CHARAN SINGH RAJPUT
साथियों सुनने में आ रहा है कि सहारा मीडिया के सीईओ उपेद्र राय ने सहारा मीडिया के कुछ अधिकारियों पर शिकंजा कसा है। कुछ को नौकरी से भी निकालने की खबर आ रही है। मेरा उपेंद्र राय से कोई खास वास्ता सहारा में नहीं पड़ा है हां इतना जरूर कह सकता हूं कि जिन अधिकारियों पर उन्होंने गाज गिराई है वे निश्चित रूप से दीमक की तरह संस्था को चाटते रहे हैं।
संस्था में भले ही अव्वल दर्जे की मक्कारी होती रही है पर काफी लोग अच्छे भी रहे हैं। हालांकि उपेंद्र राय ने भी सहारा में एक परिपाटी शुरू की कि संस्था से जल्द कोई निकाला नहीं जाता था सहार मीडिया में बिना किसी नोटिस के कर्मचारियों को निकालने की शुरुआत उपेंद्र राय ने ही की थी। हां इस प्रकरण से यह जरूर कहा जा सकता है कि चलो अब संस्था को यह तो पता चला कि अधिकारी वर्ग कैसे संस्था को दीमक की तरह चाट रहा था, नहीं तो सहारा में तो कर्मचारियों पर ही गाज गिरती रही है।
सुनने में आ रहा है कि चीफ फाइनेंसियल ऑफिसर महेश चंद्र लोहानी को पत्र जारी कर इनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं। ऐसे कही महाशय सहारा में हैं जो दोनों हाथों से संस्था को लूट रहे हैं और कर्मचारी बेचारे ठगे जा रहे हैं। किसी का नाम लेने में मेरी दिलचस्पी नहीं है पर जिन गौतम सरकार पर गाज गिरी है ये वही महाशय हैं, जिन्होंने पांच महीने का बकाया वेतन व मजीठिया वेज बोर्ड की मांग करने पर 22 पुराने मीडियाकर्मियों की नौकरी ले ली थी। हां सहारा मीडिया में शायद पहली बार वरिष्ठों पर इस तरह से गाज गिर रही है। हालांकि सहारा में गाज गिरना और फिर से बुलाने की परंपरा पुरानी है।
यदि यह लेख उपेंद्र राय पढ़ें तो मैं यही कहना चाहूंगा कि जो भी हम लोग सहारा मीडिया में आंदोलन कर रहे थे हमारी लड़ाई इन वरिष्ठों के खिलाफ ही थे, जो संस्था को दीमक की तरह चाट रहे हैं। हमारा मकसद भी इन जैसे मक्कारों को संस्था से बाहर निकलवाना था। यदि आज भी संस्था मक्कार और निकम्मे अधिकारियों को संस्था से बाहर कर निष्ठावान कर्मचारियों को सम्मान दे तो आज भी संस्था संभल सकती है। भले ही सहारा प्रबंधन से मेरा वैचारिक विरोध हो पर आज भी संस्था से मेरा विशेष लगाव है। यदि आज भी संस्था पहले की तरह फलती-फूलती है तो मुझे भी खुशी होगी।
यदि आज की तारीख में उपेंद्र राय इस हैसियत में हैं तो सहारा मीडिया में कार्यरत अधिकारियों की संपत्ति की जांच करा सकें तो समझ में आ जाएगा कि इन लोगों ने संस्था को कैसे दोनों हाथों से लूटा है। उपेंद्र राय पर भी तरह-तरह के आरोप हैं पर उनके बारे में जो मेरी जानकारी है वह एक अच्छे दिल के आदमी हैं। अभाव में संघर्ष कर आगे बढ़ने की वजह से उनके भी काफी दुश्मन हैं। यदि कोई व्यक्ति अभाव में संघर्ष करके आगे पहुंचता है तो उसमें कितनी भी खामियां हों पर कुछ न कुछ ऐसी अच्छाई जरूर होती हैं जिनके बल पर वह अपने विरोधी को मात देकर आगे बढ़ता है। उपेंद्र राय को भी सहारा में काफी विश्वासघात का सामना करना पड़ा है।
हां उपेद्र राय ने जिस तरह से सहारा चैनल और राष्ट्रीय सहारा में पुराने और योग्य साथियों को सम्मान दिया है, उसके लिए मैं उनकी सराहना करूंगा। विशेष कर पटना में चंदन भाई को उन्होंने संपादक बनाकर एक अच्छा काम किया है। यदि राष्ट्रीय सहारा में भी पुराने और योग्य साथियों को उपेंद्र राय आगे ले आएं तो निश्चित रूप से सहारा मीडिया बुलंदी छुएगा ऐसा मेरा मानना है।
इस लेख में मैं यह भी स्पष्ट कर दूं कि हम लोग अपने मान-सम्मान और अधिकार की जो लड़ाई सहारा मीडिया प्रबंधन से सड़क से लेकर कोर्ट तक लड़ रहे हैं, वह ऐसे ही लड़ते रहेंगे। हमें प्रबंधन की कोई सहानुभूति नहीं चाहिए। हां लड़कर एक बार अपने वजूद का एहसास सहारा प्रबंधन को जरूर कराएंगे।
मूल खबर-
