21.3.20

क्रांति का चोता (कहानी)



आलोक नंदन शर्मा

घर के सामने बजबजाती हुई छोटी सी नाली पर दोनों तरफ पैर करके दंगला अभी टट्टी करने बैठा ही था कि सामने से गुजरने वाला ग्वाला दुगरन जो अपनी गलमुछों की वजह बडा ही भयानक लगता था   ने उसे जोर से हुल्की दी, “आज तुने अपने पिछवाड़े से लेढ़की निकाली तो मैं उसे फिर से तुम्हारे ही अंदर ठूंस दूंगा।”

दुगरन की दहकती आवाज से दंगला की आधी  निकली हुई लेढ़की फिर से अंदर की ओर सुटक गई और वह चिल्लाते हुये अपने घर के बरामदे की  तरफ भागा जो नाली के ठीक सामने था। उसकी आवाज सुनकर दंगला का पिता तुफानी मंडल बाहर निकला। उसके पतले दुबले जिस्म पर खादी का उजले रंग का लंबा सा कुर्ता ऐसा लग रहा था जैसे उसे किसी बांस में फंसा दिया गया हो। तुफानी मंडल दोनों गाल अंदर सटके हुये थे जिसकी वजह से उसका चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने नींबू को काटकर उसे पूरी तरह से निचोड़ दिया हो। कम उम्र से ही लगातार पान चबाते रहने की वजह से उसकी दातों पर कथई काई की एक मोटी परत जम हुई थी। जब वह बोलता था तो उसके मुंह से थूक की बौछार निकलती थी।

“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस छोटे से बच्चे को धमकाने की, वह भी उस वक्त जब वह अपने पेट की गंदगी साफ करने बैठा था ? यह बच्चों के शौच करने के जन्मजात अधिकार का हनन है, यह मानवता के खिलाफ उठाया जाने वाला कदम है, यह बच्चों को उनके कुदरती हक से महरुम किया जाने वाला कदम है, और मैं इस तरह की हरकत को कतई बर्दाश्त नहीं करूंगा”, दुगरन की तरफ लपकते हुये तुफानी मंडल शुरु हो गया। अपने बाप को गरजता देख दंगला में भी थोड़ी हिम्मत आ गयी और वह फिर से धीरे-धीरे नाली की तरफ बढ़ने लगा।

“खबरदार जो तू नाले पर बैठा”, उसे नाले की तरफ सरकता देख दुगरन फिर जोर से गरजा। उसके गलमुझे फड़फड़ा रहे थे और आंखे लाल हो गयी थी। दूसरी ओर तुफानी मंडल का मरियल जिस्म भी गुस्से से थरथरा रहा था।

“इस खुली नाली की बदबू से पहले से ही मेरा खटाल महक रहा है। ऊपर से तुम्हारी दो बीवियों के आठ-नौ लौंडे दिन रात इसमें मेवा डालते रहते हैं। यदि बच्चों को ठीक से नहीं रख सकते तो पैदा क्यों करते हो?”, दुगरन तुफानी मंडल के पीछे पील पड़ गया। उसका खटाल ठीक तुफानी मंडल के घर के सामने था। तुफानी मंडल के बच्चे घर के अंदर टट्टी जाने की बजाये घर के सामने की खुली नाली पर बैठ जाते थे। दुगरन कई बार चेतावनी दे चुका था, लेकिन उनकी कानों पर जूं तक नहीं रेंग रहा था। दुगरन की हालत यह हो गयी थी कि रात में लिट्टी चोखा बनाता तो उसमें से भी उसे टट्टी की ही दुर्गंध आती थी। न चाहते हुये भी खाते वक्त उसकी आंखों के सामने नाली के बजबजाते हुये कीड़े घूमते रहते थे।

