17.4.20

अंबेडकरी आंदोलन से दूर सफाई कामगार जातियां

संजीव खुदशाह

वैसे तो दलितों में विभिन्न जातियां होती है। विभिन्न जातियों के पेशे भी भिन्न भिन्न होते है। लोकिन पूरी दलित जातियों के बड़े समूह को दो भागों में बांट कर देखा जाता रहा है। पहला चमार दलित जातियां जो मरी गाय की खाल निकालती और उसका मांस खाती थी। दूसरा सफाई कामगार जातियां जो झाड़ू लगाने से लेकर पैखाना सिर पर ढोने का काम करती रही है।

यदि अंबेडकरी आंदोलन के पि‍रप्रेक्ष्य  में देखे तो चमार दलित जातियां आंदोलन के प्रभाव में जल्दीं आयी और तरक्की‍ कर गई। वही़ सफाई कामगार दलित जातियां अंबेडकरी आंदोलन में थोड़ी देर से आयी या कहे बहुत कम आई, पीछे रह गई। आइये आज इसके विभिन्न  पहलुओं पर पड़ताल करते है।

क्या है अंबेडकर का प्रभाव (आंदोलन)

सन 1930 में डॉं अंबेडकर ने देखा की दलितों के साथ बेहद भेदभाव हो रहा है। उनका शोषण नही रूक रहा है। तो उन्होने दलितों से दो अपील की (1) अपना गांव या मुहल्ले  छोड़ दो, शहर में बस जाओं (2) अपना गंदा पुश्तैनी पेशा छोड़ कोई दूसरा पेशा अपनाओ। इन दो अह्वान का असर यह हुआ की दलित जाति शोषण शिकार अपने गांव को छोड़ कर शहर में आ बसी। इसके लिए उन्हे उच्च जाति के लोग उन्हे गांव छोड़कर जाने नही देना चाहते थे। इससे उनकी सुविधाओं और आराम पसंद जिदगी के खलल पैदा हो सकती थी। उनके घर बेगारी कौन करेगा? कौन उनके मरे जानवरों को फेकेगा?

दूसरा काम यह हुआ की दलित जातियां मरे जानवरों को फेकने चमड़े निकालने का काम करने से इनकार कर दिया। इसका असर यह हुआ की गांव में दलितों के साथ मार पीट की गई। दलितों की भूखे मरने की नौबत आ गई। बावजूद इसके बहुसंख्यक दलितों ने अपना रास्ता  नही छोड़ा। डां अंबेडकर के आह्वान पर कायम रहे। गौर तलब है ऐसा करने वाली दलित जातियां चमार वर्ग की थी। सफाई कामगारों ने डॉं अंबेडकर के दानो आह्वान का पालन नही किया। न वे आज भी कर रहे है। आज भी  वे अपनी जातिगत गंदी बस्ति‍यों में रहते है और अपना वही पुराना गंदा पेशा अपनाए हुये है।

इसके क्या कारण है यह ठीक ठीक बताना बेहद कठीन है। लेकिन तत्कालीन परिस्थितियों को देखकर कुछ निष्कर्ष पर पहुचा जा सकता है। उन्होने डॉं अंबेडकर के आह्वान को नही माना इसके निम्न कारण हो सकते है।

1) सुविधा - उन तक बात नही पहुची होगी की अपने शोषण कारी गांव को छोड़ दिया जाय। उस समय (1930) सफाई कामगार जातियां ज्यादातर शहरों में निवास करती थी। वैसा कष्टकारी जीवन उन्हे देखने को नही मिला जैसा गांव में दलितों को मिलता है। इसलिए उनको शहर में रहने के करण गांव छोड़ने का प्रश्नो नही उठता। रही बात उनकी गंदी बस्‍तियों को छोड़ने की तो उन्होने इसलिए नही छोड़ा होगा क्योकि उन्हे गांव के वनिस्पत कष्ट या शोषण कम रहा होगा। बात जो भी हो यह एक सच्चा ई है कि सफाई कामगारों ने अपनी गंदी बस्तियों को नही छोड़ा ।

2) आत्मो सम्मायन नही जागा- गंदे पेशे को छोड़ने का आह्वान भी सफाई कामगारों ने अनसुना कर दिया। इसका कारण था उनकी आर्थिक स्थिति, अंग्रेजों / अफसरों से निकटता जो उन्हे सुविधा भोगी बनाती थी। वे अफसरों की तिमारदारी से लेकर सभी गंदे काम करते थे। वे झाड़ु लगाते, नाली साफ करते, मैला ढोते, उनकी जूठन खाते। उन्हे कभी अपने आत्म सम्मान के अपमान होने का एहसास नही हुआ। यही सब बाते उन्हे पुस्तैनी पेशे पर एकाधिकार रखने हेतु प्ररित करती थी। इस लिए उन्होने डॉं अंबेडकर के इस आह्वान को भी नही माना।

