13.5.20

मध्य प्रदेश में फसल बीमा में सरकार एंव कंपनियों की नीयत में खोट

                                                      
विनोद के. शाह
Shahvinod69@gmail.com

राज्य सरकार द्धारा एक साल से अधिक समय तक अपने प्रीमियम अंशदान को लटकाकर कर किसानो के मिलने वाले फसल नुकशान क्लेंब को जानबूझकर विलंवित किया है। तहलसील प्रशासन के अपूर्ण नुकशान आंकलन से राज्य का 75 फीसदी किसान वितरित फसल बीमा के लाभ से वंचित हो चुका है। सवसे बडा आश्चर्य तो यह कि जिस बीमा वितरण के लिये प्रदेश के मुख्यमंत्री किसान को राहत देने की बात कर अपनी पीठ थपथपा रहे है। उस बीमा का 2990 करोड किसानो को वितरित करने के बाद भी बीमा कंपनियों ने 1478.86 करोड का शुद्ध लाभ कमाया है। राज्य में किसानो की नही सिर्फ बीमा कंपनियों की बल्ले—बल्ले हो रही हे।

प्रदेश में फसल बीमा दावा भुगतान के नाम पर सियासत का दौर है। बीमा में देरी एंव वाहवाही को लेकर आरोप एंव प्रत्यारोप की जोर आजमाइस है। कोरोना महामारी के वैश्विक संकट में फसल न बिक पाने से राज्य के किसान पर अर्थ का संकट पहले से ही बना है। ऐसे में फसल बीमा मिलने के आस उसकी उदासीनता को सांत्वना देने कि कोशिश कर रही थी। लेकिन वर्ष 2018—19 का वितरित फसल बीमा न केवल अन्नदाता की उम्मीदो पर पानी फेरने वाला है,ब्लकि फसल बीमा योजना से किसानो को होने वाले लाभ के दावो को नकार रहा है। राज्य में वितरित फसल बीमा योजना का लाभ मात्र 25 फीसदी भाग्यशाली बीमित किसानो को ही मिल पा रहा है। शत फीसदी नुकशान के बाबजूद शेष किसानो की पात्रता को प्रशासनिक लाफरवाही के कारण अमान्य किया गया है। खरीफ फसल 2018 में प्रदेश के 35 लाख किसानो ने बीमा प्रीमियम का भुगतान किया था।

जबकि दाबा भुगतान की सूची में मात्र 08 लाख 40 किसानो को सम्मलित कर 1930 करोड का भुगतान सहकारी संस्थाओ एंव बैंको को प्रेषित किया गया है। इसी तरह रवि फसल 2018—19 के लिये प्रदेश के 25 लाख किसानो से प्रीमियम बसूला गया था। लेकिन बीमा भुगतान 06 लाख 60 हजार किसानो को 1060 करोड का है। इस प्रकार दोनो फसलो के लिये कुल 2990 करोड का सम्मलित भुगतान जिसे सियासतदारो द्धारा अभी तक का सर्वाधिक दिखाकर किसानो को भ्रमित किया जा रहा है। एक हल्के में जहॉ 70 से 80 फीसदी नुकशान का आकॅलन है तो उससे सटे हल्के में शून्य या बहुत कम नुकशान दिखाया गया है। खरीफ का यह नुकशान अतिबृष्टि या अल्पबृष्टि के कारण से है। लेकिन दो पडौसी हल्को में आकॅलन का यह अन्तर प्रशासनिक कार्यप्रणाली को संदिग्ध बनाने वाला है।

तहसील की हल्का इकाई में नुकशान का आंकलन कम से कम 08 फसल कटाई प्रयोग से किये जाने का विधान है। लेकिन पारर्दशिता के अभाव में हल्के के संबंधित पटवारी एंव गिरधावर आंशिक प्रयोगो से औपचारिक परिपालन करते है। एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कं.आफ इंडिया लि. के महाप्रबंधक ने एक आरटीआई अपील के जबाब में स्वयं स्वीकार् किया है कि 31 जनवरी 2020 तक उन्हे फसल कटाई के प्रयोग आंशिक रुप में ही प्राप्त हुऐ थे। इन हालात में फसल बीमा का ईमानदार तरीके से वितरण पूर्णता संदिग्ध ही है। किसानो को वितरित बीमा राशि प्रति एकड रुपये 150 से लेकर 4500 रुपये बर्ष 2018—19 की खरीफ एंव रवि फसलो की सम्मलित क्षतिपूर्ति हलके में नुकशान के आंकलन अनुसार है। जहॉ प्रति एकड सम्मलित नुकशान को अधिकतम 4500 रुपये आंका गया है। जो कि अन्नदाता के साथ मजाक से कम नही है।

इन परिस्थितियो में जहॉ किसान का जर्बदस्त घाटा परिलक्षित है तो 2990 करोड के क्षतिपूर्ति वितरण के बाद भी बीमा कम्पनियॉ लाभ की स्थिति में है। वर्ष 2018—19 में खरीफ एंव रवि फसलो के लिये बीमा प्रीमियम में राज्य एंव केन्द्र सरकार का अंशदान क्रमश:2196 — 2196 करोड का है। जबकि किसानो से बसूला गया प्रीमियम का अंश 76.86 करोड का है। इस तरह बीमा कंपनियों का प्राप्त कुल बीमा प्रीमियम राशि 4468 करोड की है। जबकि दाबा भुगतान मात्र 2990 करोड का है। इस तरह बीमा वितरण के बाद बीमा कंपनियो का शुद्ध मुनाफा 1478.46 करोड का है। इस प्रकार फसल बीमा किसानो के लिये राहत भरा न होकर बीमा कंपनियो के लिये लाभकारी बन चुका है।


लेकिन राज्य के किसानो की मुश्किले यही समाप्त नही होती है। लाभांवित किसानो को प्राप्त बीमा राशि को राज्य की सहकारी बैंके बर्ष 2016 के मघ्यकालीन ऋण में समायोजित करा रही है। यह वह ऋण है जिसपर पिछले सरकार ने 02 लाख तक ऋण माफी वचन दिया था। लेकिन सहकारी बैंक के नये आदेश इस बाकाया ऋण को जिसे राज्य के किसानो ने माफी की उम्मीद में जमा नही किया है। 14 फीसदी ब्याज के साथ वसूल रहे है। इस तरह राज्य के फसल बीमा सहित सरकारी नीतियॉ किसानो को राहत कम, मानसिक प्रताडना अधिक देने वाली है।

लेखक कृषि मामलो के जानकार है।

अंबिका, हास्पीटल रोड, विदिशा 46400

मोबा. 9425640778  

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