उन दोनों की झड़प को सुनकर अगल-बगल के लोग भी एकत्र होने लगे थे। दुगरन की आवाज में सभी को अपने मन की आवाज सुनाई दे रही थी। इलाके में इस बदबूदार नाली को लेकर हर कोई चिंतित था। एक दो लोगों ने तुफानी मंडल से इस बात की  शिकायत भी करने की कोशिश की थी कि उसके अनगिनत छोटे-बड़े बच्चों की नाली में रोजना अपनी टंकियां खाली करने की वजह से नाली सडांध का गटर बना चुका है। लेकिन कुछ भी सुनने की बजाये तुफानी मंडल उल्टे उनके ऊपर हुक्का पानी लेकर चढ़ जाता था। और इसे मामले पर लाल होकर जोर जोर से लेनिन और तुंग की बातें करते हुये बोल्शेविक क्रांति बरपा करने पर आमादा  हो जाता था। लोग उसकी कैंची की तरह धारदार जुबान से खौफ खाते थे, और अपनी इस ताकत से भी वह अच्छी तरह से वाकिफ था। 

सचिवालय कर्मचारी संगठन में सक्रिय रहने की वजह की भाषण देते हुये कई बार स्थानीय अखबारों में फोटो सहित नाम छपने की वजह से पूरे इलाके में एक वामपंथी नेता की तौर पर उसकी पहचान बन चुकी थी। वह समस्याओं की तलाश में रहता था और कोई समस्या नहीं मिलने उसे पैदा करने से भी बाज नहीं आता था। नेतागिरी को चलाने के लिए समस्या का होना जरूरी था। 

इलाके के लोग उससे और उसके पूरे परिवार से पनाह मांगते थे। औरतें तो उससे खासतौर से परेशान थी। घर में दो सहोदर बहनों को एक साथ बीवी बनाकर रखने और उन्हें बच्चा पैदा करने की फैक्ट्रियों में तब्दील करने के साथ-साथ इलाके की सभी औरतों पर उसकी बुरी नजर होती थी। उसकी पीलीं आंखें सड़कों पर उनके जिस्म का एक्सरे तो करती ही थी, मौका मिलती ही नजरों से भद्दी इशारे करने से भी वह नहीं चूकता था।

कोकिला के पीछे तो वह हाथ धो करके पड़ा हुआ था।

तुफानी मंडल और दुगरन की ऊंची आवाज सुनकर कोकिला भी अपने घर के बरामदे में आ गयी। उसका घर एक छोटे से मैदान के दूसरी तरफ था, जहां से तुफानी मंडल का घर साफ-साफ दिखता था। वह कोकिला को जब भी अकेले बरामदे में देखता था तो वह कुछ न कुछ इशारे जरूर करता था और उसे देखकर कोकिला का तलवे का लहर उसके सिर पर चढ़ जाता था। लेकिन वह कसमसा कर रह जाती थी। उसके नैन नक्श काफी तीखे थे और पूरे इलाके के छोकरों की भौजाई थी। छोकरों के साथ तो वह खुब लपर-चपर करती थी, और छोकरे भी उसके साथ लपर-चपर करके खुश रहते थे। तुफानी मंडल छोकरों के इस एडवांडेट से भी चार कदम आगे निकल कर एक ही बार में कोकिला के सभी सुरों को पी जाना चाहते था और कोकिला के सामने पड़ने पर यही भाव उनकी कचीली और पीली आंखों से टपकती थी, जिसे वह खूब समझती थी। यही समझ उसके तन बदन में आग लगा देता था। जी चाहता था कि तुफानी मंडल की पत्ते की तरह सूखे हुये चेहरे को नोच खसोट ले, या फिर मुंह में लुकारी लगा दे। अपनी इस तीव्र इच्छा का दमन करते हुये उसे सबकुछ जब्त कर जाना पड़ता था। एक दो बार अपने भाई भूरा सिंह से इस बारे में दबी जुबान से कहा भी था। तुफानी मंडल की ताकत को समझते हुये भूरा सिंह भी मौके की तलाश में था। इस बात को लेकर तुफानी मंडल पर सीधा हमला करने पर उसकी बहन कोकिला का ही नाम खराब होता।

