27.6.20

शराबी कौन, जनता या सत्ता?



शुक्र है भारत के नागरिकों को दूसरी बार लाइन में लगने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। पहला सौभाग्य नोटबंदी के समय प्राप्त हुआ था, और दूसरा अब कोरोना काल में शराब की चाहत में प्राप्त हुआ है। भारत के मदिरा प्रेमियों को सरकारों का शुक्रगुजार होना चाहिए। कि, सरकार उनका कितना ख्याल रख रही है। 45 दिन से शराब की जुदाई में तड़प रहे मदिराप्रेमियों की ख्वाहिश जो पूरी हो गई। भले ही कोरोना वायरस के विरुद्ध हमारी लड़ाई कमजोर क्यों न हो जाए। भले ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो,या न हो। भले ही कोरोना के मरीजों की संख्या में इजाफा हो जाए, पर सरकार को क्या लेना देना। जब शराब पिएंगे गरीब, तो मरेंगे भी गरीब।

इतिहास गवाह है कि, अमीर कभी किसी लाइन में नहीं लगा, जब भी देश में कभी लाइन में लगने की नौबत आई तो, लंबी-लंबी कतारों में सिर्फ गरीब व्यक्ति ही लगा है। चाहे नोटबंदी की लाइन हो, या कोरोना संकट के समय शराब दुकान की लाइन हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार द्वारा दी गई हिदायतें उस वक्त ताक में रखी नजर आई, जब शराब की दुकानों के आगे लंबी कतार लगी दिखी। दिल्ली में तो सुबह से ही अपनी प्यास बुझाने के लिए मदिरा प्रेमी लाइन में लगे हुए थे। लोग अफरा-तफरी मचा रहे थे, इसके लिए पुलिस को थोड़ा बहुत बल प्रयोग भी करना पड़ा। गौतमबुद्ध नगर में हालात बेकाबू हो गए। क़सम से इतनी मोहब्बत तो लोग अपनी प्रेमिका या पत्नी से भी नहीं करते, जितनी दारू से करते दिख रहे हैं। वरना मौत की ज़हरीली हवा के बीच कोई इतने सुबह से नहीं निकलता।

इस समय पूरी दुनिया कोरोना वायरस से बुरी तरह प्रभावित है। दुनियाभर की सरकारों ने अपने अपने देश में पूर्णबन्दी कर रखी है। भारत में 24 मार्च से पूर्णबन्दी लागू है। सरकार द्वारा लगातार प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक और तमाम संचार माध्यमों के जरिए लोगों को समझा रही है कि, हमें घर से नहीं निकलना है, दो गज की दूरी बनाए रखना है। बिना मास्क पहने नहीं निकलना है, लगातार हाथों को धोते रहना वगैरह-वगैरह, लेकिन इन तमाम नियमों की धज्जियां किस तरह से मदिरा प्रेमियों ने उड़ाई गई हमने सब देखा। लेकिन इसके लिए जिम्मेदार कौन है जनता या सरकार? निश्चित तौर पर इसकी जिम्मेदार सरकार ही है। क्योंकि न तो राजस्व कूटने की चाह सरकार के पास होती, और न लोग घरों से निकलते। इससे यही साबित होता है कि, नशे में दोनों है। सरकार भी, और जनता भी।

राजस्व बढ़ाने का नशा सत्ता के पास है और शराब पीने का नशा जनता के पास है। अब ऐसे में सवाल है कि, सरकारें आखिर चाहती क्या है? 45 दिनों से लोगों ने शराब न पीकर ये साबित कर दिया था कि हम नशा मुक्त रह सकते हैं। हमें शराब की नहीं सावधानी बरतने की जरूरत है। लोगों ने वकायदा घर में रहकर सारे नियम कानून का पालन किया है। और एकता का संदेश दिया। लेकिन सरकार के शराब दुकान खोलने के निर्णय से ये स्पष्ट हो गया है कि, सरकार दारू बेचे बिना नहीं रह सकती है। वरना राजस्व बढ़ाने के चक्कर में सरकार लोगो की जिंदगी दाव पर नहीं लगाती। हम इस बात को अच्छी तरह जानते है, कि भारत में किसी नियम क़ानून का पालन कराना कितना कठिन है। एक तरह से देखा जाए तो टेढ़ी खीर की तरह है। फिर भी सरकारों ने शराब दुकान खोलने का फैसला क्यों किया? क्या शराब के अलावा सरकारों के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं जिससे अर्थव्यवस्था दुरुस्त हो सके? क्या सरकारों ने कोरोना काल में अर्थव्यवस्था को बचाने का कोई दूसरा मास्टर प्लान तैयार नहीं किया है? क्या ऐसे में लॉकडाउन सफल सफल हो जाएगा?

वर्तमान के हालतों को देखते हुए सरकारों की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए? क्या ये भी बताने की जरूरत है। रोज हजारों प्रवासी लोग चिलचिलाती धूप गर्मी में पैदल यात्रा करने को मजबूर है। उनके साथ में छोटे-छोटे बच्चे हैं, औरतें साथ में है। व्यक्ति हजारों किलोमीटर की यात्रा पैदल ही कर रहे है, जैसे उनके भाग्य में यही लिखा था। आंकडों को अगर देखा जाए तो, कोरोना कहर से तो कम, भुखमरी कहर से ज्यादा लोगों दम तोड़ा है। भूख से हजारों लोग मरे होंगे। क्या ये हालात इन गरीब बेबस मजदूरों ने पैदा किए है, जिसकी उन्हें सजा दी जा रही है?

आज सबसे ज्यादा इस बात की जरूरत है कि, लोगों की जिंदगियां कैसे बचाई जाए? सरकारों की प्राथमिकता कोरोना को हराने की ओर केंद्रित होनी चाहिए। अगर राज्यों की आर्थिक स्थिति गंभीर हो रही है तो, इसके लिए कोई दूसरा रास्ता निकालना चाहिए। कोई ऐसी योजना बनानी चाहिए, जिससे राज्य को भी कोई नुकसान न हो, और जनता को भी। अगर इस तरह राज्य सरकार नहीं सोचती है तो हमें लगता है कि, जनता से ज्यादा सत्ता शराबी है।

स्वतंत्र लेखक:- मनीष अहिरवार
E-mail - mgoliya1@gmail.com
पता- श्रीकृष्ण यादवनगर अवस्थी चौक भंडारिया रोड खंडवा मध्यप्रदेश।

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