिससे कि सभी गरीब वर्ग केजरीवाल के साथ जुड़ गया। चुनाव का मुख्य बिंदु यह रहा कि शाहीन बाग के मुद्दे को भाजपा ने खूब खींचा इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को हुआ। कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पायी। क्योंकि कांग्रेस का वोट बैंक भाजपा के प्रचार से भाग गया और कांग्रेस पूरी तरह से चुनाव से बाहर हो गई। लेकिन यही वोट बैंक कांग्रेस से हटकर आप के साथ जुड़ गया बस यही समीकरण भाजपा को बहुत ही भारी पड़ गया। जिससे कि भाजपा की रणनीति भाजपा पर ही भारी पड़ गई और चुनाव केजरीवाल के पक्ष में पूरी तरह से पहुँच गया। भाजपा का आक्रमक रवैया भाजपा के लिए ही भारी पड़ गया। यदि भाजपा इस प्रकार से आक्रमक न होती तो परिणाम संभवतः कुछ और हो सकते थे।

वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीति विश्लेषक सज्जाद हैदर की रिपोर्ट.

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