10.10.20

आखिर किसकी अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक ?

 
Nirmal Kumar Sharma
    
     भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए संविधान के 19 (1) के तहत सभी को इसका अधिकार दिया गया है। इसके लिए कहा गया है कि ' किसी भी व्यक्ति के पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा,जिसके तहत वह किसी भी तरह के विचारों और सूचनाओं के आदान-प्रदान को स्वतंत्र होगा। लोकतांत्रिक शासन में सरकार द्वारा किए गए गलत काम का देश का कोई भी नागरिक आलोचना कर सकता है,यह उसका मौलिक व संवैधानिक अधिकार है।  'विश्व में अभिव्यक्ति की आजादी की क्या स्थिति है, इसे हम वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के माध्यम से समझ सकते हैं,इस रिपोर्ट में 180 देशों की स्थिति को बताया गया है,इस सूची में 2017 में भारत का स्थान 136 वाँ था,जो 2018 में और बदतर होकर 138 वाँ हो गया !

भारत जैसे देश में एक बहुत विचित्र स्थिति है,जब सत्ता के कर्णधार विपक्ष में रहते हैं,तो अभिव्यक्ति की आजादी के लिए पूरा जोर लगाए रहते हैं,परन्तु वे सत्ता में आते ही अभिव्यक्ति की आजादी, प्रेस ,मिडिया, जनता की बोलने के अधिकार का गला घोंटने लगते हैं !    पिछले साल केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए विवादित नागरिकता संशोधन ऐक्ट के विरोध में वैसे तो  इसका देशभर में जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसमें कई जगह जिसमें उत्तर प्रदेश मुख्य रूप से है,जहाँ शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर वर्तमान समय की सरकारों ने अपने राज्यों की पुलिस द्वारा अकथनीय जुल्म ढाए। इस विरोध प्रदर्शन में महिलाओं-बच्चों सहित सैकडों लोगों को बुरी तरह से लाठियों से पीटा गया,मिडिया श्रोतों के अनुसार पूरे भारत में 25 लोग मारे गए,जिसमें सर्वाधिक 18 लोग जिसमें एक 8 साल का बच्चा भी है,उत्तर प्रदेश के एक कथित मंदिर के पुजारी मुख्यमंत्री,जो खुद कई गंभीर और संगीत अपराधों के जुर्म में दर्जनों मुकदमों का आरोपित है,के शासित राज्य उत्तर प्रदेश में मारे गए,इसके अलावा  5 लोग असम में,2 लोग मेंगलुरु में मारे गए,पिछले साल ही दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में हजारों महिलाओं द्वारा केन्द्र सरकार द्वारा लाए गए इस विवादित नागरिकता संशोधन एक्ट के विरोध में एक सड़क घेरकर काफी लम्बा शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुए थे।आज लगभग सभी समाचार पत्रों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उक्त विवादित नागरिकता संशोधन ऐक्ट के खिलाफ हजारों महिलाओं द्वारा एक सड़क को घेरकर महीनों किए गए शांतिपूर्वक प्रदर्शन के खिलाफ अपना निर्णय सुनाया है कि 'सार्वजनिक स्थानों पर धरना-प्रदर्शन करना सही नहीं है, इससे लोगों के अधिकारों का हनन होता है। '

