9.7.20

चीन का बहिष्कार सिर्फ जनता और सरकार नहीं, मीडिया भी करे

प्रेम शंकर

गलवान घाटी में चीनियों के साथ संघर्ष के बाद देशभर में गुस्सा उबल रहा है। इस घटना के बाद चीनी सामानों के बहिष्कार को लेकर लोग सड़कों पर उतरे। केंद्र सरकार ने भी चीनी मोबाइल एप्लीकेशंस पर बैन लगा दिया। लेकिन महज एप्स पर बैन, चंद प्रयासों और सड़कों पर विरोध प्रदर्शन चीनी सामनों को देशनिकाला के लिए नाकाफी हैं।

इसके लिए सरकार के आलावा उपभोक्ता, भारतीय बाजार, पूंजीपतियों, उद्यमियों के साथ मीडिया को सामूहिक व्यापक निर्णय और संकल्प लेने होंगे। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) कैट ने दिस्मबर 2021 तक चीन से इस समय हो रहे आयात बिल में से 13 बिलियन डॉलर यानी लगभग 1 लाख करोड़ रुपये के आयत को कम करने का संकल्प लिया है। इस समय चीन में बने सामानों का भारत में हर साल करीब 70 बिलियन डॉलर यानी 5.25 लाख करोड़ रुपये का आयात किया जाता है। चीनी विज्ञापनों के बहिष्कार की भी आवाज उठी।

कैट ने सिनेमा और खेल की बड़ी हस्तियों को जारी एक खुले पत्र में देश हित में आगे आने और चीनी उत्पादों के विज्ञापन नहीं करने की अपील की है। कैट ने अपने राष्ट्रीय आंदोलन "भारतीय सम्मान-हमारा अभिमान" के तहत चीनी उत्पादों के बहिष्कार में शामिल होने का न्योता दिया है। बावजूद अभी चीनी सामानों के बहिष्कार को धार नहीं मिला है। जबतक चीनी ब्रांडों के विज्ञापनों की घर-घर तक पहुंच बनी रहेगी, उपभोक्ताओं और बाजार से बहिष्कार की अपेक्षा बेमानी है। हीरो साइकिल ने चीन से पार्ट्स नहीं खरीदने का निर्णय लेकर  900 करोड़ के ऑर्डर रद्द कर भारतीय उद्यमियों-कंपनियों के लिए नजीर पेश किया है।

लेकिन, दूसरी तरफ आईपीएल में चीन की मोबाइल कम्पनी ‘विवो’ से स्पोंसरशिप करार फिलहाल खत्म नहीं करने के बीसीसीआई के संकेत से बहिष्कार की मुहिम को झटका लगा है। गौरतलब है कि चीनी मोबाइल कम्पनी विवो आईपीएल में टाइटल स्पोंसर है। इसका बीसीसीआई से किया हुआ पांच साल का करार 2022 में खत्म होगा। बीसीसीआई का तर्क है कि विवो से सालाना 440 करोड़ रूपये मिलते हैं और ब्रांड प्रमोशन के लिए हम भारत सरकार को 42 फीसदी कर दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन के मोबाइल भारत में बेचने की अनुमति है ऐसे में करार से भारत को ही पैसे मिल रहे हैं।

यहाँ समझना जरूरी है कि विवो या अन्य किसी भी चायनीज कम्पनी को कोई फायदा नहीं होगा तो वे बीसीसीआई से करार क्यों करेंगे? उनके ब्रांड का जोर-शोर से प्रमोशन आईपीएल मैचों के विज्ञापनों में होता है। इससे कम्पनी की खरीद में इजाफा होता है। इस मुनाफे की राशि से चीन को ही फायदा होता है। बीसीसीआई ने भारत सरकार को टैक्स चुकाने की बात कही है तो वह चीन की कम्पनी से करार से पहले भी देना पड़ता होगा। ब्रांड के प्रचार से सेल बढ़ती है और कम्पनी बेहतरीन तरीके से स्थापित होती है। इसके लिए मीडिया के पहल की जरूरत महसूस हो रही है।

अखबार, न्यूज़ चैनल्स, सोशल मीडिया सभी प्लेटफार्म चीनी ब्रांडों के विज्ञापनों को नकार दें और छापने तथा दिखाने पर रोक लगा दें तब चीनी कम्पनियां स्वतः अपना पैर पीछे खींचने लगेंगी। मीडिया हाउस अपने स्तर से प्रचारित करें कि वे चीनी ब्रांड का प्रचार नहीं करेंगे, क्योंकि यह लड़ाई देश के लिए इसमें अगर सभी मीडिया हाउस,  अखबार, टीवी चैनल, सभी शोशल मीडिया प्लेटफॉर्म चीनी वस्तुओं का विज्ञापन नहीं कर तो  चीनी कंपनियों को बड़ा झटका लग्न तय है। क्योंकि, बाजार से उपभोक्ताओं तक उत्पादों की पहुंच के लिए विज्ञापन सशक्त माध्यम होता है। जब उपभोक्ताओं को उत्पादों की जानकारी नहीं मिलेगी, तो वे उसे खरीदने में दिलचस्पी नहीं लेंगे। प्रचार माध्यमों से जिन उत्पादों को बाजार में छाने की चीनी कंपनिया कोशिश करें उसके वैकल्पिक देश में उत्पादित सामानों का यहां की कम्पनियां प्रचारित करें।

सरकार और भारतीय कंपनियों को ऐसे मीडिया हाउस को प्रोत्साहन की रणनीति बनानी चाहिए। ताकि मीडिया हाउस पर इसका असर नहीं पड़े। इसकी शुरुआत हम खुद अपने मीडिया हाउस से करते हैं। बीसीसीआई का तर्क बहुत प्रभावी नहीं माना जा सकता। ऐसा नहीं है कि भारत में स्पोंसर नहीं मिलेंगे या ‘विवो’ काविकल्प नहीं है। बीसीसीआई को ‘विवो’ के विकल्प के रूप में कोरियन की मोबाइल कम्पनी ‘सैमसंग’ या भारतीय कंपनी ‘रिलायंस’ को एप्रोच करना चाहिए। देश के बड़े उद्योगपति अम्बानी, अडानी सहित देश के बड़े घरानों को भी इसके लिए आगे आना चाहिए.

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