वाह रे सियासत सत्ता की छांव में सब कुछ संभव है सत्ता की हनक के नीचे बड़े-बड़े अधिकारी मूक-दर्शक मात्र बनकर रह जाते हैं। यह एक ऐसा सत्य है जोकि जग जाहिर है। समय-समय पर ऐसा सदैव ही देखा गया है। कभी वही प्रशासन बहुत ही तेज तर्रार रूप रेखा को दर्शाता हुआ बड़ी ही तीव्र गति के साथ कार्य करता हुआ दिखाई देता है और कभी वही प्रशासन मूक-दर्शक बनकर रह जाता है। रुतबे की हनक ने एक बार फिर बलिया की धरती पर अपना वास्तविक चेहरा देश के सामने प्रस्तुत किया है। जिससे नियम और कानून की सारी परतें खुल गईं और सभी दावों के परखच्चे उड़ गए।
बलिया की घटना एक ऐसी घटना है जिसने एक साथ कई ढ़ेरों सवालों को एक साथ जन्म दिया है। जिसका उत्तर मिल पाना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि उत्तर कौन देगा...? निश्चित ही कोई नहीं। उत्तर कोई नहीं देगा। कुर्सी पर बैठा हुआ छोटा से छोटा एवं बड़ा से बड़ा कोई भी व्यक्ति जवाब देने के लिए आगे नहीं आएगा यह सत्य है। जिस व्यक्ति की जान जानी थी वह चली गई। इसकी चिंता किसी को होगी यह तो समय ही बताएगा। परन्तु, राजनीति होना तय है। आरोप प्रत्यारोप होना तय है। एक दूसरे के ऊपर आरोप प्रत्यारोप का खेल शूरू हो जाएगा।
सियासी रोटियाँ सेकीं जानी शूरू हो चुकीं हैं अभी और तेजी के साथ सियासी रोटियों को सेंका जाएगा यह निश्चित है। क्योंकि, सदैव की भाँति राजनीतिक पार्टियाँ आँकड़ों का खेल खेलना आरम्भ कर देंगी। अपराधों के आँकड़ों का पन्ना सभी टेलीविज़न के स्क्रीन पर जिम्मेदारों के द्वारा दिखाया जाएगा। कितने कुर्ते में कितने दाग हैं इसकी गिनती शूरू हो जाएगी। किसकी सरकार में कितने अपराध हुए साथ ही अपराधों को अपने-अपने ढ़ंग से परिभाषित भी किया जाएगा। कितनी हत्याएं किसके सरकार में हुईं, कितने बलात्कार किसकी सरकार में हुए। इसी के आधार पर मुद्दे को दबा दिया जाएगा कुछ दिन के बाद यह गंभीर अपराध भी सियासत के ठण्डे बस्ते में चला जाएगा। लेकिन क्या उस परिवार का जख्म कभी भर पाएगा जिसने अपने एक सदस्य को अपनी आँखों के सामने सदैव के लिए खो दिया...? क्या उन बेटियों को उनका पिता अब कभी मिल पाएगा जिन्होंने अपने पिता को खो दिया...? नहीं कभी नहीं। जिस प्रकार से यह घटना हुई है वह अपने आपमें बहुत सवालों को जन्म देती है.।
पहला सवाल यह है कि जब पुलिस ठोको की नीति पर चल रही है। अपराधियों के अंदर भय व्याप्त है अपराधी या तो जेल की सलाखों के पीछे हैं या तो प्रदेश के बाहर चले गए हैं तब इस प्रकार की घटना कैसे हो जाती है। दूसरा सबसे बड़ा सवाल यह है कि ननकू और रज्जाक को मामूली सी शिकायत पर प्रशासन के द्वारा बंद कर दिया जाता है परंतु वही पुलिस रसूखदार के प्रति इतना लचर क्यों बन जाती है...? जोकि मूक-दर्शक बनकर निहारती रहती है। तीसरा सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस पुलिस का अपराधियों के अंदर भय व्याप्त है उसी पुलिस के सामने एक व्यक्ति का मनोबल इतना कैसे बढ़ सकता है कि वह खुलेआम पुलिस प्रशासन के सामने एसडीएम के सामने अपने हाथों में पिस्तौल निकाल कर तान दे और किसी की हत्या करने के लिए फायर झोंकना आरंभ कर दे। जबकि मौके पर साक्षात पुलिस-प्रशासन एवं बड़े प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित हों। तब इस प्रकार की घटना कैसे कारित हो सकती है...? यह बड़े सवाल हैं। क्योंकि लगातार यह कहा जा रहा है कि पुलिस और प्रशासन को पूरी तरीके से खुली छूट है।
