भड़ास blog
अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
8.5.20
सड़कें यूं उदास तो न थी ….!!
सड़कें यूं उदास तो न थी ….!!
: तारकेश कुमार ओझा अपनों से मिलने की ऐसी तड़प , विकट प्यास तो न थी शहर की सड़कें पहले कभी यूं उदास तो न थी पीपल की छांव तो हैं अब भी मगर बरगद की जटाएंं यूं निराश तो न थी गलियों में होती थी समस्याओं की शिकायत मनहूसियत की …
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