कृष्ण मोहन झा
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह आगामी 28 फरवरी को अपने यशस्वी जीवन के 73 वे वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। इस अवसर पर उनके सुदीर्घ राजनीतिक जीवन की उल्लेखनीय उपलब्धियों की चर्चा होना स्वाभाविक है। मेरी नजर में दिग्विजय सिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि आप उनके विचारों से सहमत या असहमत हो सकते हैं, परंतु उन्हें इग्नोर नहीं कर सकते है। उनके बयान हमेशा ही उन्हें सुर्खियों में रखते है और कई बार विवादों को भी जन्म देते हैं। उनके बयानों में कुछ न कुछ ऐसा जरूर होता है, जो पढ़ने और सुनने वालों को सोचने पर विवश कर देता है। इसलिए दिग्विजय सिंह किसी भी मुद्दे पर अपने विचारों को खुलकर व्यक्त करने से कभी परहेज नही करते हैं। उनकी एक खासियत और है कि वे अपने किसी भी बयान से कभी किनारा भी नहीं करते है। एक बार जो कुछ कह देते हैं, उस पर हमेेशा अडिग रहते है। वे अपने बयानों पर कभी सफाई भी नहीं देते।
दिग्विजय सिंह और विवादों का मानो चोली दामन का साथ हो गया है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस के नेता और राजनीति के कुशल चाणक्य को विवादों में रहना ही आता है। एक बात और कि वे अपने किसी बयान पर विवाद बढ़ने के बाद यह कभी नहीं कहते कि उनके बयान का गलत अर्थ निकाला गया है। उनकी राजनीति की यही विशेषता है कि एक बार जो कह दिया सो कह दिया, अब जिसे जो अर्थ निकालना हो निकालता रहे। आज की राजनीति में जब नेताओं को अपने बयानों से मुकरते देर नहीं लगती, तब दिग्विजय सिंह का अपने बयानों पर अडिग रहना उन्हें राजनेताओं की भीड़ में खास बना देता है। इन सब के बीच वे मानहानि के मुकदमे की धमकियों की भी परवाह नहीं करते हैं। वे किसी भी मुद्दे पर सोच समझकर ही बयान देते हैं, इसलिए उनको घेरने की कोशिशों में लगे उनके प्रतिद्वंद्वियों को हमेशा निराशा ही हाथ लगती है। इन सब के बाद भी दिग्विजय सिंह के मित्रों की संख्या केवल कांग्रेस पार्टी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विरोधी दलों में भी उनके मित्रों की संख्या अच्छी खासी तादाद में है।
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि दिग्विजय सिंह राजनीतिक विरोध को कभी अपने मैत्री संबंधों पर हावी नहीं होने देते। उनके बारे में अक्सर कहा जाता है कि एक राजनेता के रूप में उन्हें समझना सरल नहीं है ,परंतु जिसने एक बार दिग्विजय सिंह के अंदर मौजूद राजनेता को समझ लिया, वह कभी उनसे दूर नहीं हो सकता। दिग्विजय सिंह से मेरा पहला परिचय कब हुआ यह तो मुझे याद नहीं है, परंतु इतना मुझे याद है कि उन्होंने दो चार मुलाकातों में ही मुझे अपना बना लिया था। उनके लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती है कि मैं उनका सैद्धांतिक विरोधी रहा हूं। वे अक्सर मजाक में कहते हैं कि मेरे कट्टर विरोधी मेरे सबसे घनिष्ठ मित्र हैं। मैं दिग्विजय सिंह के इस कथन से सौ फ़ीसदी सहमत हूं।
दिग्विजय सिंह लगभग पांच दशकों से राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। 10 वर्षों तक मधयप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की बागडोर भी उनके हाथों में रही है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी का भी उन्होंने कुशलता पूर्वक निर्वहन किया है। 2003 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सत्ता में वापसी का पूरा भरोसा था, इसलिए उन्होंने घोषणा की थी कि अगर इन चुनाव में कांग्रेस के हाथ से सत्ता फिसलती है तो वे 10 वर्षों तक सत्ता में कोई पद स्वीकार नहीं करेंगे। वे अपनी बात पर एकदम अटल रहे। 2004 से 2014 के बीच कांग्रेस नीत यूपीए सरकार होते हुए भी उन्होंने कोई पद स्वीकार नहीं किया। इस दौरान उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई , इस जिम्मेदारी को भी उन्होंने बखूबी संभाला और यह साबित कर दिया कि दिग्विजय सिंह एक ऐसी हस्ती का नाम है, जिसे किन्हीं भी परिस्थितियों में आप अप्रासंगिक नहीं ठहरा सकते हैं। दिग्विजय सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन में अनेकों बार यह सिद्ध किया है कि "कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी" इसलिए मैंने अपने लेख के शुरुआत में ही कहा था कि दिग्विजय सिंह को आप कभी इग्नोर नहीं कर सकते। और शायद दिग्विजय सिंह होने के यही मायने हैं।