साथियों सुनने में आ रहा है कि सहारा मीडिया के सीईओ उपेद्र राय ने सहारा मीडिया के कुछ अधिकारियों पर शिकंजा कसा है। कुछ को नौकरी से भी निकालने की खबर आ रही है। मेरा उपेंद्र राय से कोई खास वास्ता सहारा में नहीं पड़ा है हां इतना जरूर कह सकता हूं कि जिन अधिकारियों पर उन्होंने गाज गिराई है वे निश्चित रूप से दीमक की तरह संस्था को चाटते रहे हैं।
संस्था में भले ही अव्वल दर्जे की मक्कारी होती रही है पर काफी लोग अच्छे भी रहे हैं। हालांकि उपेंद्र राय ने भी सहारा में एक परिपाटी शुरू की कि संस्था से जल्द कोई निकाला नहीं जाता था सहार मीडिया में बिना किसी नोटिस के कर्मचारियों को निकालने की शुरुआत उपेंद्र राय ने ही की थी। हां इस प्रकरण से यह जरूर कहा जा सकता है कि चलो अब संस्था को यह तो पता चला कि अधिकारी वर्ग कैसे संस्था को दीमक की तरह चाट रहा था, नहीं तो सहारा में तो कर्मचारियों पर ही गाज गिरती रही है।
सुनने में आ रहा है कि चीफ फाइनेंसियल ऑफिसर महेश चंद्र लोहानी को पत्र जारी कर इनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं। ऐसे कही महाशय सहारा में हैं जो दोनों हाथों से संस्था को लूट रहे हैं और कर्मचारी बेचारे ठगे जा रहे हैं। किसी का नाम लेने में मेरी दिलचस्पी नहीं है पर जिन गौतम सरकार पर गाज गिरी है ये वही महाशय हैं, जिन्होंने पांच महीने का बकाया वेतन व मजीठिया वेज बोर्ड की मांग करने पर 22 पुराने मीडियाकर्मियों की नौकरी ले ली थी। हां सहारा मीडिया में शायद पहली बार वरिष्ठों पर इस तरह से गाज गिर रही है। हालांकि सहारा में गाज गिरना और फिर से बुलाने की परंपरा पुरानी है।
यदि यह लेख उपेंद्र राय पढ़ें तो मैं यही कहना चाहूंगा कि जो भी हम लोग सहारा मीडिया में आंदोलन कर रहे थे हमारी लड़ाई इन वरिष्ठों के खिलाफ ही थे, जो संस्था को दीमक की तरह चाट रहे हैं। हमारा मकसद भी इन जैसे मक्कारों को संस्था से बाहर निकलवाना था। यदि आज भी संस्था मक्कार और निकम्मे अधिकारियों को संस्था से बाहर कर निष्ठावान कर्मचारियों को सम्मान दे तो आज भी संस्था संभल सकती है। भले ही सहारा प्रबंधन से मेरा वैचारिक विरोध हो पर आज भी संस्था से मेरा विशेष लगाव है। यदि आज भी संस्था पहले की तरह फलती-फूलती है तो मुझे भी खुशी होगी।
यदि आज की तारीख में उपेंद्र राय इस हैसियत में हैं तो सहारा मीडिया में कार्यरत अधिकारियों की संपत्ति की जांच करा सकें तो समझ में आ जाएगा कि इन लोगों ने संस्था को कैसे दोनों हाथों से लूटा है। उपेंद्र राय पर भी तरह-तरह के आरोप हैं पर उनके बारे में जो मेरी जानकारी है वह एक अच्छे दिल के आदमी हैं। अभाव में संघर्ष कर आगे बढ़ने की वजह से उनके भी काफी दुश्मन हैं। यदि कोई व्यक्ति अभाव में संघर्ष करके आगे पहुंचता है तो उसमें कितनी भी खामियां हों पर कुछ न कुछ ऐसी अच्छाई जरूर होती हैं जिनके बल पर वह अपने विरोधी को मात देकर आगे बढ़ता है। उपेंद्र राय को भी सहारा में काफी विश्वासघात का सामना करना पड़ा है।
हां उपेद्र राय ने जिस तरह से सहारा चैनल और राष्ट्रीय सहारा में पुराने और योग्य साथियों को सम्मान दिया है, उसके लिए मैं उनकी सराहना करूंगा। विशेष कर पटना में चंदन भाई को उन्होंने संपादक बनाकर एक अच्छा काम किया है। यदि राष्ट्रीय सहारा में भी पुराने और योग्य साथियों को उपेंद्र राय आगे ले आएं तो निश्चित रूप से सहारा मीडिया बुलंदी छुएगा ऐसा मेरा मानना है।
इस लेख में मैं यह भी स्पष्ट कर दूं कि हम लोग अपने मान-सम्मान और अधिकार की जो लड़ाई सहारा मीडिया प्रबंधन से सड़क से लेकर कोर्ट तक लड़ रहे हैं, वह ऐसे ही लड़ते रहेंगे। हमें प्रबंधन की कोई सहानुभूति नहीं चाहिए। हां लड़कर एक बार अपने वजूद का एहसास सहारा प्रबंधन को जरूर कराएंगे।
मूल खबर-
Very good
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