3) सामाजिक नेतृत्व – शुरू से आज तक सफाई कामगार जातियों में जो सामाजिक नेतृत्व् मिला चाहे वो जाति पंचायत के रूप में रहा या किसी धार्मिक नेता के रूप में उन्होने हमेशा सफाई कामगारों का शोषण किया। उन्हे डॉं अंबेडकर के विरुध भड़काया। कहा की वे सिर्फ चमारो के नेता है। इस काम में हिन्दूवादी लोग / राजनीतिक पार्टीयां मदद करती रही। सामाजिक नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए नये नये गुरूओं की पूजा करने लगे जैसे वाल्मीकि, सुदर्शन, गोगापीर, मांतग, देवक ऋषि आदि आदि। वे सारे काम इन समाजिक नेताओं द्वारा किये गये जो इन्हे अंबेडकरी आंदोलन से दूर रखे जाने के लिए किये जाने जरूरी थे। इसका एक बड़ा कारण गांधी का प्रभाव भी रहा है।

4) गांधी का प्रभाव- इसी दौरान (1932) गांधी ने हरिजन सेवा समिति का गठन किया। वे हरिजन नामक अंग्रेजी पत्र प्रकाशित करते थे। इसके केन्द्र में उन्होने सफाई कामगारों को रखा। वे हिन्दूवादी थे और वे नही चाहते थे की दलित इस पेशे को छोड़े। उन्होने उल्टे यह कहा की ‘’ यदि मेरा अगला जन्म होगा तो मै एक भंगी के घर जन्म  लेना पसंद करूगा।‘’ इसका प्रभाव यह पड़ा की सफाई कामगार अपने पेशे के प्रति झूठे उत्साह से भरा गये। आत्मसम्मान के उलट अपने आपको फेविकोल से इस पेशे से जोड़ लिया।

अब प्रश्न उठता है कि सफाई कामगारों में आत्मसम्मान कब जागेगा। कब वे अपना पुश्तैनी पेशा एवं गंदी बस्तियां छोड़ेगे। कब अंबेडकरी आंदोलन से जुड़ेगे?

1) सफाई कामगारों के बर्बादी के कारण समाजिक नेता- सफाई कामगारों का सबसे बड़ा नुकसान उनके ही समाजिक नेताओं ने किया। इतिहास गवाह है कि किसी भी सामाजिक नेता ने डॉं अंबेडकर के दोनो आह्वान को पूरा करने में कोई रूची नही दिखाई । उल्टे वे पार्टी के टिकट पाने पद  पाने के निजी लालाच में डॉं अंबेडकर के विरुध लोगो को भड़काते रहे। यह प्रकिया आज भी जारी है। 

2) धर्मान्धता – यह देखा गया है जो दलित जातियां पिछड़ी या गरीबी का शिकार रही है वे अति धार्मिकता से ग्रसि‍त रही है। सफाई कामगारों के साथ भी यही हुआ। जाति शोषण से परेशान होकर यदि कोई धर्मांतरण करना चाहता तो उसे किसी काल्पनिक गुरू के सहारे धर्माधता में ढकेल दिया जाता। वे गरीब होने के बावजूद सारे कर्म काण्ड कर्ज लेकर करती। भले ही बच्चों को शिक्षा देने के लिए पैसे न हो। आज भी धर्मांधता सफाई कामगारों के पिछडे़पन का एक बड़ा करण है।

3) नशा-सफाई कामगार के परिवार ज्यादतर नशे के गिरफ्त में होते है। नशे के कारण वे अपने पेशे आत्म सम्मान के बारे में सोच नही पाते है। नशा करना घर की महिलाओं से या आपस में झगड़ना दैनिक दिन चर्या का अहम हिस्सा  है।

4) आलस- आमतौर पर सफाई कामगारों द्वारा यह सुना जाता है कि अपना वाला काम करो बड़े मजे है। रोज सुबह एक दो घंटा काम करों। दिन भर का आराम। इस काम में मेहनत कम होने की एक वजह के कारण लोग इस काम को छोड़़ना नही चाहते यह देखा गया है। दूसरा यह है कि घरों में सेफ्टी टैक साफ करने के उचे दाम मिलते है। अगर एक दिन में दो घरो का काम मिल गया तो इतने पैसे आ जाते है कि एक हफ्ता काम करने की जरूरत नही पड़ती। शहरी करण ने आम लोगो को इस काम के उचे दाम देने के लिए मजबूर किया है।

तो प्रश्न यह उठता है कि सफाई कामगार कब अपनी गंदी बस्ती और गंदे पेशे को छोड़ेगा?

यह तभी होगा जब वह अंबेडकरी आंदोलन से जुड़ेगा। सामाजिक नेता, धर्मांधता, नशे के गिरफ्त्‍ से बाहर निकलेगा आलस को त्यागेगा। उसे खुद सोचना होगा क्यों  वह आज तक इतना पिछडा है। परियार कहते है जिस समाज का आत्मसम्मान नही होता वह कीड़ों का एक झुण्ड के बराबर है। इसलिए आत्मसम्मान जगाना होगा। इस काम में समाज के ही अंबेडकरवादी पेरियार वादी बुध्दजीवियों सामाजिक कार्यकर्ताओं को आगे आना होगा तभी इस समाज में आत्मसम्मान जागेगा और सफाई कामगार समुदाय अंबेडकरी आंदोलन से जुड़ेगा।

No comments:

Post a Comment