भाई भूरा सिंह के साथ-साथ कोकिला का देवर गेनरिया भी सब्र जवाब दे रहा था। द्रोपदी की तरह कोकिला भी उसे अक्सर ताना देकर तुफानी मंडल को सबक सीखाने के लिए उकसाती रहती थी।

बरामदे में खड़ी कोकिला पर नजर पड़ते ही तुफानी मंडल की उर्जा प्रवाहित करने वाली कुंडलियां कुछ और जागृत हो गयीं । दोनों हाथों को हवा में तरह तरह से लहराते हुये गला फाड़-फाड़कर चिकरने लगा, “यदि लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविकों ने हथियार नहीं उठाया होता तो रुस के लोगों को अपने मन से हगने की आजादी भी नहीं मिलती। पूंजीपत्तियों और उनके दलालों को एक ही जवाब है, लाल सलाम! ताज और तख्त का युग कब का खत्म हो चुका है। बुर्जुआ को भी हम खत्म कर देंगे, क्रांति की लौ अपने मुकाम पर जाकर ही अब समाप्त होगी। हम उन जालिमों को नेस्तनाबूद कर देंगे जो न खाने देते हैं, न पीने देते हैं, न जीने देते हैं और न ही छोटे-छोटे बच्चों को हगने देते हैं। आजादी जिंदाबाद! लाल सलाम जिंदाबाद!! हमें कैपिटलिस्टों और उनके दलालों से आजादी चाहिए। आजादी !! !! आजादी !! !! आजादी !! !! ”

तुफानी मंडल को दुगरन पर जोर-जोर से चिल्लाते देखकर उनके इर्द-गिर्द लोगों की भीड़ तंग होती जा रही थी। इस लड़ाई को छुड़ाने में किसी की भी दिलचस्पी नहीं थी। सब दिल से यही चाह रहे थे कि यह लड़ाई अपने अंजाम तक पहुंच जाये और तुफानी मंडल और उसके अलबेले खानदान का कोई पुख्ता इंतजाम हो जाये, जो पूरे इलाके में जहां-तहां अपना पेट और दूसरों के सामान पर हाथ साफ करने के लिए मशहूर था। ये लोग फेरी वालों को भी नहीं बख्शते थे। दुगरन उसकी ओज भरी आवाज से  थोड़ा देर के लिए उलझन में पड़ गया। अपने पिता की खनकती हुई क्रांतिकारी आवाज सुनकर और दुगरन को उलझन में देखकर दंगला की आंखे भी चमक उठी। बहुत देर से वह चपक धिन चापे हुये था, जिससे उसके पेट में मरोड़ हो रहा था। जल्दी से खुद को फारिग करने की गरज से दोबारा जैसे ही वह नाली पर बैठा दुगरन की उलझन जाती रही।  पिछुआ खोंसकर ताल ठोकते और नाचते हुये वह जोर से गरजा’, औघड़-धूत अंधा कुआं, मुआ मांगे पुआ पर पुआ ! चाहे कुछ भी हो जाये आज तुम्हारे भाषण से मैं डरने वाला नहीं हूं। खाएगा घर के अंदर और हगेगा बाहर।  ’

उसके गलमुछां को जोर-जोर से कंपकपाते देखकर दंगला की हिम्मत फिर टूट गयी। वह नाले से उठकर तेजी से अपने घर की तरफ भागा और बरामदे में खड़ा होकर डरी-डरी सी आंखों से कभी दुगरन की तरफ देखता तो कभी अपने पिता तुफानी मंडल की तरफ देखने लगा।

