31.7.20

मुंशी प्रेमचंद - जो आज भी मौजूं हैं

संजय सक्सेना, लखनऊ

आज (जन्म 31 जुलाई 1880- मृत्यु 08 अक्टूबर 1936) मुंशी प्रेमचंद की जयंती है। पूरा देश उन्हें याद करके हार्दिक नमन कर रहा है। यही वह ‘विरासत’ है जो मुंशी प्रेमचंद की जिंदगी भर की कमाई थी। वर्ना कितने ‘प्रेमचंद’ आए और चले गए किसी का पता ही नहीं चला। हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार, विचारक एवं पत्रकार मुंशी प्रेमचंद किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। आप हिन्दी-उर्दू साहित्यकार के ‘हस्ताक्षर’ थ,े हैं और हमेशा रहेंगे। मुंशी का बचपन कठिनाइयों से जरूर बीता था,लेकिन यह कठिनाइयां मंुशी जी का हौसला तोड़ने की बजाए बढ़ाने को मजबूर हो गईं। ऐसा था प्रेमचंद जी का व्यक्तित्व। जब आप बालिग भी नहीं हुए थे तब ही 15 वर्ष की उम्र में आपका विवाह करा दिया गया,जो ज्यादा लम्बा नहीं चल सका। 1906 में आपका दूसरा विवाह शिवरानी देवी से हुआ जो बाल-विधवा थीं। शिवरानी सुशिक्षित महिला थीं, जिन्होंने कुछ कहानियाँ और ‘प्रेमचंद घर में’ शीर्षक पुस्तक भी लिखी। उनकी तीन संताने हुईं-श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव। 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। प्रेमचंद ने 1910 में अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर किया और 1919 में अंग्रेजी, फारसी और इतिहास लेकर बी. ए. किया।1919 में बी.ए पास करने के बाद वे शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।

बात प्रेमचंद के जन्म स्थान की कि जाए तो आपका जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी  वाराणसी के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। आपकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फारसी में हुई। आपने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिंदी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं।

प्रेमचंद ने 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी के सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्वान पर स्कूल इंस्पेक्टर पद से 23 जून को त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद आपने लेखन को अपना व्यवसाय बना लिया। मर्यादा, माधुरी आदि पत्रिकाओं में वे संपादक पद पर कार्यरत रहे। 1922 में आपने बेदखली की समस्या पर आधारित ‘प्रेमाश्रम’ उपन्यास प्रकाशित किया। 1925 में आपने रंगभूमि नामक वृहद उपन्यास लिखा। 1926-1927 के दौरान आपने महादेवी वर्मा द्वारा संपादित हिंदी मासिक पत्रिका ‘चाँद’ के लिए धारावाहिक उपन्यास के रूप में निर्मला की रचना की। इसके बाद कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि और गोदान जैसी समकालीन कहानियों की रचना की। 1930 में आपने में बनारस से अपना मासिक पत्रिका ‘हंस’ का प्रकाशन शुरू किया। 1932 में आपने हिंदी साप्ताहिक पत्र जागरण का प्रकाशन आरंभ किया।

आपने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिंदी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। आपने हिंदी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए प्रेकचंद ने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बंद करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबंध, साहित्य का उद्देश्य अंतिम व्याख्यान, कफन अंतिम कहानी, गोदान अंतिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अंतिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है। 1906 से 1936 के बीच लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य इन तीस वर्षों का सामाजिक सांस्कृतिक दस्तावेज है। इसमें उस दौर के समाज सुधार आंदोलनों, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आंदोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है। उनमें दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह, आधुनिकता, स्त्री-पुरुष समानता, आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद उनके साहित्य की मुख्य विशेषता है। हिंदी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखंड को ‘प्रेमचंद युग’ कहा जाता है।

कलम के जादूगर प्रेमचंद सिर्फ कहानियां ही नहीं लिखते थे बल्कि वे एक फिल्म की स्क्रिप्ट भी लिख चुके हैं.साल 1934 में रिलीज हुई इस फिल्म का नाम मिल (मजदूर) था. इस फिल्म को मोहन भवनानी ने डायरेक्ट किया था और इस ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म को मुंबई की अंजता सिनेटोन ने प्रोड्यूस किया था. इस फिल्म की कहानी को प्रेमचंद ने लिखा था. खास बात ये है कि उन्होंने इस फिल्म में छोटी सी भूमिका भी निभाई थी. ये फिल्म दरअसल एक मील के मालिक के बारे में है. ये इंसान काफी उदार और दयालु होता है लेकिन उसका बेटा उसके उलट निकलता है. वो काफी पैसे उड़ाने वाला होता है और मील के कर्मचारियों के साथ गलत ढंग से पेश भी आता है।

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