13.7.20

सबको पता है कौन-कौन थे विकास के ‘गाड फादर्स’, ईमानदारी से जांच हुई तो फंसेंगे कई सफेदपोश

अजय कुमार, लखनऊ

कानपुर में दबिश पर गए आठ पुलिस वालों का हत्यारा गैंगेस्टर विकास दुबे के एनकांउटर में मारे जाने के बाद राजनीति के गलियारों में एक नई तरह की बहस छिड़ गई है कि विकास की मौत के साथ ही कई ‘राज’ भी दफन हो गए हैं। यह बहस वह नेता ज्यादा छेड़े हुए हैं जो पहले आरोप लगा रहे थे कि योगी पुलिस द्वारा विकास को आत्मसमर्पण का पूरा मौका दिया गया। पुलिस ने दुर्दांत गैंगेस्टर को मुठभेड़ में मार क्यों नहीं गिराया। इन्हीं नेताओं द्वारा अब कहा जा रहा है कि विकास जिंदा रहता तो कई रहस्यों से पर्दा उठ जाता।

योगी सरकार के अनेक मंत्री और भाजपा नेता ‘बेनकाब’ हो जाते। पूरी दुनिया को पता चल जाता कि विकास के किस-किस के साथ उसके संबंध थे। उसके कौन-कौन से नेता और पुलिस वाले संरक्षण देते थे। आरोप लगाने वालों में भाजपा, कांग्रेस से लेकर सपा-बसपा तक कोई पीछे नहीं है। मीडिया के एक धड़े को भी ऐसा ही लगता है कि विकास दुबे की मौत के चलते कई ऐसे सफेदपोश अपराधी और खाकी वर्दी वाले बच जाएंगे जो विकास के राजनीति और अपराध के गठजोड़ में बराबर के हिस्सेदार थे। यह बहस किस अंधी सुरंग में जाकर खत्म होगी, कोई नहीं जानता, क्योंकि इसके पीछे के तर्क उतने ही खोखले हैं जितनी खोखले यह हकीकत है कि किसी को पता ही नहीं है कि विकास को कौन ‘पाल-पोस’ रहा था। सबको पता है कि कौन-कौन सा नेता और वर्दी वाला गैंगेस्टर विकास का ‘गाड फादर्स’ हुआ करते थे।

विकास को किसने आगे बढ़ाया, किसने उसके अपराध पर पर्दा डलवाने का काम किया, यह बात योगी सरकार से लेकर पूर्व मुख्यमंत्रियों मायावती-अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा किसी से छिपी नहीं है। 35 वर्षों से विकास दुबे दबंगई कर रहा था। चुनाव जीतने के लिए नेता उसकी चौखट पर नाक रगड़ा करते थे। कौन-कौन नेता विकास से मदद लेता था, इसके वीडियो भी हैं और फोटोग्राफ्स भी मौजूद हैं। विकास और उसके गुर्ग अक्सर ऐसी फोटो को सार्वजनिक किया करते थे, जिससे लोग उसकी ताकत से खौफ खाएं।

कहने का तात्पर्य यह है कि विकास के जिंदा रहने या फिर मारे जाने से ऐसा कुछ नहीं होगा जिससे यह पता ही नहीं चल पाएगा कि विकास को किस-किस का वरदहस्त हासिल था। अगर जांच ईमानदारी से हुई तो सभी राज खुल जाएंगे। इतने सबूत और साक्ष्य समाज से लेकर न्यूज मीडिया और सोशल मीडिया तक पर मौजूद हैं। विकास का जितना पुराना राजनैतिक इतिहास है, उससे पुराना आपराधिक इतिहास था। वह वोटों का सौदागार था। इसलिए सभी दलों के नेता उसके यहां लाइन लगाते थे। विकास दुबे लम्बे समय तक सपा-बसपा में रहा। चुनाव लड़ा और जीता भी। अब अगर मायावती या अखिलेश यादव यह कहें कि विकास का ‘इतिहास-भूगोल’ उन्हें पता नहीं था तो यह झूठ कोई बर्दाश्त नहीं करेगा। फिर करीब 12-14 घंटे तक विकास दुबे एसटीएफ के साथ भी रहा था, इस दौरान एसटीएफ ने विकास की आरती तो नहीं उतारी होगी। विकास के मारे जाने के बाद वह लोग भी मुंह खोल रहे हैं जो डर के मारे विकास के गुनाहों के खिलाफ आवाज नहीं उठा पा रहे थे।

गौरतलब हो, मुठभेड़ में मारे गए विकास के कई वीडियो वायरल हो रहे हैं जिनमें वह यूपी में सत्तारूढ़  कई बड़े नेताओं के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों की बात कर रहा है। उसके साथ गलबहियां डाले नेताओं की तस्वीरें भी वायरल हैं। इन नेताओं को सामने आकर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए कि इतने बड़े अपराधी के साथ उनके इतने अंतरंग रिश्ते कैसे बन गए? क्या उन्हें सचमुच यह जानकारी नहीं थी कि इस अपराधी ने थाने के भीतर हत्या की थी। विकास दुबे पहला अपराधी नहीं, जिसे प्रदेश की पुलिस और राजनीति का संरक्षण मिला। बेशर्म सियासत के चलते कई अपराधी सांसद, विधायक एवं पंचायतों में चुन कर पहुंच जाते हैं।

