निरंजन परिहार
अनिल देशमुख को माफ कर दीजिए। उन्हें नहीं पता है कि कंगना रणौत के बयान पर प्रतिबयान से उनको क्या मिला। देशमुख बड़े आदमी हैं। महाराष्ट्र के गृह मंत्री हैं। शरद पवार की मेहरबानी से पूरे प्रदेश की प्रजा की रक्षा, सुरक्षा और संरक्षा की जिम्मेदारी उनके कंधों पर है। एक जिम्मेदार मंत्री के नाते चुप रहना चाहिए था। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी कहां बोल रहे हैं, चुप ही हैं न। सो, देशमुख भी चुप रह लेते, तो कौनसा उनका मंत्री पद चला जाता। देशमुख ने कंगना के बयानों पर सख़्त टिप्पणी की है। वे बोले कि ऐसे किसी भी व्यक्ति को मुंबई में रहने का अधिकार नहीं है, जिसे लगता है कि वो मुंबई में सुरक्षित नहीं है।
ये वही अनिल देशमुख हैं, जो उस वक्त मुंह सिलवाकर बैठे थे, जब आमिर खान ने डर लगने की बात कही थी। और, उस वक्त भी उनकी जबान दर्द कर रही थी, जब नसीरुद्दीन शाह ने भी ऐसा ही कुछ कहा था। पूरा देश आमिर और नसीरुद्दीन की बातों को राष्ट्र विरोधी बता रहा था, लेकिन देशमुख को सांप सूंघ गया हुआ था। और अब बड़े तैश में आकर एक अकेली युवती कंगना रणौत के खिलाफ खुलतर बोल रहे हैं। कंगना अकेली है। मुंबई में उनका कोई नहीं है। लेकिन यहां मुंबई में किसी एक लड़की का अकेला अपने दम पर खड़े हो जाना मूल विषय नही है। मूल विषय है हमारी राजनीति में छिपी वह धारणा और हर घटना के पीछे अपने वोटों को झोली भरने की कल्पनाओं को आकार देने वाली वह भावना, जिसकी वजह से कंगना रणौत जैसी जीती जीगती प्रतिभासंपन्न अभिनेत्री भी किसी दुर्भाग्यवश मरे सुशांत सिंह की तरह ही एक धारावाहिक कथा जैसी बना दी जाती है।
वैसे, इस सत्य और तथ्य दोनों को देशमुख अच्छी तरह जानते है कि आज के समाज में नेताओं, मंत्रियों और राजनीतिक दलों की बातों की समाज जूते जितनी भी कदर नहीं करता। फिर भी देशमुख ने कंगना द्वारा मुंबई पुलिस के बारे में कही बातों की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि हमारी पुलिस बहादुर है और वो ड्यूटी निभाने और कानून व्यवस्था का पालन करवाने में सक्षम है। जिसे भी महसूस होता है कि वो यहां सुरक्षित नहीं, उसे यहां रहने का कोई हक़ नहीं है। अपनी इस बात के साथ देशमुख अगर यह भी कह देते कि पुलिस विभाग के मुखिया के नाते ऐसा कहना उनकी मजबूरी है, तो ज्यादा उचित होता। जनता भी मजबूर लोगों को वैसे भी माफ कर ही देती है। हालांकि पालघर में साधुओं की हत्या के मामले में अनिल देशमुख की पुलिस की बहादुरी, कर्तव्य परायणता और कानून व्यवस्था का पालन करवाने की क्षमता का देश गवाह है। लेकिन जिस कंगना रणौत का मुंबई में अपना कोई नहीं, उसकी तो सरकार ही रक्षक है। फिर भी रक्षा करनेवालों का मुखिया ही ऐसा कहे, तो उसका क्या किया जाए।
बात जहां से शुरू हुई ती, वह मामला कुछ यूं है कि कंगना ने ट्वीटर पर लिखा था - एक बड़े स्टार के मारे जाने के बाद मैंने ड्रग और फ़िल्म माफ़िया के रैकेट के बारे में आवाज़ उठाई। मैं मुंबई पुलिस पर भरोसा नहीं करती। क्योंकि उन्होंने सुशांत सिंह राजपूत की शिकायत को नज़रअंदाज़ किया था। कंगना ने सबसे कहा था कि वो लोग उसे मार देंगे, बावजूद इसके उन्हें मार दिया गया। मैं असुरक्षित महसूस करती हूं, क्या इसका ये मतलब है कि मैं फ़िल्म इंडस्ट्री या मुंबई से नफ़रत करती हूं। कंगना के जवाब में शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि कंगना को अगर मुंबई पुलिस से डर लगता है तो वो मुंबई ना आएं। तो कंगना ने जवाब दिया – ‘संजय राउत ने मुझे खुले में धमकी दी है और मुंबई नहीं आने को कहा है, मुंबई की गलियों में आज़ादी ग्रैफिटी और अब खुली धमकी, मुंबई पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर जैसी फ़ीलिंग क्यों दे रहा है?’ मुंबई की तुलना पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से किए जाने के बाद सोशल मीडिया पर बहुत सारी प्रतिक्रियाएँ आने लगीं। तो, महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख भी मैदान में कूद पड़े।
देश ड्रग्स की नशीली फिजाओं में तैरते भोगविलास में डूबे फिल्म जगतवाले तो कंगना के खिलाफ खड़े हो ही गए हैं, शिवसेना के साथ साथ उसके सांसद संजय राउत भी उबल रहे हैं। महाराष्ट्र के गृह मंत्री देशमुख भी राऊत की कतार में लग गए हैं। इस बीच, कंगना ने कहा है कि वह 9 सितंबर को मुंबई लौट रही हैं। दुनिया देखेगी और अपन भी देखेंगे कि उस दिन सीन क्या बनता है। लेकिन ताजा तस्वीर यह है कि राजनीति की विकृत कल्पनाओं में एक उभरते सितारे की मौत मनोरंजन का पर्याय बन कर जीवित हो रही है। इस त्रासदी मे भी तृप्ति का स्वाद खोजने की कोशिश में अनिल देशमुख भी तीखे तेवर दिखाने की तल्लीनता में संजय राऊत के मुकाबले टीवी की टीआरपी में आगे निकलने की फिराक में है। वैसे, संजय राउत तो हैं ही बोलने के लिए, वे विषय की विशालता को विस्तार देने की रणनीति के तहत तोल मोल कर बोलते है, ताकि मामला हर हाल में शिवसेना के पाले में बना रहे। लेकिन अनिल देशमुख, आप तो प्रजा के पालन के लिए सरकार में रखे गए हैं, समाज की सुरक्षा के लिए और सबकी संरक्षा के लिए गृह मंत्री हैं। आप कोई बोलने के लिए थोड़े ही रखे गए हैं, सो चुप ही रहिए न!
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
No comments:
Post a Comment