14.9.20

साक्षात्कार के बदलते मायने

vijay kumar
 
बचपन से ही लेखन का शौक रखने और पत्रकारों के रुतबे को देखते हुए मुझे पत्रकारिता में अपना भविष्य नजर आने लगा। इसलिए मैंने कानपुर विश्वविद्यालय से अच्छे अंकों में पत्रकारिता की डिग्री ली। एक वरिष्ठ पत्रकार ने सुझाया कि दूरदर्शन से इंटर्नशिप करने के बाद आपको काफी अवसर मिलेंगे। मैंने उनकी बात मानकर इंटर्नशिप पूरी की और फिर निकल पड़ा नौकरी की तलाश में। शायद ही कोई चैनल और समाचार पत्र बचा होगा जहाँ मैंने अपना जीवनवृत्त (बायोडाटा) न दिया हो। संस्थान के गेट पर पहुंचते ही सिक्यूरिटी गार्ड ने ही साक्षात्कार ले लिया कि किसके माध्यम से आए हो। जवाब में कोई संदर्भ (रेफरेंस) न मिलने पर वह कह देता कि आपको काॅल किया जाएगा। लेकिन मजाल है कि कहीं से साक्षात्कार के लिए बुलावा आता।


खैर, दो महीने तक बेसब्री से इंतजार के बाद मैंने संदर्भ खोजने शुरू किए। लेकिन मीडिया संस्थानों से कोई सरोकार न होने के कारण मैं यह नहीं कर सका। फिर मैंने काॅलेज के सीनियर्स से संपर्क करना शुरू किया। उनमें से एक बड़े भाई समान मित्र ने मुझे रायबरेली के एक नामी अखबार में काम कर सीखने का परामर्श दिया। फिर क्या था मैं खुशी-खुशी रायबरेली के लिए रवाना हो गया। वहां मैंने लगभग छह माह बिना वेतन अपने खर्च पर काम किया। फिर मुझे समझ आया कि बिना जान-पहचान और चाटुकारिता के इस क्षेत्र में अपना भविष्य नहीं बना सकता। मन मसोसकर मैंने अपना रुख विभिन्न संस्थाओं से निकलने वाली प्रतिस्पर्धी पत्रिकाओं की ओर मोड़ लिया। विगत आठ वर्षों से मैं क्रमशः प्रतिस्पर्धी पत्रिका और साहित्यिक पत्रिका से जुड़ा हुआ हूं। वर्तमान में मैं एक सरकारी संस्थान से निकलने वाली साहित्यिक पत्रिका में अहम भूमिका निभा रहा हूं।

मजे की बात यह है कि पिछले दिनों एक वेब पोर्टल से कंटेट एडिटर के साक्षात्कार के लिए फोन आया। मैं साक्षात्कार के लिए तैयार था। मुझे लगा कि वे मेरे कार्यक्षेत्र और कार्य अनुभव के बारे में या फिर पोर्टल की कार्य प्रक्रिया के बारे पूछेंगे या फिर समसामयिक प्रकरण। लेकिन उन्होंने वही आमतौर पर पूछा जाने वाला प्रश्न कि अपने बैकग्राउंड और शिक्षा के बारे में बताएं, पूछा। मैं तो हतप्रभ रह गया जब उन्होंने मुझसे पूछा कि बी.एससी. दो वर्ष की होती है आपको तीन वर्ष क्यों लगे।
प्रश्न यह है कि क्या साक्षात्कारकर्ता सर्वोपरि होता है या फिर प्रत्येक क्षेत्र का जानकार। या फिर भर्ती के नाम पर खानापूर्ति। या फिर अपने ज्ञान का बखान। यदि आपको एक छोटी सी बात नहीं पता तो आपको किसने हक दिया किसी अभ्यर्थी का साक्षात्कार करने का। और यदि किसी अथ्यर्थी को आप आने ही नहीं देना चाहते तो आपको किसने हक दिया किसी को जलील करने का। ऐसे वरिष्ठ पत्रकारों को साष्टांग प्रणाम।
मुझे हर्ष है कि मैं ऐसे विद्वतजनों के बीच काम नहीं कर रहा हूं, जहां भी हूं, संतुष्ट हूं। अपने ज्ञान में इजाफा करने की कोशिश कर रहा हूं।
 

Vijay Kumar
kvijay467@gmail.com

3 comments:

  1. भैया जी का निकाले हो... भड़ास👌👌

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  2. भाई साहब बात तो एकदम सही कही आपने संस्थाओं का यही रवैया है।

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