नेता ही नहीं सवाल जनता के सामने भी है कि क्यों उसके वोट किसी माफिया के पक्ष में पड़ जाते हैं? क्यों विकास जैसा बदमाश किसी जाति विशेष को नेता होने का दंभ भरने लगता? विकास के मुठभेड़ में मारे जाने के संदर्भ में बसपा सुप्रीमो मायावती का 12 जुलाई 2020 को किया गया वह ट्वीट काफी खेदजनक लगता है जिसमें वह लिखती हैं कि कानपुर कांड के अपराधी विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद ब्राह्मण समाज खुद को भयभीत और असुरक्षित महसूस कर रहा है। मायावती ने एक के बाद एक तीन ट्वीट कर योगी सरकार को आड़े हाथों लिया। एक अन्य ट्वीट में मायावती ने लिखा ’किसी गलत व्यक्ति के अपराध की सजा के तौर पर उसके पूरे समाज को प्रताड़ित व कटघरे में नहीं खड़ा करना चाहिए। इसीलिए कानपुर पुलिस हत्याकाण्ड के दुर्दान्त विकास दुबे व उसके गुर्गों के जुर्म को लेकर उसके समाज में भय व आतंक की जो चर्चा गर्म है उसे दूर करना चाहिए।’

मायावती ने आगे लिखा, ’साथ ही यूपी सरकार अब खासकर विकास दुबे-काण्ड की आड़ में राजनीति नहीं बल्कि इस सम्बंध में जनविश्वास की बहाली हेतु मजबूत तथ्यों के आधार पर ही कार्रवाई करे तो बेहतर है। सरकार ऐसा कोई काम नहीं करे जिससे अब ब्राह्मण समाज भी यहाँ अपने आपको भयभीत, आतंकित व असुरक्षित महसूस करे।’

मायवती ने योगी सरकार पर निशाना साधते हुए लिखा कि यूपी में आपराधिक तत्वों के विरूद्ध अभियान की आड़ में छांटछांट कर दलित, पिछड़े व मुस्लिम समाज के लोगों को निशाना बनाना, काफी कुछ राजनीति से प्रेरित लगता है जबकि सरकार को इन सब मामलों में पूरे तौर पर निष्पक्ष व ईमानदार होना चाहिए, तभी प्रदेश अपराध-मुक्त होगा।’ मायावती की अपनी सियासी मजबूरियां हो सकती हैं,लेकिन संभवता ब्राह्मण समाज भी यह बात बर्दाश्त नहीं करेगा कि विकास दुबे को ब्राह्मण का रक्षा कवच पहनाया जाए।

बसपा सुप्रीमों मायावती ही नहीं कांग्रेसी नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री जितिन प्रसाद भी ब्राह्मण समाज की सियासत कें पीछे नहीं है। विकास दुबे और उसके गुर्गो की मुठभेड़ में हुई मौत को जितिन ने योगी राज में ब्राह्मणों पर हो रहे अत्यााचार से जोड़ दिया है। कल तक जो जितिन प्रसाद इस बात से दुखी थे कि उन्हें पार्टी में साइड लाइन किया जा रहा है, वही जितिन प्रसाद गैंगेस्टर विकास दुबे और अन्य कुछ जिलों में ब्राह्मण समाज की लोगों की हत्याओं पर सवाल खड़ा करके ब्राह्मण वोटों के सौदागर बनने को झटपटा रहे हैं।

खैर,विकास दुबे की मौत पर सवाल खड़े करने वाले नेताओं को जनता की नब्ज को पहचानना होगा, वर्ना ऐसे अनाप-शनाप मुद्दों को हवा देकर वह  सियासत में आगे बढ़ने की बजाए और पीछे जा सकते हैं क्योंकि जनता सब जानती है।  विकास उस दर्जे का दुर्दांत अपराधी था जिसके एनकाउंटर में सवाल उठाने वालों को निराशा ही हाथ लगेगी,जनता भी जानती है कि विकास के मुठभेड़ में मारे जाने से हर वह नेता राहत महसूस कर रहा है जिसको इस बात का डर सता रहा था कि कहीं विकास उसका नाम न ले दे,लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि विकास की मुठभेड में मौत पर उठने वाले सवालों को योगी सरकार आसानी से नजरअंदाज कर पाएंगी। इसी लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने के लिए स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम गठित की है जो 31 जुलाई तक अपनी रिपोर्ट देगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह टीम कुछ ऐसी संस्तुतियां जरूर करेगी जिन पर अमल करके भविष्य में कोई नया विकास दुबे तैयार नहीं हो पाएगा।

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