सम्मान वापसी के दौर में असम्मानित रह जाने का दर्द अभी भूला भी नहीं था, कि कोराना काल में योद्धा बनने का दर्द दिल से होते हुए गुर्दे तक पहुंच गया है। आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर यह तड़प ऐसे बढ़ गई है, जैसे लॉकडाउन में कपार का बाल। हम भी अपने बहुतेरे साथियों की तरह कोरोना वारियर्स बनना चाहते थे, कोरोना को हथौड़ी से कूंचना चाहते थे, हम भी वारियर्स-योद्धा के सर्टिफिकेट को फेसबुक और ट्विटर पर पोस्ट करना चाहते थे, लेकिन एक भी व्यक्ति, संस्था, दल, दलदल, निर्दल, कमल, विमल, राजू, सैयद, अब्बास, चार्ल्स, जार्ज, बुश, बेयरिंग, पंखा, कूलर, फ्रिज आदि इत्यादि ने मुझे वारियर्स लायक समझा ही नहीं। सर्टिफिकेट देने लायक माना ही नहीं। हे भगवान!
हम कोरोना वारियर्स बनकर बड़ी मुश्किल से इस जीवन को सफल बनाना चाहते थे, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि बिना वारियर बने ही हम यमराज चा की कड़ाही में पहुंच जायेंगे। सारी उम्मीदें पल दो पल में अइसे ध्वस्त हो रही हैं, जैसे नगर पालिका की बनाई नाली। वारियर्स सर्टिफिकेट की कमी जीवन में वैसे ही महसूस हो रही है, जैसे सुगर पेशेंट के चाय में चीनी। विद्या कसम बता रहे हैं आज तक किसी भी संस्था या व्यक्ति ने मुझे श्रीफल, रामफल, गंगाफल, परीक्षाफल, सीताफल, आमफल, कुकर्मों का फल, जायफल, रायफल देकर सम्मानित करने लायक नहीं माना, फिर भी मुझे उतना दुख नहीं हुआ, जितना करोना वारियर्स ना बन पाने का हो रहा है। इस महत्वपूर्णकाल में जब लोग कारोना वारियर्स बनकर चौड़े हुए जा रहे हैं, हम मारे शरम घर में दुबके पड़े हैं।
ऐसा भी नहीं है कि मैंने कोरोना काल में कोई योद्धा वाला कार्य नहीं किया। बहुतेरे कार्य किये, मेरे आसपास जहां कहीं भी खाने एवं सामान का पैकेट बंटने की जानकारी हुई मैं एक सम्मानित योद्धा की तरह जाकर दो चार गरीबों का हक मार आया। सरकार की तरफ से जो भी राहत बंटी उसका जुगाड़ कर लाया। मजदूर सड़क पर पैदल चलते रहे, और मैं एक थेथर योद्धा की तरह इसे उनका मास्टर स्ट्रोक बताता रहा। बीस लाख करोड़ जब हवा में बंटा, तब भी मैंने एक चाटुकार वारियर की तरह हिसाब लगाया कि यह उनकी महानता है, नहीं तो 135 करोड़ जनता को एक-एक करोड़ भी दे देते तो एक सौ पैंतीस करोड़ में ही काम निपट जाता, लेकिन उन्होंने बड़ा दिल दिखाते हुए 135 करोड़ की जगह 20 लाख करोड़ दिया। फिर भी मुझे वारियर नहीं समझा गया।
सर्टिफिकेट पाने के सारे गुण मौजूद होने के बाद भी जब हम योद्धा नहीं बन पाये तो पिताजी बहुत बेइज्जत किये, पर हम चिंता नहीं किये, लेकिन मेरी बेइज्जती तब ज्यादा खराब हो गई जब कक्षा आठ में चार बार फेल होने वाले चिरकुट लाल को कारोना योद्धा मानकर सर्टिफिकेट दे दिया गया और वो फेसबुक पर चेप दिया। चिरकुट लाल कोरोना योद्धा का सर्टिफिकेट मिलने के बाद देश का सबसे जुझारू, निर्भीक, ईमानदार और कर्मठ पत्रकार बन का देश में छा चुका है, और जिससे मन कर रहा है जूझ जा रहा है। हमारी पत्नी भी दुखी है कि चिरकुट लाल ने योद्धा के साथ निर्भिकता, ईमानदारी का भी फार्म भरकर सर्टिफिकेट पाने के बाद मोहल्ले में सीना चौड़ा किये घूम रहा है, और एक हम है कि मास्क में मुंह छुपाये ऑफिस में बैठे हैं।
कोरोना वारियर्स का सर्टिफिकेट पाने के लिए हम भी चिरकुट लाल की तरह जझारू पत्रकार बनने के लिये कोरोना से जूझे। योद्धा के तौर पर अदाजिये दो कोराना ईंटा से कूंच भी दिये, लेकिन फिर भी हमें कोई भी व्यक्ति, संगठन, मोर्चा, संस्था, एनजीओ, पार्टी, दल, सरकार, विपक्ष, समकक्ष, दुकान, दुकानदार, व्यापारी, सांसद, विधायक, चेयरमैन, गनमैन, स्पाइडरमैन, नागराज, ध्रुव, पार्षद, स्कूल, कालेज, आवारा संघ, जाति संघ, डकैत संघ, लुटेरा संघ, ठेकेदार संघ, इंजीनियर संघ ने योद्धा सर्टिफिकेट देने लायक नहीं समझा, क्योंकि हम कभी भी पोपट लाल की तरह खबर छापकर चीन-पाकिस्तान को हिलाने का दावा नहीं कर पाये। शर्माजी की तरह कभी खबर छापकर इंद्र का सिंहासन भी नहीं हिला पाये, शर्माजी तो खबर छापकर कर बारिश तक कराने का दावा करके कोरोना योद्धा बन गये, हम कटहा कुक्कुर की तरह कांय-कांय करते रह गये।
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अनिल सिंह
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