भोपाल । माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित ‘कुलपति संवाद’ ऑनलाइन व्याख्यानमाला में प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि निर्भया प्रकरण में मीडिया ने आंदोलनकर्ता की भूमिका निभाई, जिसके कारण उस मुद्दे पर सबका ध्यान गया। निर्भया को न्याय मिला या नहीं, यह बहस का विषय हो सकता है लेकिन मीडिया के कारण उसके अपराधियों को सजा अवश्य मिली है। यदि आज स्त्री मुद्दों के साथ मीडिया के संपादकीय और उनके स्लोगन जन आंदोलन बनकर प्रस्तुत होंगे, तो समाज में बहुत परिवर्तन आ सकता है। मीडिया की यह शक्ति है कि वह स्त्री मुद्दों पर देश-समाज में जनांदोलन खड़ा कर सकती है।
‘मीडिया में स्त्री मुद्दे’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, महू, इंदौर की कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि महिलाओं को न देवी के रूप में और न ही दासी के रूप में प्रस्तुत किया जाये, बल्कि उसके मुद्दे यथार्थ मानवीय दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत किये जायें। उन्होंने कहा कि मीडिया को अपने प्रत्येक विमर्श में स्थिरता के उन ध्रुव बिंदुओं की पड़ताल और पहचान करना आवश्यक है, जो स्त्री और पुरुष के दैहिक, बौद्धिक, अकादमिक एवं विभिन्न आर्थिक विभेद के प्रश्न चिन्हों के साथ प्रस्तुत होते हैं। मीडिया की प्रभावशाली भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि मीडिया पर पूंजी के नियंत्रण के बावजूद भी वह लोकतंत्र का ऐसा चौथा स्तम्भ है, जो किसी के भी समर्थन में खड़ी होकर उसे बचा सकती हैं। यदि स्त्री मुद्दों में मीडिया की भूमिका को देखा जाए तो स्त्रियों का केवल एक वर्ग मीडिया जगत में ऐसा है, जो पूरी बेबाकी निर्भीकता और अपनी योग्यता के साथ समाज के समक्ष प्रस्तुत होता है।
प्रो. शुक्ला ने समाज की दोहरी मानसिकता पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए कहा कि सार्वजानिक तौर पर स्त्री के अधिकारों का समर्थन करने वाला समाज अक्सर उसके निर्णयों पर विचलित हो जाता है। क्यों स्त्री और पुरुष, दोनों के परस्पर संबंधों में स्त्रियों को अलग दृष्टिकोण से देखा जाता है? उन्होंने मीडिया क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं से अनुरोध किया कि मीडिया क्षेत्र में कदम रखने वाली वरिष्ठ महिला पत्रकार इस क्षेत्र में आने वाली लड़कियों का हाथ पकड़ कर उनका मार्गदर्शन करें, उन्हें हौसला दें।
‘मीडिया में स्त्री मुद्दे’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, महू, इंदौर की कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि महिलाओं को न देवी के रूप में और न ही दासी के रूप में प्रस्तुत किया जाये, बल्कि उसके मुद्दे यथार्थ मानवीय दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत किये जायें। उन्होंने कहा कि मीडिया को अपने प्रत्येक विमर्श में स्थिरता के उन ध्रुव बिंदुओं की पड़ताल और पहचान करना आवश्यक है, जो स्त्री और पुरुष के दैहिक, बौद्धिक, अकादमिक एवं विभिन्न आर्थिक विभेद के प्रश्न चिन्हों के साथ प्रस्तुत होते हैं। मीडिया की प्रभावशाली भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि मीडिया पर पूंजी के नियंत्रण के बावजूद भी वह लोकतंत्र का ऐसा चौथा स्तम्भ है, जो किसी के भी समर्थन में खड़ी होकर उसे बचा सकती हैं। यदि स्त्री मुद्दों में मीडिया की भूमिका को देखा जाए तो स्त्रियों का केवल एक वर्ग मीडिया जगत में ऐसा है, जो पूरी बेबाकी निर्भीकता और अपनी योग्यता के साथ समाज के समक्ष प्रस्तुत होता है।
प्रो. शुक्ला ने समाज की दोहरी मानसिकता पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए कहा कि सार्वजानिक तौर पर स्त्री के अधिकारों का समर्थन करने वाला समाज अक्सर उसके निर्णयों पर विचलित हो जाता है। क्यों स्त्री और पुरुष, दोनों के परस्पर संबंधों में स्त्रियों को अलग दृष्टिकोण से देखा जाता है? उन्होंने मीडिया क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं से अनुरोध किया कि मीडिया क्षेत्र में कदम रखने वाली वरिष्ठ महिला पत्रकार इस क्षेत्र में आने वाली लड़कियों का हाथ पकड़ कर उनका मार्गदर्शन करें, उन्हें हौसला दें।
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