        इसी शाहीन बाग प्रदर्शन के दौरान ही केन्द्र में सत्तारूढ़ दल की सरकार के एक नेता और दो सांसद क्रमशः प्रवेश वर्मा ने बहुत ही उत्तेजक भड़काऊ,अमर्यादित और गालीगलौज की भाषा में सार्वजनिक भाषण दिया कि 'लाखों लोग शाहीन बाग में इकट्ठा होते हैं,दिल्ली के लोगों को यह सोचकर फैसला लेना होगा,वे आपके घरों में घुसेंगे,आपकी बहनों व बेटियों के साथ बलात्कार करेंगे,उन्हें मारेंगे,आज वक्त है,मोदीजी और अमित शाह आपको बचाने नहीं आएंगें। ' एक और बीजेपी का दलबदलू छुटभैया नेता कपिल मिश्रा ने दिल्ली पुलिस के बड़े अफसरों के सामने ही बोलते हुए सार्वजनिक मंच पर कह गया कि 'जब तक अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर हैं,तब तक हम शांतिपूर्ण तरीके से रहेंगे, परन्तु उनके जाने के बाद तीन दिन में अगर जाफराबाद और चाँदबाग की सड़कें खाली नहीं हो गईं,तो हम पुलिस की भी नहीं सुनेंगे, सड़कों पर उतर आएंगे। ' तीसरा बीजेपी का एक और सांसद अपने समर्थकों को सम्बोधित करते हुए इतना अमर्यादित व अशोभनीय शब्द बोल गया कि हम उसके और उसके समर्थकों द्वारा बोले गए शब्दों को पूरा लिख भी नहीं सकते ! उसने कहा 'देश के गद्दारों को..' समर्थकों ने पूर्व प्रायोजित ढंग से इसके बोले गए कथित नारे को आगे बढ़ाते हुए कहा 'गोली मारो (....) को ' जाहिर है इन सांप्रादायिक आग भड़काने वाले कथित नेताओं द्वारा इतने भड़काऊ और उत्तेजक बयानबाजी और भाषणों को देने के बाद दिल्ली में भयंकर दंगे भड़क गए,सुनियोजित रूप से हथियारबंद गुँड़ों    और दंगाइयों ने तीन दिन तक दिल्ली के कुछ मुस्लिम बहुल इलाकों में भयंकर,मारकाट, छुरेबाजी,आगजनी,लूटपाट करते रहे,दिल्ली पुलिस निष्पृह भाव से मूकदर्शक बनी रही, मिडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इन दंगों में 50 से ज्यादे प्रवासी मजदूर,छोटे दुकानदार,रिक्शेवाले, रेहड़ी लगानेवाले,ऑटोरिक्शे चलाने वाले आदि निम्न वर्ग के लोग बेमौत गुँडों द्वारा कत्ल कर दिए गये,एक 82 साल की अशक्त वृद्धा को भी जिन्दा जला दिया गया ! करोड़ों-अरबों की सम्पत्ति जलाकर राख कर दी गई  ! इन भीषण दंगों में आश्चर्य,क्षुब्ध और हतप्रभ करनेवाली बात यह रही कि कुछ ही दिन पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव में घर-घर जाकर वोट माँगने वाला गृहमंत्री बिल्कुल शांत न ई दिल्ली स्थित अपने बंगले में बैठा रहा,हमारे सबसे कथित काबिल प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आवभगत में आगरे के ताजमहल की दीदार करवाने में व्यस्त रहे,तीन दिन तक दिल्ली धूधूकर जलती रही !

         ब्रिटिशसाम्राज्यवादियों के शासनकाल में अँग्रेजों ने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के दमन के लिए 'रोलेट ऐक्ट 'नामक एक अत्यंत दमनकारी कानून बनाए थे,उस समय तत्कालीन ब्रिटिश-साम्राज्यवादियों ने अनेकों भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को अकारण ही 'देशद्रोही 'साबित कर बिना मुकदमें चलाए ही वर्षों जेल में डाल देते थे ! इस रोलेट ऐक्ट के काले कानून के आधार पर अँग्रेजों ने सबसे पहले लोकमान्य बालगंगाधर तिलक और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को ही 'देशद्रोही ' घोषित कर दिए थे ! शहीद-ए-आजम स्वर्गीय भगत सिंह को तो उनके दो साथियों सहित बगैर समुचित सबूत और साक्ष्य के तुरत-फुरत फाँसी पर लटका दिए। इस देश के लोकतंत्र की बिडंबना देखिए कि भारतीय संविधान में भारत के नागरिकों के अधिकारों और अभिव्यक्ति की आजादी की सुरक्षा के लिए सुप्रीमकोर्ट जैसी शक्तिशाली संस्था का निर्माण किया गया है,लेकिन आज वही सुप्रीमकोर्ट ही भारत के नागरिकों के अभिव्यक्ति की आजादी की कटौती कर रहा है ! क्या आज वर्तमान समय के सत्ता के कर्णधार इस देश के संविधान और यहाँ की समस्त जनता से बहुत ऊपर उठ गए हैं ? होना तो ये चाहिए था कि सुप्रीमकोर्ट उक्त वर्णित सार्वजनिक रूप से घृणा के बीज बोने वाले,साम्प्रादायिक विद्वेष की घृणित बोली बोलकर सामाजिक सौहार्दपूर्ण वातावरण को दूषित करनेवाले,दंगे फैलाकर सैकड़ों लोगों की नृशंस हत्या करानेवाले कथित नेताओं बनाम समाज के दुश्मनों क्रमशः प्रवेश वर्मा, कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर जैसे आतताइयों के बेलगाम बोलों रूपी अभिव्यक्ति की आजादी की नकेल कसते,लेकिन सुप्रीमकोर्ट के आज के कथित जज जो कोलेजियम सिस्टम के पिछले दरवाजे से आकर इस देश की अमनपसंद जनता के अधिकारों की अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर गला घोंट रहे हैं,यह इस देश,इस राष्ट्रराज्य और इस लोकतंत्र के लिए बहुत ही अशुभ है।

-निर्मल कुमार शर्मा,10-10-2020

No comments:

Post a Comment