दिग्विजय सिंह पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों में हमेशा अग्रणी रहे हैं। किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर पार्टी की रीति -नीति एवं दिशा तय करने में उनकी राय हमेशा ही अहम साबित हुई है। मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को स्थायित्व प्रदान करने में दिग्विजय सिंह की अपनी एक विशिष्ट भूमिका है, जिसने विपक्ष को भी हतप्रद कर दिया है। प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने बसपा और निर्दलीय विधायकों के सहयोग से सरकार का गठन किया था, तब भाजपा को यह भरोसा नहीं था कि यह सरकार एक साल भी पूरा कर पाएगी ,परंतु कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह की जोड़ी ने भाजपा के सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया है। अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ अगर विपक्षी भाजपा को चुनौती दे रहे हैं कि आओ और सरकार गिराओ तो इसमें निश्चित रूप से दिग्विजय सिंह का संबल भी उनके साथ है।
दिग्विजय सिंह नपे तुले शब्दों में अपनी बात सामने रखते हैं और उनकी बात को पार्टी और सरकार में तरजीह न मिले यह तो सोचना भी कठिन है। दिग्विजय सिंह का राज्यसभा का अपना एक कार्यकाल पूर्ण हो रहा है। सदन के अंदर सत्ता पक्ष को हमेशा ही यह उत्सुकता बनी रहती है किसी ज्वलंत मुद्दे पर दिग्विजय सिंह की राय क्या है। वे जब भी किसी मुद्दे पर बोलते हैं तो उनके बयान पर कई महीनों तक चर्चा होती रहती है और अंततः उसमे दिग्विजय सिंह ही सही साबित होते है। आज कांग्रेस जिस संकट के दौर से गुजर रही है ,उसे देखते हुए सदन के अंदर दिग्विजय सिंह की मौजूदगी अपरिहार्य महसूस की जा रही है। अतः इसमें दो राय नहीं हो सकती की राज्यसभा के सदस्य के रूप में लगातार दूसरा कार्यकाल पाने के पूरे हकदार हैं। हाल ही मैं भोपाल के काफी हाउस में एक सौजन्य भेट में दिग्विजय सिंह जी ने राजनीति से सन्यास के प्रश्न पर उन्होंने कहा था की विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मैं अपने आप को दूर रखने का कहा था राज सभा वैसे भी एल्डर्स अकेली मानी जाती है उनका यह संकेत इस बात का घोतक है कि आने वाले समय में वे कांग्रेसी कोटे से एक बार फिर राज्यसभा में प्रतिनिधित्व करेंगे|
दिग्विजय सिंह के व्यक्तित्व के राजनीतिक पक्ष को ऊर्जा प्रदान करने में उनके आध्यात्मिक पक्ष का सबसे बड़ा योगदान रहा है। वे कितने भी व्यस्त क्यों ना रहे हो, सुबह की पूजा हमेशा ही उनकी दिनचर्या का अनिवार्य अंग रही है। वे हमेशा एकांत साधना करते हैं और योग से उनके दिन की शुरुआत होती है। दो वर्ष पूर्व उन्होंने नर्मदा परिक्रमा प्रारंभ की थी, वह भी नितांत आध्यात्मिक यात्रा थी, जिसको उन्होंने दिखावे और प्रचार से दूर रखने का संकल्प पहले ही ले लिया था। उनकी उस आध्यात्मिक यात्रा को मध्य प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उस समय एक राजा की कठोर तपस्या निरूपित किया था। दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा ने उन्हें पहले से अधिक ऊर्जावान बनाया है। उनकी दिनचर्या की कितनी भी व्यस्त क्यों न हो ,परंतु उनके मुखमंडल पर क्लांति के भाव कभी नहीं आते। उम्र के इस पड़ाव पर भी वे पूरी तरह चैतन्य और सजग दिखाई देते हैं। उनके चेहरे पर हमेशा छाई रहने वाली मुस्कान बरबस ही उनके विरोधियों को भी अपनी ओर खींच लेती है। उनके जन्म दिवस के शुभ अवसर पर मैं उनके यशस्वी शतायु जीवन की कामना करता हूं।
( लेखक आईएफडब्ल्यू जे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं डिज़ियानामीडिया के पॉलिटिकल एडिटर हैं)
