अलवर (राजस्थान) : आज नोबल्स स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामगढ़, अलवर (राज ऋषि भर्तृहरि मत्स्य विश्वविद्यालय, अलवर से सम्बद्ध) एवं भर्तृहरि टाइम्स, पाक्षिक समाचार पत्र, अलवर के संयुक्त तत्त्वाधान में स्वरचित काव्यपाठ/मूल्यांकन ई-संगोष्ठी श्रृंखला का आयोजन किया गया। जिसका ‘विषय : समसामयिक मुद्दे’ था।
इस संगोष्ठी में देश भर से 17 युवा कवि-कवयित्रियों ने भाग लिया। इस संगोष्ठी में मूल्यांकनकर्ता वरिष्ठ काव्य-मर्मज्ञ/साहित्यालोचक कृष्ण कल्पित सर मौजूद रहे। कार्यक्रम की शुरुआत में डॉ. सर्वेश जैन मैम (प्राचार्य, नोबल्स स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामगढ़, अलवर) ने अतिथि, कवि-कवयित्रियों, सहभागिता और श्रोताओं का स्वागत किया। काव्य पाठ के उपरांत कृष्ण कल्पित सर ने सभी युवा कवि-कवयित्रियों की कविताओं का मूल्यांकन करते हुए अपनी टिप्पणी में कहा कि यह ई-संगोष्ठी ने अखिल भारतीय काव्य पाठ का रूप ले लिया है। सच्ची भावनाओं से अगर कविताएँ लिखी जाए तो कविताएँ अच्छी होती है। अधिकतर कविताओं में कोरोना की छाप देखने को मिलती है। कविता समय और काल को भी दर्शाती है।
रंगभेद, भाषा, अभिव्यक्ति, कविता में इशारे से बातें कहीं जाती हैं। ज्यादा कहने से उसका प्रभाव कम हो जाता है। कविताएँ हमें सचेत करती हैं, कविता में झूठ नहीं चलता है वह पता चल ही जाता है। नए कवि-कवयित्रियों को समकालीन कवियों के बारे में भी पता होना चाहिए। इस संगोष्ठी में हिंदी, मराठी, बांग्ला और असमिया भाषा में कविताएँ प्रस्तुत की गई। इस संगोष्ठी का संचालन करते हुए कादम्बरी (संपादक, भर्तृहरि टाइम्स, पाक्षिक समाचार पत्र, अलवर) ने कहा कि कविता भावों और विचारों को व्यक्त करने का निजी साधन है।
यह व्यक्ति के अन्दुरूनी सोच और समझ को कविता के माध्यम से व्यक्त करता है। काव्य पाठ करने वालों में रजनीश कुमार अम्बेडकर (वर्धा-महाराष्ट्र) ने महिला और लॉकडाउन, आकांक्षा कुरील (वर्धा-महाराष्ट्र) ने कोरोना और लॉकडाउन, मंजू आर्या (दिल्ली) ने आज सब घड़ी पर टकटकी लगाए बैठे हैं, दीपिका शुक्ला (रीवा-मध्य प्रदेश) ने लाचार गरिमा, सुषमा पाखरे (वर्धा-महाराष्ट्र) ने मुझे इंसान समझो ही मत/विकृति, नीरज कुमार (मुंबई) ने कोई अमर नहीं/अमरीका में जार्ज फ्लायड की मौत पर, अल्पना शर्मा (राजस्थान) ने नारी विविधा, विकास कुमार (मुजफ्फरपुर-बिहार) ने कैरियर की गारंटी/सर्टिफिकेट, जेडी राना (अलवर) ने सुनो एकता कपूर, जोनाली बरुवा (असम) ने वक्त ही तो है, अनुराधा (अरुणाचल) ने प्रेम में लड़कियां/बरगद का पेड़, मुकेश जैन (राजस्थान) ने पृथ्वी की व्यथा, संध्या राज मेहता (ठाणे-महाराष्ट्र) ने गर उलझी है जिंदगी पर अनमोल है जिंदगी, आशीष कुमार तिवारी (अलीगढ़) ने लोह-तर्पण/एक मकड़-व्यवस्था, कमलेश भट्टाचार्य (असम) ने माँ, रेखा रानी कपूर (दिल्ली) ने मानव की उड़ान और शोभा रानी श्रीवास्तव (फरुखाबाद-यूपी) ने उपभोगतावादी संस्कृति पर कविताएँ पढ़ी। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मंजू (सहायक प्राध्यापक, नोबल्स स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामगढ़, अलवर) ने किया।
प्रस्तुति-
रजनीश कुमार अम्बेडकर
पीएचडी, रिसर्च स्कॉलर, स्त्री अध्ययन विभाग
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)
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