पुलिस एवं प्रशासन के हाथ नहीं बँधे हुए हैं। यह बड़े सवाल हैं। क्योंकि, दोनों बातें एक समान कैसे हो सकती हैं क्योंकि अपराध पुलिस के सामने हुआ तो क्या पुलिस का भय अपराधियों के अंदर है...? यह बड़ा सवाल है। क्योंकि अगर पुलिस का भय अपराधियों के अंदर है तो इतना बड़ा जघन्य अपराध पुलिस के सामने कैसे हो गया और प्रशासन मूक-दर्शक बना रह गया। क्योंकि अगर पुलिस के हाथ खुले हुए हैं तब पुलिस ने अपने खुले हुए हाथों का परिचय क्यों नही दिया...? यह बड़ा सवाल है। चौथा सबसे बड़ा सवाल यह है कि एक अपराधी ने खुले हाथों वाली पुलिस के सामने अपराध किया उसके बाद वह अपराधी सकुशल घटनास्थल से फरार होने में कामयाब रहा क्या यह संभव है...? बड़े ही गंभीर प्रश्न हैं। जिनका उत्तर किसी के पास भी नहीं है। क्या यह पूरा घटनाक्रम यह नहीं दर्शाता कि वहां पर मौजूद प्रशासन मात्र एक दर्शक की भूमिका में रहा और पूरा घटनाक्रम अपनी आँखों से निहारता रहा। एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई और हत्यारा हत्या करके घटना स्थल से पुलिस एवं आला अधिकारियों के सामने से फरार हो गया।
बहुतेरे सवाल हैं जिनका उत्तर नहीं मिल सकता। मात्र सरकारी राशन की दुकान के आवंटन को लेकर के इतना बड़ा जघन्य अपराध क्यों हुआ यह गंभीर सवाल है। क्या राशन की दुकान में धांधली करनी थी जोकि हो नहीं पाई जिसके कारण उग्र हो करके एक पक्ष ने दूसरे पक्ष पर आक्रमण कर दिया और एक व्यक्ति की हत्या कर दी। क्योंकि अपनी इच्छा अनुसार कार्य ना हो पाना इस कारण हत्या कर देना इससे कई सवालों का जन्म होता है। क्या निष्ठा एवं ईमानदारी की योजना को आगे बढाने के लिए यह कार्य किया जा रहा था। अथवा इसके ठीक विपरीत। जब एक छोटी सी सरकारी गल्ले की सस्ती दुकान का आवंटन अपनी इच्छा अनुसार ना हो पाने के कारण दूसरे पक्ष के व्यक्ति की हत्या कर दी जाती है तो बड़े से बड़ा आवंटन बड़े से बड़ा ठेका और बड़े से बड़े कार्य में कितनी ईमानदारी है कितना न्याय है कितना संयम है यह इस घटना से स्पष्ट हो जाता है।
सरकार के मुखिया ईमानदार एवं प्रतिबद्ध हैं लेकिन सिस्टम में दीमक है यह बात फिर एक बार सिद्ध हो रही है। सरकार के जिम्मेदारों को सिस्टम के दीमक पर ध्यान देने की जरूरत है यदि समय रहते हुए सिस्टम के दीमकों का भरपूर ईलाज नहीं किया गया तो यह दीमक तेजी के साथ बढ़ता चला जाएगा। क्योंकि प्रदेश में जिस प्रकार से आए दिन अपराध हो रहे हैं वह जनता के हृदय को पूरी तरह से झकझोर रहे हैं। अभी हाथरस की एक बेटी के साथ जो हुआ उसने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया। बिना परिवार के अनुमति के बिना परिवार की मौजूदगी में अंधेरी रात में प्रशासन के द्वारा बेटी का अंतिम संस्कार कर दिया गया। अतः इस प्रकार की कार्यशैली में सुधार की आवश्यकता है। इसमें सुधार कैसे होगा यह बड़ा प्रश्न है। क्योंकि जबतक इसका उपचार नहीं होगा अपराध पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता।
कुछ अदृश्य ताकतें अपराधियों के पीछे मजबूती के साथ खड़ी होती हैं जिनको साधारण रूप से नहीं देखा जा सकता क्योंकि, उन अदृश्य ताकतों का उसके पीछे स्वार्थ छिपा होता है। अपने निजी स्वार्थ के कारण अदृश्य ताकतें सदैव अपराधियों का सहयोग करती रहती हैं जिससे कि अपराधियों का मनोबल बढ़ता रहता है। जिसको खोजने की आवश्यकता है। जबतक इस प्रकार की अदृश्य ताकतों को खोजकर उनपर मजबूती के साथ कार्यवाही नहीं होगी तब तक अपराध पर अंकुश नहीं लग सकता। क्योंकि मात्र पुलिस एवं प्रशासन को निलंबित कर देने से सिस्टम का दीमक कभी भी समाप्त नहीं हो सकता। यदि सत्य में अपराध को रोकना है तो अपराधियों के संरक्षणदाताओं पर अंकुश लगाना ही होगा।
सज्जाद हैदर
वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्र चिंतक।
राम राज है ये तो जी
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