तुफानी मंडल को ललकारते हुये दुगरन को देखकर अपने गैलरी में खड़ी कोकिला को इतना तो अहसास हो गया था कि दोनों के बीच मारपीट की नौबत आने वाली है। आगे क्या होता है वाले अंदाज में खड़ी होकर अब वह भी अपनी गैलरी में जम गयी । इस बीच भूरा सिंह के साथ-साथ कोकिला का देवर गेनरिया दुगरन और तुफानी मंडल के ईर्दगिर्द जमा होती भीड़ के सबसे आगे आकर खड़ा हो गये थे। दोनों की नजरें वैसे ही चमक रही थी जैसे गिद्ध की आखें शिकार को देखकर चमकने लगती है। भूरा और गनेरिया ने एक दूसरे को देखा और आंखों ही आंखों में यह सहमति हो गयी कि इस मौका फायदा उठाते हुये तुफानी मंडल पर आज अच्छी तरह से साफ कर लिया जाये।

अपने भाषण का दुगरन पर कोई असर नहीं होता देखकर अभी तुफानी मंडल अपने अगले कदम के बारे में सोच ही रहा था कि गनेरिया ने आगे बढ़कर उसके पेट में एक जोरदार घूंसा मारा। तुफानी मंडल पेट पकड़कर ठीक से डगमगा भी नहीं पाया था कि भूरा सिंह का दूसरा घूंसा उसके सूखे हुये चेहरे पर पड़ा। फिर दोनों एक साथ उस पर शिकारी कुत्ते की तरह टूट पड़े और तब तक लात और घूंसे बरसाते रहे जबतक की सुंदर मंडल के घर के अंदर से एक साथ उसकी दोनों पत्नियां और सात-आठ बच्चे निकल रोने- पीटने के साथ-साथ चीखने चिल्लाने नहीं लगे। अचानक से तुफानी मंडल की इस तरह से पीटाई देखकर दुगरन भी थोड़ी देर के लिए हक्का बक्का हो गया फिर लपक कर तुफानी मंडल को दोनों चीलों से बचाने की कोशिश करने लगा। तुफानी मंडल की बेमरव्वुत पीटाई वहां खड़े तमाम लोगों में गुदगुदी पैदा कर रही थी और कोकिला का दिल तो खुशी से कुछ ज्यादा ही उछल रहा था। जिस वक्त दुगरन भूरा सिंह को पकड़ कर एक ओर खींच रहा था गनेरिया तुफानी मंडल को कॉलर से थामते हुये बरामदे में खड़ी अपनी कोकिला भौजी को दिखाते हुये उसकी कानों में धीरे से बोला, “दोबारा ओने आंख उठइल त दूनू आंख निकाल लेहम।”

तुफानी मंडल की जोरदार पिटाई करने के बाद भूरा सिंह और गनेरिया भीड़ को चीरते हुये एक ओर निकल गये। दुगरन जो कुछ देर पहले तुफानी मंडल से उलझ रहा था अब उसके पत्ते की तरह कांपते हुये शरीर को संभालने की कोशिश कर रहा था। तुफानी मंडल अर्द्धबेहोशी की हालत में बुदबुदा रहा था, “साथियों जुल्म के आगे घुटने टेकने के बजाय पूरे दम खम के साथ उससे लड़ने की जरूरत है। दुनिया में क्रांति ऐसे ही नहीं आएगी, एक साथ मिलकर हमें प्रतिकार करना होगा। जालिमों का अत्याचार हमारी आवाज को नहीं दबा सकता।” उसे संभालते हुये दुगरन की नजर दंगला पर पड़ी जो फारिग होने की शिद्दत से लबरेज होकर नाली पर बैठ चुका था। देखते-देखते उसने पेट से एक बड़ा सा  चोता बाहर निकाल दिया और सुकून के साथ अपनी आंखें बंद कर ली। उसकी बदबू चारों ओर फैल गयी और लोग अपनी –अपनी नाकों को बंद करके वहां हटने लगे। उनकी कानों में तुफानी मंडल की टूटती हुई आवाज आ रही थी, “क्रांति जिंदाबाद, क्रांति अमर रहे।” उलझन भरी नजर से दुगरन कभी सुंदर मंडल को देखता तो कभी आंख बंद कर नाली पर बैठे हुये दंगला को। अपने बरामदे में खड़ी कोकिला मद्धिम स्वर में कुछ गुनगुना रही थी।

                                        समाप्त

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