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह आगामी 28 फरवरी को अपने यशस्वी जीवन के 73 वे वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। इस अवसर पर उनके सुदीर्घ राजनीतिक जीवन की उल्लेखनीय उपलब्धियों की चर्चा होना स्वाभाविक है। मेरी नजर में दिग्विजय सिंह की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि आप उनके विचारों से सहमत या असहमत हो सकते हैं, परंतु उन्हें इग्नोर नहीं कर सकते है। उनके बयान हमेशा ही उन्हें सुर्खियों में रखते है और कई बार विवादों को भी जन्म देते हैं। उनके बयानों में कुछ न कुछ ऐसा जरूर होता है, जो पढ़ने और सुनने वालों को सोचने पर विवश कर देता है। इसलिए दिग्विजय सिंह किसी भी मुद्दे पर अपने विचारों को खुलकर व्यक्त करने से कभी परहेज नही करते हैं। उनकी एक खासियत और है कि वे अपने किसी भी बयान से कभी किनारा भी नहीं करते है। एक बार जो कुछ कह देते हैं, उस पर हमेेशा अडिग रहते है। वे अपने बयानों पर कभी सफाई भी नहीं देते।
दिग्विजय सिंह और विवादों का मानो चोली दामन का साथ हो गया है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस के नेता और राजनीति के कुशल चाणक्य को विवादों में रहना ही आता है। एक बात और कि वे अपने किसी बयान पर विवाद बढ़ने के बाद यह कभी नहीं कहते कि उनके बयान का गलत अर्थ निकाला गया है। उनकी राजनीति की यही विशेषता है कि एक बार जो कह दिया सो कह दिया, अब जिसे जो अर्थ निकालना हो निकालता रहे। आज की राजनीति में जब नेताओं को अपने बयानों से मुकरते देर नहीं लगती, तब दिग्विजय सिंह का अपने बयानों पर अडिग रहना उन्हें राजनेताओं की भीड़ में खास बना देता है। इन सब के बीच वे मानहानि के मुकदमे की धमकियों की भी परवाह नहीं करते हैं। वे किसी भी मुद्दे पर सोच समझकर ही बयान देते हैं, इसलिए उनको घेरने की कोशिशों में लगे उनके प्रतिद्वंद्वियों को हमेशा निराशा ही हाथ लगती है। इन सब के बाद भी दिग्विजय सिंह के मित्रों की संख्या केवल कांग्रेस पार्टी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विरोधी दलों में भी उनके मित्रों की संख्या अच्छी खासी तादाद में है।
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि दिग्विजय सिंह राजनीतिक विरोध को कभी अपने मैत्री संबंधों पर हावी नहीं होने देते। उनके बारे में अक्सर कहा जाता है कि एक राजनेता के रूप में उन्हें समझना सरल नहीं है ,परंतु जिसने एक बार दिग्विजय सिंह के अंदर मौजूद राजनेता को समझ लिया, वह कभी उनसे दूर नहीं हो सकता। दिग्विजय सिंह से मेरा पहला परिचय कब हुआ यह तो मुझे याद नहीं है, परंतु इतना मुझे याद है कि उन्होंने दो चार मुलाकातों में ही मुझे अपना बना लिया था। उनके लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती है कि मैं उनका सैद्धांतिक विरोधी रहा हूं। वे अक्सर मजाक में कहते हैं कि मेरे कट्टर विरोधी मेरे सबसे घनिष्ठ मित्र हैं। मैं दिग्विजय सिंह के इस कथन से सौ फ़ीसदी सहमत हूं।
दिग्विजय सिंह लगभग पांच दशकों से राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। 10 वर्षों तक मधयप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की बागडोर भी उनके हाथों में रही है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी का भी उन्होंने कुशलता पूर्वक निर्वहन किया है। 2003 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सत्ता में वापसी का पूरा भरोसा था, इसलिए उन्होंने घोषणा की थी कि अगर इन चुनाव में कांग्रेस के हाथ से सत्ता फिसलती है तो वे 10 वर्षों तक सत्ता में कोई पद स्वीकार नहीं करेंगे। वे अपनी बात पर एकदम अटल रहे। 2004 से 2014 के बीच कांग्रेस नीत यूपीए सरकार होते हुए भी उन्होंने कोई पद स्वीकार नहीं किया। इस दौरान उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई , इस जिम्मेदारी को भी उन्होंने बखूबी संभाला और यह साबित कर दिया कि दिग्विजय सिंह एक ऐसी हस्ती का नाम है, जिसे किन्हीं भी परिस्थितियों में आप अप्रासंगिक नहीं ठहरा सकते हैं। दिग्विजय सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन में अनेकों बार यह सिद्ध किया है कि "कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी" इसलिए मैंने अपने लेख के शुरुआत में ही कहा था कि दिग्विजय सिंह को आप कभी इग्नोर नहीं कर सकते। और शायद दिग्विजय सिंह होने के यही मायने हैं।
