17.6.20

उल्लू बनाती पत्रकारिता!


कोरोना काल में लॉकडाउन में दैनिक भास्कर इंदौर ने पेज एक पर जो तस्वीर प्रकाशित की, वो ये साबित करती है कि नया करने के चक्कर में पत्रकारिता ने दिमाग घर रखकर उल्लू प्रवेश कर लिया

उल्लू आ गया है जी, बस अब तो लाभ ही लाभ है। उल्लुओं के आने पर ऐसी खुशी कभी नहीं देखी जैसी इन दिनों बड़े अखबार वालों को हो रही है। इन्हें दुनिया के शुभ की चिंता तो न कभी थी और न कभी होगी क्योंकि सारा लाभ तो ' अशुभ ' से ही निकलता है। बीमारी है, लोगों को बचाया जाना मुश्किल हो रहा है, मृतकों का आंकड़ा भयावह है लेकिन एक अखबार है जो उल्लू के ' प्रकट ' होने पर तालियां बजा रहा है। लक्ष्मी के वाहन को लेकर इतने प्रसन्न होने वाले अब बेफिक्र हैं कि महालक्ष्मी के मंदिर के ठीक सामने उल्लू दिख गया है इसलिए अब अपना तो भला तय है।

तिजोरी की चिंता तो करनी ही पड़ती है। इधर बिक्री कम हो रही है उधर विज्ञापन गायब हैं। सोते जागते बस यही चिंता थी कि जैसे भी हो लाभ वाला मामला लक्ष्मी जी संभाल लें। दो दिन पहले भी चारों तरफ कोरोनाई खबरों के बीच  'शुभ लाभ ' जैसा हेडिंग दिया गया था क्योंकि दिमाग से लाभ कैसे निकालें? न जाने कब से मन्नत मना रहे थे कि लाभ का कोई तो संकेत मिल जाए और ये लीजिए।

मुझे आज यह भी समझ आ गया कि बड़े अखबार ने इसे जरूरी वस्तु बताने में क्यों पूरी ताकत लगा दी। बताइए अगर लोगों तक आज यह खबर नहीं पहुंचती कि आज शहर की फलां जगह पर उल्लू दिख गया है तो कितनी बड़ी अनहोनी हो जाती। आज यह खबर अपने पाठकों तक परोस कर अखबार ने मानवीयता पर को अहसान किया है उसका कर्ज आप और हम कैसे चुका सकेंगे?

 बड़े अखबार ने इंसानों को तो उल्लू बनाने का कारखाना खोल रखा है लेकिन सचमुच का उल्लू दिखना इतनी खुशी की बात हो सकती है मुझे नहीं पता था। इस शहर के कई कोनों और पेड़ की कई कोटरों में मुझे लक्ष्मी के कई वाहन नजर आए हैं लेकिन जब बड़े अखबार के बड़े बड़े लोगों को नजर आ जाएं तब उनकी भी किस्मत खुल जाती है।

आज उल्लू के जरिए लाभ के आने की बात कहकर बड़े अखबार ने साबित कर दिया कि बड़े बड़े अफसरों ने तमाम खतरों के बाद भी अखबार बंटवाया तो गलत नहीं किया। आज हर पाठक को कृतज्ञ होना चाहिए कि ( कथित ) सबसे विश्वसनीय अखबार ने उल्लू के शुभ आगमन की सूचना दे दी है।  उल्लू को लेकर इतना भावमग्न हो जाना....उफ्फ


kapil
pr10to11@gmail.com

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