26.10.20

BJP की रणनीति-सत्ता के साथ भी और सत्ता के खिलाफ भी!

मधुप मणि “पिक्कू”

कुछ अरसा पहले एक गीत आया था “हम तो मशहूर हुए हैं आपकी चाहत में”. ठीक वैसे हीं नीतीश के प्यार में मशहूर हुई या यूँ कहें कि घुटने के बल बैठने वाली बीजेपी को इस मोहब्बत का सौदा मंहगा पड़ता नजर आने लगा है. 

तेजस्वी के बढ़ते ग्राफ से घबराई बीजेपी ने अपनी रणनीति में कुछ बदलाव किया है. जानकारों की माने तो सत्ता विरोधी लहर से खुद को बचाने की कवायद के क्रम में बीजेपी ने सिर्फ नरेन्द्र मोदी की तस्वीर विज्ञापन में दिया है. यह विज्ञापन पहले चरण के चुनाव के ठीक पहले रिलीज़ किया गया.

मीडिया सर्वे की मानें तो एनडीए की वापसी तय है पर वहीँ धरातल पर और चुनावी क्षेत्रों का दौरा कर रहे रिपोर्ट्स की ओर देखें तो कहानी कुछ और बयां कर रही है. तेजस्वी यादव की सभा में लग रही भीड़ से एनडीए खेमे में बेचैनी बढ़ गयी है तो चिराग पासवान के द्वारा नीतीश कुमार से बिहार की जनता की नाराजगी के दावे को भी मजबूती मिल रही है.


“BJP और LJP - ये रिश्ता क्या कहलाता है”

एनडीए में घमासान का असर चुनावों में स्पष्ट तौर पर दिख रहा है. भाजपा और चिराग के बीच कौन सा गठबंधन है यह कहना हमलोगों के लिए भले हीं थोड़ा मुश्किल है, पर बिहार की जनता के लिए समझना बड़ा हीं आसान. चिराग के समर्थन में लोग कह रहे हैं “लोजपा मतलब भाजपा”. बीजेपी अपने प्रचार में अभी तक खुल कर चिराग पासवान या लोजपा के बारे में बोलने से परहेज कर रही है.

कहीं पे निगाहें और कहीं पे निशाना

बीजेपी इस चुनावी गेंद को अपने पाले में हीं नहीं बल्कि पूरी तरह से अपने दोनों हाथों में जकड़ चुकी है और इस जकड़ की कसक सीएम नीतीश कुमार की सभाओं में उनके द्वारा बोले जा रहे शब्दों से साफ़-साफ़ दिख रहा है. बीजेपी के पास चुनाव के बाद बहुत सारे विकल्प खुले मिलेंगे. दूसरी और एलजेपी ने जेडीयू की बहुत सारी महत्वपूर्ण सीटों पर बीजेपी के कद्दावर नेताओं को मैदान में उतर दिया है जो हाल-फिलहाल वक़्त तक बीजीपी के सीनियर लीडर हुआ करते थें.

भरोसे पर उठ सकते हैं सवाल

जानकारों की मानें तो चुकी एक बार नीतीश कुमार ने एनडीए का साथ छोड़कर राजद के साथ चले गए थें इसलिए उनपर शत-प्रतिशत भरोसा करना मुश्किल लग रहा है. वहीँ दूसरी ओर चिराग पासवान ने राजद का साथ छोड़ कर नरेन्द्र मोदी का साथ देने के लिए दल और अपने पिता रामविलास पासवान पर काफी दवाब बनाया और एनडीए में शामिल हो गए थें. उसके पश्चात रामविलास पासवान अंतिम समय तक बीजेपी के साथ रहे. आज भी लोजपा ने अपने अधिकतर उम्मीदवारों को जेडीयू के हिस्से वाली सीट से चुनाव लड़वाया है. इतना हीं नहीं चिराग पासवान ने स्पस्ट तौर पर जनता से अपील की है कि जहाँ बीजेपी के उम्मीदवार हैं वहां लोजपा के वोटर बीजेपी के कैंडिडेट को वोट करें.

राजनीति और रणनीति

राजनीति और रणनीति एक दुसरे के पूरक होते हैं. राजनीति बगैर रणनीति के संभव नहीं है. जेडीयू भी अपनी रणनीति के तहत बीजेपी को खुले तौर पर तो कुछ नहीं कह रही है पर इशारों-इशारों में सबकुछ कह रही है. जेडीयू ने भी अपने पोस्टर “परखा है जिसको, चुनेंगे उसी को” नारा के साथ सिर्फ नीतीश कुमार की फोटो लगाई है. जेडीयू के पोस्टर और प्रचार में सिर्फ बिहार और नीतीश कुमार के द्वारा किये गए कार्यों की चर्चा ज्यादा कर रही है वहीँ बीजेपी केंद्र सरकार की.

कौन है बड़ा चाणक्य ?

बिहार चुनाव बहुत हीं रोमांचक होता जा रहा है. जेडीयू को दोहरी लड़ाई लड़नी पड़ रही है. जहाँ विपक्ष तेजस्वी यादव के नेत्तृत्व में लगातार नीतीश कुमार पर हमलावर हैं वहीं चिराग पासवान की लोजपा भी जेडीयू की लगभग सभी सीटों पर मुकाबले को त्रिकोणीय करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि इस चुनाव में “तू डाल-डाल, तो मै पात-पात” की लड़ाई चल रही है. ये लड़ाई एनडीए और महागठबंधन के बीच हीं नही बल्कि बीजेपी के शीर्ष नेत्तृत्व और जेडीयू के शीर्ष नेत्तृत्व के बीच हो रही है. बीजेपी सत्ता के साथ और सत्ता के खिलाफ दोनों मोर्चों पर खड़ी है. यदि नीतीश की सत्ता की लहर चली और सीटें ज्यादा मिली तो सत्ता बरक़रार रह जायेगी यदि चिराग को सत्ता के खिलाफ लहर का फायदा मिला और ज्यादा सीटें मिली तो भी सत्ता बरक़रार रह जायेगी. दूसरी ओर नीतीश कुमार भी अपने किये गए कार्यों को जमकर भुनाने में लगे हैं ताकि सत्ता की चाभी हाथ से नहीं निकले. इसके लिए जेडीयू भी अपनी तगड़ी रणनीति बनाकर चुनावी मैदान में डट कर सामना कर रहा है.

वोट किसे भी दें सरकार वही बनायेगे जो रणनीति बनाने में माहिर हो

इसमें कोई दो मत नहीं कि इस चुनाव में मतदान और परिणाम से ज्यादा रणनीति काम आयेगी. बीजेपी की सभी रणनीतियों को बारीकी से देख रहे नीतीश कुमार का अगला गेम प्लान क्या होगा यह बताना बहुत मुश्किल है क्योंकि नीतीश कुमार अपने पत्ते अंतिम समय पर परिस्थितयों को देखते हुए खोलते हैं और कोई भी बोल्ड निर्णय लेना उनके लिए कठिन नहीं होता है. वहीँ बीजेपी में भी एक से बढ़ कर एक रणनीतिकार हैं जो परिस्थितियों को देखते हुए अपनी दिशा तय करेंगे. मतलब जनता किसी भी गठबंधन को वोट दे पर सरकार उसी की बनेगी जिसकी रणनीति दमदार होगी.

मधुप मणि “पिक्कू”

(लेखक निजी चैनल के सम्पादक रह चुके हैं और वेब जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के संयुक्त सचिव हैं)

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