दिग्विजय सिंह पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों में हमेशा अग्रणी रहे हैं। किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर पार्टी की रीति -नीति एवं दिशा तय करने में उनकी राय हमेशा ही अहम साबित हुई है। मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को स्थायित्व प्रदान करने में दिग्विजय सिंह की अपनी एक विशिष्ट भूमिका है, जिसने विपक्ष को भी हतप्रद कर दिया है। प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने बसपा और निर्दलीय विधायकों के सहयोग से सरकार का गठन किया था, तब भाजपा को यह भरोसा नहीं था कि यह सरकार एक साल भी पूरा कर पाएगी ,परंतु कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह की जोड़ी ने भाजपा के सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया है। अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ अगर विपक्षी भाजपा को चुनौती दे रहे हैं कि आओ और सरकार गिराओ तो इसमें निश्चित रूप से दिग्विजय सिंह का संबल भी उनके साथ है।
दिग्विजय सिंह नपे तुले शब्दों में अपनी बात सामने रखते हैं और उनकी बात को पार्टी और सरकार में तरजीह न मिले यह तो सोचना भी कठिन है। दिग्विजय सिंह का राज्यसभा का अपना एक कार्यकाल पूर्ण हो रहा है। सदन के अंदर सत्ता पक्ष को हमेशा ही यह उत्सुकता बनी रहती है किसी ज्वलंत मुद्दे पर दिग्विजय सिंह की राय क्या है। वे जब भी किसी मुद्दे पर बोलते हैं तो उनके बयान पर कई महीनों तक चर्चा होती रहती है और अंततः उसमे दिग्विजय सिंह ही सही साबित होते है। आज कांग्रेस जिस संकट के दौर से गुजर रही है ,उसे देखते हुए सदन के अंदर दिग्विजय सिंह की मौजूदगी अपरिहार्य महसूस की जा रही है। अतः इसमें दो राय नहीं हो सकती की राज्यसभा के सदस्य के रूप में लगातार दूसरा कार्यकाल पाने के पूरे हकदार हैं। हाल ही मैं भोपाल के काफी हाउस में एक सौजन्य भेट में दिग्विजय सिंह जी ने राजनीति से सन्यास के प्रश्न पर उन्होंने कहा था की विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मैं अपने आप को दूर रखने का कहा था राज सभा वैसे भी एल्डर्स अकेली मानी जाती है उनका यह संकेत इस बात का घोतक है कि आने वाले समय में वे कांग्रेसी कोटे से एक बार फिर राज्यसभा में प्रतिनिधित्व करेंगे|
दिग्विजय सिंह के व्यक्तित्व के राजनीतिक पक्ष को ऊर्जा प्रदान करने में उनके आध्यात्मिक पक्ष का सबसे बड़ा योगदान रहा है। वे कितने भी व्यस्त क्यों ना रहे हो, सुबह की पूजा हमेशा ही उनकी दिनचर्या का अनिवार्य अंग रही है। वे हमेशा एकांत साधना करते हैं और योग से उनके दिन की शुरुआत होती है। दो वर्ष पूर्व उन्होंने नर्मदा परिक्रमा प्रारंभ की थी, वह भी नितांत आध्यात्मिक यात्रा थी, जिसको उन्होंने दिखावे और प्रचार से दूर रखने का संकल्प पहले ही ले लिया था। उनकी उस आध्यात्मिक यात्रा को मध्य प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उस समय एक राजा की कठोर तपस्या निरूपित किया था। दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा ने उन्हें पहले से अधिक ऊर्जावान बनाया है। उनकी दिनचर्या की कितनी भी व्यस्त क्यों न हो ,परंतु उनके मुखमंडल पर क्लांति के भाव कभी नहीं आते। उम्र के इस पड़ाव पर भी वे पूरी तरह चैतन्य और सजग दिखाई देते हैं। उनके चेहरे पर हमेशा छाई रहने वाली मुस्कान बरबस ही उनके विरोधियों को भी अपनी ओर खींच लेती है। उनके जन्म दिवस के शुभ अवसर पर मैं उनके यशस्वी शतायु जीवन की कामना करता हूं।
( लेखक आईएफडब्ल्यू जे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं डिज़ियानामीडिया के पॉलिटिकल एडिटर हैं)
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